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जनकपुरी में प्रदर्शित हो रहा राजा जनक एश्वर्य, उत्तर भारत की प्रमुख श्रीराम लीला महोत्सव का है मुख्य उत्सव

आदर्श नंदन गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार

आगरा। रघुनंदन के विवाह के लिए  रामलीला का  एक विशाल और  भव्य तीन दिवसीय आयोजन होता है जनकपुरी। यह जनकपुरी अब  पूरे उत्तर भारत में विख्यात हो चुकी है। इसकी अद्भुत शोभा निहारने के लिए  तीन दिन में  करीब पांच लाख जन पहुंचते हैं, इसलिए  अब यह आयोजन  किसी मोहल्ले या बस्ती में  सजने की स्थिति में नहीं है । अब इसका बड़ी कॉलोनियों  में ही होना संभव है ।

तीन दिवसीय आयोजन के पहले दिन जनक नंदिनी, पार्वती पूजन के लिए जाती हैं । बैंडबाजों के साथ भव्य डोला निकाला जाता है। आकर्षक फूलों से सजे रथ पर सीता जी अपनी सखियों के साथ  विराजमान होतीं हैं। विभिन्न मार्गों से होती हुई वे जनकपुरी में निर्धारित स्थल पर गौरा पूजन करती हैं। वहां से यह डोला अन्य मार्गों से होता हुआ जनक महल पर पहुंचता है। जहां सखियों के साथ सीता जी को विराजमान करा दिया जाता है। हजारों दर्शक विशाल जनक महल पर जनकदुलारी के दर्शन कर निहाल होते हैं।

दूसरे दिन जनकपुरी के मुख्य द्वार पर भगवान श्रीराम की बरात पहुंचती है, जहां राजा जनक, सुनैना के स्वरूप और सभी जनकपुरीवासी भगवान श्री राम और उनके अन्य परिजनों का स्वागत करते हैं। पुष्प वर्षा की जाती है । उसके बाद बरात को विभिन्न मार्गों से होकर जनवासा में लाया जाता है, जहां जनकपुरीवासी भगवान राम व अन्य स्वरूपों की आरती उतारते हैं। प्रसादी होती है।

इसी दिन श्रीराम व सीता के विवाह के प्रतीक के रूप में  तुलसी -सालिगराम का विवाह होता है। फेरे पड़ते है। उसके बाद राजा जनक, सुनैना व  जनकपुरी वासियों द्वारा सीता का कन्या दान किया जाता है । बधाई और मंगल गीतों से माहौल खुशनुमां हो जाता है।

 शाम को जनकपुरी में अद्भुत छटा बिखरती है। रंग-बिरंगे बल्बों की झालरों से पूरा क्षेत्र झिलमिला उठता है। बैंडबाजों के साथ दूल्हा बने भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत औऱ शत्रुघ्न  सफेद घोड़ों पर विराजमान होकर निकलते है। उनके साथ दूसरे रथ पर गुरु विश्वामित्र, राजा दशरथ व अन्य परिजन विराजमान होते हैं । झिलमिलाते चांदी की रथ पर दुल्हन बनी सीता जी होती हैं । जो विभिन्न मार्गों से होती हुई जनकमहल पर पहुँचती है । वहां उन्हें  विराजमान किया जाता है। जहां  लाखों लोग दूल्हा बने राम और दुल्हन बनी सीता के दर्शनों को उमड़ पड़ते हैं । सर्वत्र जयजयकार होती हैं । इस अद्भुत छटा को निहारने के लिए आगरा ही नहीं प्रदेश के विभिन्न नगरों से श्रद्धालु यहां आते हैं। उसके बाद जनक महल पर विशिष्ट जनों, अतिथियों व कमेटी के पदाधिकारियों द्वारा आरती उतारी जाती है।

जनकपुरी के तीसरे दिन दोपहर को राजा जनक द्वारा द्वारा बड़हार की दावत दी जाती है,  जिसमें रामलीला कमेटी, जनकपुरी कमेटी के अलावा शहर के प्रतिष्ठित जनों को आमंत्रित किया जाता है। सभी को प्रसादी खिलाई जाती है । इस दौरान भगवान के स्वरूपों का पूजन भी किया जाता है। जनकपुरी वासियों द्वारा भगवान राम, लक्ष्मण, सीता जी के स्वरूपों को चांदी के बर्तनों में भोजन कराया जाता है।

    शाम को जनक मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ भगवान रघुनन्दन, जनक नंदिनी सीता के नयनाभिराम दर्शन के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। श्रद्धा के सैलाब को नियंत्रित करना बड़ा मुश्किल होता है। जनक मंच पर इन स्वरूपों की शोभा देखते ही बनती है।

