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हाई कोर्ट ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट में हुए खर्च का मांगा हिसाब, पूछा- कितने प्रतिशत नाले एसटीपी से कनेक्ट

Namami Gange Project इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट को लेकर पूछा जिन शहरों से गंगा गुजरी हैं वहां कितने प्रतिशत नाले एसटीपी से कनेक्ट- न्याय मित्र ने कहा 15 शहरों में अब भी 74 नाले सीधे गिर रहे हैं गंगा में।

प्रयागराज, संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में जल निगम, उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य विभागों की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है। कहा है, विभाग अपनी जवाबदेही को शटल काक की तरह शिफ्ट कर रहे हैं। पूछा है कि जब जलनिगम के पास पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं तो वह पर्यावरण की निगरानी कैसे कर रहा है? कोर्ट ने महानिदेशक नेशनल मिशन क्लीन गंगा से उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी है और पूछा है कि नमामि गंगे परियोजना के तहत अब तक कितना पैसा खर्च किया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जांच रिपोर्ट मांगी है। बोर्ड ने एसटीपी की जांच के लिए 28 टीमें गठित की है।

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पूर्णपीठ ने गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। पूर्ण पीठ ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से टेस्टिंग, शिकायत निस्तारण नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया है। यह भी पूछा है कि गंगा जिन शहरों से होकर गुजरी हैं, वहां पर बने नालों को एसटीपी से जोड़ा गया है अथवा नहीं। नालों की स्थिति, डिस्चार्ज, ट्रीटमेंट व जल की गुणवत्ता को लेकर जानकारी मांगी है। एएसजीआइ ने कोर्ट से विस्तृत जानकारी पेश करने के लिए समय मांगा है। अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी।

 

विभागों में आपसी तालमेल नहीं होने पर नाराजगी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से अधिवक्ता बाल मुकुंद सिंह, भारत सरकार जलशक्ति मंत्रालय की तरफ से एसजीआइ शशि प्रकाश सिंह व राजेश त्रिपाठी, नगर निगम प्रयागराज के अधिवक्ता एस डी कौटिल्य ने पक्ष रखा। आपसी तालमेल बनाकर काम न करने पर कोर्ट ने नाराजगी जताई। कहा कि हकीकत में विभागों के कार्य आंखों में धूल झोंकने वाले हैं। कोर्ट ने उन शहरों का साइट प्लान भी देखा जहां से गंगा गुजरी है। कोर्ट को न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता ने बताया कि उप्र में गंगा 15 शहरों से गुजरती हैं।

इन शहरों में 74 नाले हैं, जो गंगा में गिर रहे हैं। इस पर कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता नीरज तिवारी से पूछा कि इन शहरों की एसटीपी से नालों को जोड़ा गया है अथवा नहीं? इस पर न्यायमित्र ने कहा कि प्रयागराज सहित अन्य जिलों में तकरीबन 58 से 60 प्रतिशत कनेक्ट किया गया है। तीन जिलों में बलिया, प्रतापगढ़ सहित तीन जिलों में एसटीपी नहीं हैं। कानपुर की टेनरियों को कहीं शिफ्ट नहीं किया गया। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की मानिटरिंग सही तरीके से नहीं हो पा रही है। इसका संचालन निजी एजेंसी से कराया जा रहा है। हालत यह है एसटीपी ओवरफ्लो हैं। निगमों के पास कोई पर्यावरण इंजीनियर नहीं है।

प्रयागराज में सात जगह लिए गए सैंपल फेल नेशनल गंगा मिशन, जल निगम, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य विभागों की ओर से जवाब दाखिल न करने पर कोर्ट ने तीखी नाराजगी जताई। इन विभागों के अधिवक्ताओं ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एसटीपी से लिए गए 29 नमूनों की रिपोर्ट के बारे में पूछा तब बताया गया कि यह (जांच रिपोर्ट) अभी नहीं आई है।

प्रयागराज में होने वाले कुंभ, माघ मेला के दौरान गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था भी पूर्णपीठ ने जानी। बताया गया कि मोबाइल एसटीपी के जरिए जल का शुद्धिकरण किया जाता है। कोर्ट ने यह तर्क स्वीकार नहीं किया। याची अधिवक्ता वीसी श्रीवास्तव तथा शैलेश सिंह ने बताया कि उन्होंने प्रयागराज के सात स्थानों के जल की जांच कराई है। नमूने फेल हो गए हैं। पानी सही नहीं है। सभी एसटीपी को बंद कर देना चाहिए। कोर्ट ने प्रयागराज नगर निगम के अधिवक्ता से एसटीपी से हो रहे शोधन की रिपोर्ट के बारे में पूछा और हलफनामे में जवाब दाखिल करने के लिए कहा।

 

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