image

रक्षाबंधन का वास्तविक अर्थ

 डॉ शशांक शर्मा

भारत में त्यौहारों के अपने उद्देश्य होते हैं जिनमें एक सबसे कॉमन समाज और व्यक्तियों को आपस में जोड़ना होता है । उदाहरण के लिये भाई दूज या रक्षाबन्धन को ही लें । भाई-बहन के बीच के प्रेम और अपनत्व के त्यौहार । लेकिन पिछले कुछ दशकों से फर्जी फेमिनिस्ट, और नकली बुद्दिजीवियों ने इन त्यौहारों को भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक परम्परा से जोड़कर स्त्री को दीन हीन बताया है । उनके अनुसार बहन ही भाई के राखी क्यों बांधे, और बहन ही अपनी रक्षा की भिक्षा क्यों मांगे । बात भी ठीक है क्या भाई या बहन में से जो भी सक्षम है वह दूसरे की रक्षा बिना राखी के धागे के नहीं करेगा? वास्तव में यह एक स्वाभाविक भावना है जो जन्मजात प्रेम और समर्पण से जुड़ी है इसलिए बिना धागे के भी भाई हो या बहन एक दूसरे की सहायता, या रक्षा करेंगे ही । फिर रक्षाबंधन के त्यौहार का महत्व क्यों है -

अगर बॉलीवुड की परिभाषा और हुमांयू-कर्मावती की काल्पनिक कहानियों से इतर इसका असली अर्थ ढूंढेंगे तो पाएंगे कि स्त्री को भारतीय परंपरा में हमेशा से ज्यादा शक्तिशाली माना गया है क्योंकि रक्षासूत्र वही बांधता है जो ज्यादा शक्तिवान हो । 

जब भाई दूज के अवसर पर बहन भाई के माथे पर तिलक लगाती है, या रक्षाबंधन पर उसकी कलाई में राखी या रक्षासूत्र बांधती है तब वह उस धागे में अपनी आराधना, अपने पुण्यफल, अपनी आत्मियता के आधार पर अपने भाई की रक्षा की प्रार्थना करती है । जो दूसरे को अपनी शक्ति प्रदान कर रहा है वह कमजोर कैसे हो सकता है । अक्सर धार्मिक अनुष्ठान के समय पंडित जी को रक्षासूत्र बांधते देखा होगा जिसमें वह कहते हैं - 
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

इसका अर्थ यह है कि ‘जिस रक्षासूत्र से राजा बलि जैसे दानवीर और महाशक्तिशाली व्यक्ति को बाँधा गया था, उसी रक्षासूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अपने पथ से, संकल्प से अचल और अडिग रहना।’ 

भाई दूज पर सभी शक्ति सम्पन्न बहनों और उनके भाइयों को शुभकामनाएं ।।

Post Views : 519

यह भी पढ़ें

Breaking News!!