देर रात को स्वरूपों की आरती के बाद सीता जी की विदाई का पल आता है । जनकपुरी वासी सजल नेत्रों से सीता जी को जनकपुरी से विदा करते हैं । विदाई की ये सवारियां विभिन्न मार्गों से होती हुई जनकपुरी के प्रमुख द्वार तक पहुंचती हैं। उसके बाद वहां से इन स्वरूपों को जनवासा, बारादरी या श्री राम हनुमान मंदिर, रामलीला मैदान में ले जाया जाता है।

 1964 में सजी थी पहली जनकपुरी
जनकपुरी का आयोजन तो रामलीला के साथ ही शुरू हो गया था। किसी भी मंदिर में तुलसी-सलिगराम के विवाह की औपचारिकता पूरी कर ली जाती थी। मंदिर में ही राम-लक्ष्मण के स्वरूपों को ठहराया जाता था। दूसरे दिन दावत देकर उन्हें विदा कर दिया जाता था। महोत्सव के रूप में जनकपुरी की शुरुआत वर्ष 1964 में हुई। पूर्व विधायक व रामलीला कमेटी के तत्कालीन उपाध्यक्ष स्व.डॉ. अनुराग शुक्ला के अनुसार प्रथम जनकपुरी महोत्सव को पं. शिवदत्त शुक्ला, राजकुमार सर्राफ, डॉ. श्याम सिंह, भजनलाल प्रेस वाले  आदि ने नौबस्ता लोहामंडी में आयोजित किया । बगीची गोपेश्वर पर श्री राम बरात को ठहराया गया था । पहली बार  चांदी के सिंहासन पर राम, लक्ष्मण, सीता के स्वरूपों को विराजमान कराया गया था। इसमें बेलनगंज स्थित सेवा समिति के दातव्य चिकित्सालय के कंपाउंडर रामबाबू को जनक बनाया गया था, जो निसंतान थे।  उसके बाद लगातार जनकपुरी महोत्सव आयोजित होने लगे । पहले तो रावतपाड़ा, पीपल मंडी, बेलनगंज, भैरों बाजार जैसे मोहल्लों में यह आयोजन होते रहे, लेकिन अब  यह महोत्सव इतना विराट रूप ले चुका है की इन मोहल्लों में आयोजन होना संभव नहीं रह गया है।

  दिव्य और अद्भुत होता है जनकमहल
जनकपुरी का प्रमुख आकर्षण होता है जनकमहल, जिस पर विराजमान भगवान श्री राम, सीता औऱ लक्ष्मण के दर्शनों के लिए लाखों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है।  चारों और जनसैलाब दिखाई देता है। महीन कारीगरी करके बनाए जाने वाले इस महल में एक मुख्य शिखर होता है। जिस पर केसरिया रंग की धर्म ध्वजा फहराती है। मुख्य शिखर के चारों ओर शिखर बनाए जाते हैं। उसके बाद नीचे आकर्षक झरोखे बनाए जाते हैं।
मुख्य मंच पर चांदी का सिंहासन होता है, जिस पर रघुनन्दन, जानकी आदि के स्वरूप विराजमान कराए जाते हैं ।
मुख्यमंच के बाद दूसरा मंच होता है, जिससे अतिथियों द्वारा आरती उतारने की व्यवस्था होती है। कहीं- कहीं एक मंच सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए अलग से बनाया जाता है। इस मंच के आगे बनाया जाने वाला फव्वारा औऱ बगीचा भी मनमोहता है। आगुन्तकों के लिए सोफों औऱ कुर्सियों की व्यवस्था होती है।
जनकपुरी महोत्सव का स्थल तय होने के बाद सबसे पहले जनकमहल के लिए एक विशेष स्थल का चयन किया जाता है, जहां यह भव्य महल बनाया जा सके । वह स्थल विशाल हो और वहां आने की व्यवस्था सुगम हो।

