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ख्वाहिशें

डाॅ. किरण मिश्रा

जुल्फ अपनी झटकती रही ख्वाहिंशे, 
उम्र भर यूँ  भटकती  रही ख्वाहिशें।।

सात फेरों का जब उसने सौदा किया, 
राह  रोके  खटकती  रही ख्वाहिशें।। 

आस की बाँह पकड़े खडा था  सफर, 
हौले-हौले  सिसकती  रही ख्वाहिशें।। 

इश्क की मयकशी में यूँ डूबी किरण, 
धीरे-धीरे  मचलती  रही   ख्वाहिशें।।

बेवफा ने झिड़क कर परे जब किया, 
कतरा-कतरा बिखरती रही ख्वाहिशें।। 

उम्र  नाराजगी  में  यूँ  जाया गयी, 
अश्क़ बनकर उमड़ती रही ख्वाहिशें।।

दिन उमस से भरे रात कालिख सनी, 
जर्रा-जर्रा  बरसती  रही ख्वाहिशें।।

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