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कोटा फैक्ट्री और क्रैश कोर्स वेब सीरीज एजूकेशन कोचिंग की हकीकत बताती हैं : सावन चौहान

संजय सागर

आगरा। कोटा फैक्ट्री और क्रैश कोर्स कोचिंग की दुनिया पर बनी वेब सीरीज हमे बतला रही है कि हर साल 12 लाख बच्चे आईआईटीआईटेन की सिलेक्शन के लिए आते है और सिर्फ 11 हजार वहां तक पहुंचने में कामयाब होते है। बाकी साढ़े ग्यारह लाख बच्चे मोटी फीस भर के कोचिंग सेंटर्स को खुशहाल कर उन्हे मालामाल करते है।

इस संदर्भ में सुप्रशिद्ध समाजसेबक व फ़िल्म निर्माता निर्देशक श्री सावन चौहान ने बताया कि शिक्षा जब कारोबार बन जाती है तब नम्बर रेस बड़ी इंपोर्टेंट बन जाती है। अमेज़ॉन प्राइम पर आई वेब क्रैश कोर्स सीरीज हमे यही बतलाती है।कोटा फैक्ट्री सीरीज में भी यही दिखलाया है। रैंकिंग का बच्चो पर रात दिन बोझ है। इसलिए वो नशा करते है असुरक्षित व्यवहार करते है, क्योंकि इंस्टीट्यूट शिक्षा आजकल प्रेसर कुकर बन गयी हैं। प्रेसर को कम करने के लिए उन्हे गोलियां खिलाता है ताकि फोकस रह सके। अमेज़ॉन प्राइम पर आई वेब क्रैश कोर्स सीरीज हमे यही बतलाती है कि बच्चो के मां बाप नंबर रेस में अपने बच्चे को आगे करने के लिए अपने घर तक गिरवी रख देते है। बकौल एक इंस्टीट्यूट का मालिक - पेरेंट्स नाम का प्राणी दुनिया में सबसे अजीब प्राणी होता है। वो जानते है कि उसका बच्चा टॉपर नही बन सकता मगर दिल से मानते नही लेकिन जब वो होर्डिंग पर टॉपर्स की फोटोज देखते है तो मन में वो इमेजिन करने लगते है कि ये फोटो किसी ओर की नही बल्कि उनके अपने बच्चे की है, बस इमेजिन करने लगते है, सपने देखने लगते है और जो इंस्टिस्ट्यूट टॉपर्स देगा वो एडमिशन कराने उसी इंस्टिस्ट्यूट में आयेंगे। ये टॉपर्स हमारे इंस्टीट्यूट के ब्रांड एंबेसेडर हैं। वहीं, भेड़ों की तरह एक इंस्टीट्यूट दूसरे की टांग खींचता है। अच्छी भेड़ों को अपने पाले में खींचने की कोशिशें करता है। जोड़ तोड़ करता है, लालच देता है। ये इस देश की एजूकेशन कोचिंग माफिया की हकीकत है। इस देश मे इतने शिक्षार्थी इतनी पढ़ाई फिर भी पिछले 90 सालो में एक भी नोबल अवार्ड नही, कोई नई खोज नही, कोई इनोवेशन नही,खामी कहां है ? कुछ तो बहुत गड़बड़ है कही ? 

श्री चौहान ने आगे बताया कि दोनों वेब सीरीज़ यह बतलाती हैं कि मत इतराइए कि बाहर के मुल्कों में हमारे छात्र है जो दुनिया में अपना योगदान दे रहे है। ये उनकी शिक्षा प्रणाली का परिणाम है जो वो अपने हित में उपयोग कर  रहे है। हमारी ये कुल जमा उपलब्धि है कि हम शिक्षित मजदूर बना रहे है। बस पैसा कमाना ही ध्येय है चाहे किसी भी तरीके से आए, आजकल कामयाबी की पैसा कसोटी है। निष्कर्ष ये दोनों बहुत अच्छी वेब सीरीज है। जबतक दुनिया देखने का नजरिया नहीं बदलेगा तब तक कुछ नहीं होगा। जिनके पास निर्माण करने की योग्यता है वे कभी स्कूल तक सही से नहीं पहुंच सकते। हां नकल करने वाली जमात उपलब्ध है। नकल कर सकते हैं। पेटेंट की क्षमता उनमें ना कभी थी ना होगी। आजकल शिक्षा को व्यापार बना दिया है, इसीलिए स्वार्थ, पैसा कमाने की अंधी दौड़, अहंकारी मानसिकता बढ़ती जा रही है। जब मन में धन का ही चित्र होगा तो व्यक्ति का कैसा चरित्र होगा, कल्पना की जा सकती है। यही आकड़ा रोजगार का रहता है। 12 लाख  सरकारी रोजगार की चाहत में रहते है मिलता 11 हजार को ही है, ओर सिस्टम में यही चलेगा बस उन 12 लाख लोगों को सही दिशा दिखाने के बजाय विकल्प सुझाने के बजाय लोग राजनीति के लिये हड़काते रहते है बाकी दूसरा पहलू यह भी है कि प्रतियोगिता है तभी तो प्रतिभा निखरेगी।

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