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40 साल पहले हुआ था देश में पहला एनकाउंटर, मुंबई का बदमाश बना था पुलिस की गोली का शिकार

First Encounter in India 11 जनवरी 1982 को वडाला इलाके में गैंगस्टर मान्या सुर्वे की पुलिस अधिकारियों राजा ताम्बत और इसाक बगवान ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसे पहली मान्यता प्राप्त मुठभेड़ हत्या के रूप में जाना जाता है।

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। 1980 के दशक में, महाराष्ट्र पुलिस अकादमी से पास होने वाले नए सिपाहियों के दिमाग में केवल एक ही बात हुआ करती थी की पोस्टिंग बॉम्बे हो जाए क्योंकि, बॉम्बे पैसे और ताकत का खज़ाना था। उस समय, बॉम्बे में हर दिन अपहरण, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग और जबरन वसूली एक आम बात थी। बॉम्बे पर अपने कब्ज़े के लिए कई गिरोह आपस में लड़ रहे थे।

करीम लाला, बाबू रेशम और राजन नायर (बड़ा राजन के नाम से जाना जाता है) जैसे गैंगस्टर एक-दूसरे कों गिराने में लगे हुए थे। शक्तिशाली पठान गिरोह दाऊद इब्राहिम के खिलाफ गैंगवार में थे। लोगों में काफी डर बैठा हुआ था और वे 'पुलिस की निष्क्रियता' से लोग परेशान थे।

इसी बीच देश का पहला एनकाउंटर होता है। यह एनकाउंटर हुआ अंडरवर्ल्ड डॉन मान्या सुर्वे का। 37 साल के मान्या सुर्वे का एनकाउंटर 11 जनवरी 1982 में जब हुआ था।

कौन था मान्या सुर्वे

 

मान्या सुर्वे का असली नाम मनोहर अर्जुन सुर्वे था। बॉम्बे में पैदा होने वाला मनोहर अर्जुन सुर्वे ने यहीं से पढ़ाई की और बॉम्बे से ही वो अपराध की दुनिया में भी आया। मनोहर अर्जुन सुर्वे को दोस्त मान्या सुर्वे कहते थे और यही नाम पुलिस की डायरी से लेकर अपराध की दुनिया में दर्ज हो गया। कहते हैं कि मान्या को अपराध की दुनिया में उसका सौतेला भाई भार्गव दादा लेकर आया था।

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दोनों ने 1969 में किसी का मर्डर किया था और पकड़ा गया। आजीवन जेल की सजा हुई, मान्या को बॉम्बे के बजाय पुणे के यरवदा जेल भेज दिया गया। जेल में रहकर मान्या सुधरा नहीं और बल्कि अपने प्रतिद्वंदी डॉन सुहास भटकर के लोगों को पीटने लगा। जेल में मान्या का आंतक जब बढ़ने लगा तो उसे रत्नागिरी जेल भेज दिया गया। रत्नागिरी जेल जाने के बाद मान्या सुर्वे बीमार होने का बहाना किया जिसकी वजह से उसे इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसी अस्पताल से मान्या ने पुलिस को चकमा दिया और फरार हो गया।

इसके बाद मान्या बॉम्बे आया और अपने दोस्तों के साथ मिलकर खुद का गैंग बना लिया। मान्या एक के बाद एक वारदात को अंजाम देते गया। मान्या का दाऊद के भाई के मर्डर में भी हाथ था। मान्या को लेकर जब बॉम्बे पुलिस की आलोचना होने लगी तो पुलिस ने इसकी गैंग पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया।

1982 में हुआ था देश का पहला एनकाउंटर

 

 

मान्या सुर्वे का केस मुम्बई पुलिस के एनकाउंटर स्क्वॉड को सौंप दिया गया। जहां इस केस की कमान राजा तांबट और इशाक बागवान नाम के पुलिस अधिकारी को सौंपा गया। मान्या लगातार इनके हाथ से बचता रहा, फिर 11 जनवरी 1982 को तत्कालीन बॉम्बे पुलिस को दाऊद इब्राहिम गिरोह से एक सूचना मिली कि मनोहर सुर्वे वडाला में अंबेडकर कॉलेज जंक्शन के पास स्थित एक ब्यूटी सैलून का दौरा करेगा।

 

दोपहर करीब 1.30 बजे क्राइम ब्रांच के 18 अधिकारी उसके आने का इंतजार करते हुए तीन टीमों में बंट गए। करीब 20 मिनट के बाद सुर्वे को टैक्सी से बाहर निकलते देखा गया। इससे पहले कि गैंगस्टर अपनी वेब्ले एंड स्कॉट रिवॉल्वर से फायर कर पाता, पुलिस ने उसके सीने और कंधे में पांच गोलियां मारी। कुछ मिनट बाद, सायन अस्पताल ले जाते हुए उसने एम्बुलेंस में दम तोड़ दिया।

बॉम्बे में पुलिस द्वारा किसी गैंगस्टर के खिलाफ यह पहली रिकॉर्डेड मुठभेड़ थी। यह शहर के आपराधिक अंडरवर्ल्ड में एक नए अध्याय की शुरुआत भी थी। इस तरह से पुलिस की डायरी और देश के इतिहास में ये पहला एनकाउंटर कहलाया। इस घटना पर आधारित फिल्म शूटआउट एट वडाला (Shootout at Vadala) भी बनी थी, जिसमें जॉन अब्राहम ने मान्या सुर्वे की भूमिका निभाई थी।

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देश के आजादी और उसके काफी सालों तक नहीं था एनकाउंटर का प्रचलन

 

आजादी के बाद आज जैसी एनकाउंटर रणनीति नहीं थी। पुलिस एनकाउंटर से दूर ही रहती थी। उसका जोर अपराधियों को जीवित गिरफ्तार करने पर ज्यादा रहता था। इसके बाद जैसे-जैसे देश में क्राइम बढ़ा, पुलिस की परेशानियां भी बढ़ने लगी। अंडरवर्ल्ड की दुनिया के बाद से क्राइम पर कंट्रोल के लिए एनकाउंटर की जरूरत पुलिस को महसूस होने लगी थी।

 

क्या है एनकाउंटर का नियम

 

 

सीआरपीसी की धारा 46 के अनुसार अगर कोई अपराधी खुद को पुलिस से बचाने की कोशिश करता है या पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या पुलिस पर हमला करता है, तो इन हालात में पुलिस आत्मरक्षा के तहत उस अपराधी पर जवाबी हमला कर सकती है।

 

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