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स्नेहा भारत की ऐसी पहली महिला जिनकी ना तो कोई जाति है और ना ही धर्म

संजय सागर

आगरा। तमिलनाडु राज्य की रहने वाली स्नेहा देश की पहली ऐसी महिला बन गई है, जिनकी अब ना कोई जाति है और ना ही कोई धर्म है। तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के तिरूपत्तूर की रहने वाली स्नेहा ने खुद नो कास्ट नो रिलिजन प्रमाण-पत्र बनवाया है। यह सर्टिफिकेट बनवाने के लिए उनकी राह आसान नहीं रही। इसके लिए उन्हें 9 साल का लम्बा इंतजार करना पड़ा। हाल ही में एड्वोकेट स्नेहा को उनका नो कास्ट, नो रिलिजन सर्टिफिकेट मिला है। इतने लम्बे इंतजार के बाद स्नेहा ने आखिर नो कास्ट, नो रिलिजन सर्टिफिकेट हासिल कर ही लिया है। 9 साल बाद जीती जंग के लिये उनकी हर तरफ तारीफ हो रही हैं। वहीं, साउथ के जानेमाने एक्टर कमल हसन ने ट्विटर पर शेयर किया और बधाई दी, सेलिब्रिटीज के साथ ही आम लोग भी उनके इस निर्णय की खूब तारीफ कर रहे हैं। 

इस संदर्भ में आगरा के सुप्रशिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अरविंद पुष्कर ने अपने वक्तव्य में बताया कि हमें अगर सामाजिक परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ना है, तो सबसे पहले जात - पात के नाम पर खुद को बांटने का काम बंद करना होगा। ये अच्छे राष्ट्र का निर्माण होने में सबसे बड़े बाधक है। क्योंकि किसी भी मुल्क की तरक्की तभी संभव है, जब देश के नागरिक जाति - धर्मों के नाम पर खुद को बांटने की बजाय इन सब से ऊपर उठकर राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दें। देश के सभी नागरिक एक-दूसरे का सम्मान करते हुए अपने जोश, शक्ति का इस्तेमाल राष्ट्र के भले के लिए करें तो कोई भी राष्ट्र बहुत तेजी से तरक्की कर सकता है। आज का युवा इस तरह की नई सोच के साथ आगे बढ़ रहा है। इसकी मिशाल बनी है चेन्नई की एड्वोकेट स्नेहा, हालांकि उनका संघर्ष लम्बा रहा हैं। तमिलनाडु राज्य की रहने वाली एड्वोकेट स्नेहा देश की पहली ऐसी महिला बन गई है, जिनकी अब ना कोई जाति है और ना ही कोई धर्म है। तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के तिरूपत्तूर की रहने वाली स्नेहा ने खुद नो कास्ट नो रिलिजन प्रमाण-पत्र बनवाया है। यह सर्टिफिकेट बनवाने के लिए उनकी राह आसान नहीं रही। इसके लिए उन्हें 9 साल का लम्बा इंतजार करना पड़ा। हाल ही में एड्वोकेट स्नेहा को उनका नो कास्ट नो रिलिजन सर्टिफिकेट मिला है। इतने लम्बे इंतजार के बाद एड्वोकेट स्नेहा ने आखिर नो कास्ट नो रिलिजन सर्टिफिकेट हासिल कर ही लिया है। पेशे से वकील स्नेहा ने साल 2010 में नो कास्ट नो रिलिजन सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया था। करीब 9 साल का समय गुजरने के बाद 5 फरवरी, 2019 को बहुत ही मुश्किलों से उन्हें यह सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ है। यह खास प्रमाण-पत्र पाने के बाद अब स्नेहा देश की पहली ऐसी महिला बन गई हैं, जिनके पास यह सर्टिफिकेट है। लम्बे संघर्ष के बाद नो कास्ट नो रिलीजन सर्टिफिकेट हासिल कर चुकी स्नेहा की अब इस कदम के लिए हर तरफ प्रशंसा हो रही है। सेलिब्रिटीज के साथ ही आम लोग भी उनके इस निर्णय की तारीफ कर रहे हैं। साउथ फिल्म इंडस्ट्री के बड़े स्टार कमल हसन ने स्नेहा और उनके प्रमाण-पत्र की फोटो अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की है।

श्री पुष्कर ने आगे बताया कि नो कास्ट नो रिलिजन प्रमाण-पत्र हासिल करने बाद स्नेहा ने बताया कि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। उससे भी ज्यादा मुझे बिना जाति और धर्म के खुद की एक अलग पहचान चाहिए थी। मेरे सारे प्रमाण-पत्रों में कास्ट और रिलिजन के सभी कॉलम खाली हैं। इसमें मेरा जन्म सर्टिफिकेट समेत स्कूल के सभी प्रमाण-पत्र भी शामिल हैं। इन सभी में सिर्फ मुझे सिर्फ एक भारतीय बताया गया है। मुझे महसूस हुआ कि सभी एप्लिकेशन में सामुदायिक प्रमाण पत्र अनिवार्य था, इसीलिए मुझे एक आत्म - शपथ पत्र प्राप्त करना ही था। जिससे मैं सर्टिफिकेट्स में साबित कर सकूं कि मैं किसी जाति और धर्म से जुड़ी हुई नहीं हूं। जब जाति और धर्म को मानने वालों के लिए प्रमाण - पत्र होते हैं तो हम जैसे लोगों के लिए क्यों नहीं ? उल्लेखनीय है कि स्नेहा खुद ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता भी बचपन से ही सभी सर्टिफिकेट में जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ते देते थे। स्नेहा ने बताया कि वे खुद ही नहीं बल्कि अपनी तीन बेटियों के फॉर्म में भी जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ा जा रहा है। 9 साल लम्बे संघर्ष के बाद नो कास्ट नो रिलीजन सर्टिफिकेट हासिल कर चुकी स्नेहा की अब इस कदम के लिए हर तरफ प्रशंसा हो रही है। इंटरव्यू में स्नेहा ने बताया कि उन्होंने खुद को हमेशा भारतीय माना है। उन्होंने अपने आप को कभी भी जाति और धर्म में नहीं बांधा एड्वोकेट स्नेहा खुद भारतीय मानती हैं। स्नेहा भारत की ऐसी पहली महिला बन गई हैं, जिनकी ना तो कोई जाति है और ना ही धर्म. पहचान के लिए सिर्फ नाम ही काफी है। स्नेहा ने नो कास्ट नो रिलिजन सर्टिफिकेट बनवाकर खुद को जाति, धर्म के बंधन से छुड़ा लिया है और अब अपने नाम के दम पर ही अपनी पहचान बना ली है। स्नेहा का मानना है कि जाति-धर्म के बंधन से खुद को अलग करना समाज में परिवर्तन की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। ऐसे में स्नेहा भारत की ऐसी पहली महिला बन गई हैं जो जाति, धर्म से परे बस भारतीय नागरिक हैं। वहीं सोशल मीडिया पर स्नेहा के इस कदम की काफी तारीफ हो रही है। जिसने भी स्नेहा के इस फैसले के बारे में सुना उन्हें बधाइयां दे रहे हैं।

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