कोलकाता से आते हैं कारीगर
जनकमंच निर्माण के लिए कई महीने पहले से ही कोलकाता से कारीगरों को बुला लिया जाता है। यह कारीगर काफी ऊंचाई तक बांस-बल्ली बांधने में एक्सपर्ट होते हैं।
इसके निर्माण के लिए पुरुषोत्तम टेंट हाउस के स्व.अजय कुमार गोयल उर्फ अज्जू भाई प्रारंभ से ही जुटे रहे हैं। उनका कहना था कि उन्होंने सबसे पहले जनक महल दिल्ली गेट पर सजी जनकपुरी के लिए गोवर्धन होटल में बनाया था। उसके बाद लगातार प्रति वर्ष करीब 20 साल से वे जनक मंच बनाते आ रहे । उन्होंने बताया था कि सबसे सुंदर जनक महल उन्होंने संजय पैलेस में सजी जनकपुरी में बनाया था। उसमें बहुत महीन कारीगरी की गई थी, जिससे वह एक वास्तविक महल का रूप ले चुका था । अज्जू भाई ने बताया जनकपुरी महोत्सव के  मुख्य अतिथि तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह जी थे। उन्होंने अपने भाषण में उसे वास्तविक महल समझते हुए तारीफ की। तब अमर उजाला के तत्कालीन प्रधान संपादक व आयोजन समिति के संरक्षक श्री अशोक अग्रवाल थे। संचालन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता हरीश चिमटी ने कल्याण सिंह जी बताया कि यह तो दो महीने की मेहनत से तैयार किया कृत्रिम जनक महल है तो उनका चेहरा खुशी से चमक उठा था। वे शिल्प कला के प्रभावित हुए। उन्होंने अज्जू भाई की तारीफ की थी। अज्जू भाई का कहना है कि सबसे बड़ा और विशाल जनक महल उन्होंने बल्केश्वर पार्क में बनाया था। वहां के मुख्य पार्क में काफी जगह है। उन्होंने वहां दो बार महल बनाया, जिसकी 270 फुट चौड़ाई और 130 फुट ऊंचाई रही । उनका कहना था कि उन्होंने जितने भी महल बनाए, उनमें आगरा कॉलेज  में चित्रकला विभाग के पूर्व अध्यक्ष स्व. प्रो. अश्वनी शर्मा का विशेष निर्देशन रहता था।

यहां हो चुके हैं जनकपुरी के आयोजन
क्रम संख्या-----वर्ष------स्थान--जनक बने
1-वर्ष 1984  ---- प्रतापपुरा---श्री नेत्रपाल सिंह
2-वर्ष 1985- देहली गेट-श्री सुरेंद्र शर्मा
3-वर्ष 1986-शहजादी मंडी-श्री रामगोपाल (आत्माराम एंड संस)
4-वर्ष 1987-लाजपत कुंज-श्री राम सरन बंसल
5-वर्ष 1988-जयपुर हाउस-श्री रामगोपाल
6-वर्ष 1989 प्रतापनगर-श्री गुलाबचंद जी
7-वर्ष 1990- कमला नगर-श्री वीरेंद्र सिंह परमार
8-वर्ष 1991- नेहरू नगर, श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल सीए
9-वर्ष 1992-पुरानी विजय नगर कालोनी-श्री बसंत लाल
10-वर्ष 1993-सूर्य नगर-श्री ओपी बजाज (अमर कत्था)
11-वर्ष 1994-संजय प्लेस- श्री जेएस फौजदार
12- वर्ष 1995 सदर बाजार-श्रीरामगोपाल
13-वर्ष 1996-छीपीटोला-श्री बाबा नारायन दास
14 -वर्ष 1997 जयपुर हाउस-श्री गोविंद अटैची वाले
15- वर्ष 1998-न्यू आगरा-श्री किशन बिहारी
16-वर्ष 1999-कमला नगर-श्री राम प्रकाश गर्ग (प्रकाश जेनरेटर)
17-वर्ष 2000-नेहरू नगर- श्री पुरुषोत्तमदास सीए
18-वर्ष 2001-विभव नगर-श्री सतीश मांगलिक
19-वर्ष 2002-बल्केश्वर-डा.सुदर्शन सिंघल
20-वर्ष 2003-लायर्स कालोनी-श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा
21-वर्ष 2004-कमला नगर-श्रीलक्ष्मण दास कंसल
22-वर्ष 2005-विजय नगर कालोनी, श्री बसंत लाल
23-वर्ष 2006 बल्केश्वर-डा.सुदर्शन सिंघल
24-वर्ष 2007 गांधी नगर-श्री गिर्जाज किशोर अग्रवाल
25-वर्ष 2008-कमला नगर-श्री कैलाश चंद अग्रवाल
26-वर्ष 2009-आवास विकास, सिकंदरा, श्री बनवारी लाल यादव
27-वर्ष 2010-बल्केश्वर- श्री नंदकिशोर
28-वर्ष 2011-खंदारी-श्री पूरन डावर
29- वर्ष 2012 जयपुर हाउस- श्री प्रवीन बंसल
30-वर्ष 2013 कमला नगर- श्री सुबोधचंद गर्ग
31-वर्ष 2014-दयालबाग-श्री वीरेंद्र महाजन
32-वर्ष 2015-गांधी नगर-श्री सहजीव रतन
33-वर्ष 2016-बल्केश्वर- श्री नंद किशोर गुप्ता सुगंधी
34-वर्ष 2017 आवास विकास कालोनी- श्री ललित नारायण पाराशर
35-वर्ष 2018-विजय नगर कालोनी, श्री दीपक गोयल
36-वर्ष 2019-निर्भय नगर-श्री कैलाशचंद गुप्ता
37-2022-दयालबाग-आलोक अग्रवाल

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