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यहां दहन नहीं रावण पर बरसाए जाते हैं पत्थर, जानें ,ऐसी अनोखी परंपरा के बारे में

मेवाड़ के प्रसिद्ध कृष्णधाम गढ़बोर में पांच सौ साल से जारी है यह परंपरा राजसमंद जिले के चारभुजा स्थित प्रसिद्ध कृष्णधाम गढ़बोर में दशहरे पर पत्थर से बने रावण पर गोलियां बरसाने की अनूठी परंपरा है। जहां आमतौर पर बांस और कागजों से रावण के पुतले बनाए जाते हैं।

विजयादशमी पर रावण दहन को लेकर देश भर में अनूठी परम्पराएं हैं। इनमें मेवाड़ की परम्पराएं शामिल हैं। मेवाड़ के प्रसिद्ध कृष्णधाम गढ़बोर में रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि पत्थर मारकर जीत की खुशी मनाई जाती है।

पत्थर से बने रावण पर गोलियां बरसाने की अनूठी परंपरा

राजसमंद जिले के चारभुजा स्थित प्रसिद्ध कृष्णधाम गढ़बोर में दशहरे पर पत्थर से बने रावण पर गोलियां बरसाने की अनूठी परंपरा है। जहां आमतौर पर बांस और कागजों से रावण के पुतले बनाए जाते हैं, वहीं गढ़बोर में पत्थर से बने रावण के सिर पर मटकी का मुखौटा सजाया जाता है। इस परंपरा की शुरूआत सरकारी देवस्थान विभाग के कर्मचारी करते हैं, जो पत्थरों से बनी गोलियां रावण को मारते हैं। इसके बाद कस्बेवासी तब तक रावण पर पत्थर बरसाते हैं, जब तक रावण का पुतला पूरी तरह जमींदोज नहीं हो जाता। यह घटनाक्रम लगभग डेढ़ से दो घंटे तक चलता है।

इस रावण के दस सिर नहीं, बल्कि तीन मटकियों का होता प्रयोग

यहां के बाशिन्दे बताते हैं है कि कस्बे के सरगरा समाज के लोग 11 फीट का रावण तैयार करते हैं, जो पत्थरों को जोड़कर बनाया जाता है। यहां बनाए गए रावण के दस सिर नहीं, बल्कि तीन मटकियों का प्रयोग किया जाता है। दो मटकियां पेट पर तथा गले पर एक मटकी रखी जाती है। इन मटकियों में कुमकुम भरा रहता और रावण के पुतले को फूल मालाओं से सजाया जाता है।

रावण के पुतले को गोलियों से छलनी किया जाता

चारभुजानाथ की शाम को होने वाली आरती के बाद भगवान राम की शोभायात्रा इसी मंदिर से निकाली जाती है और जवाहर सागर तालाब के किनारे मैदान में रावण का वध पत्थरों से किया जाने की परंपरा निभाई जाती है। जबकि उदयपुर संभाग में शामिल प्रतापगढ़ जिले के खेरोट गांव में गोलियों से रावण के पुतले को छलनी किया जाता है, वहीं इसी जिले के झांसड़ी गांव में मिट्टी से बनाए रावण के पुतले का दहन करने से पहले उसकी नाक काटने की परंपरा निभाई जाती है।

कमलनाथ तीर्थ में भगवान शिव से पहले की जाती है रावण की पूजा

उदयपुर जिले के प्रख्यात तीर्थ कमलनाथ में रावण की पूजा की जाती है। कमलनाथ भगवान शिव से जुड़ा तीर्थ है, जहां रावण ने तपस्या की थी। इसके बावजूद यहां शिवजी की पूजा से पहले रावण की पूजा की परंपरा है। उदयपुर शहर से लगभग 80 किलोमीटर दूर झाड़ोल उपखंड में आवारगढ़ की पहाड़ियों के बीच शिवजी का प्राचीन मंदिर ही कमलनाथ महादेव है।

 

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