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अरुणाचल में मिली रेन बैबलर की नई प्रजाति, पक्षी प्रेमियों की टीम को मिली सफलता

इससे पहले भारत में रेन बैबलर को 1988 में देखा गया था। उस समय की दो तस्वीरें है, जिन्हें अमेरिकी पक्षीविज्ञानी पामेला रासमुसेन ने 2005 में प्रकाशित किताब में शामिल किया है।

 

पक्षी प्रेमियों ने अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पूर्वी इलाके में रेन बैबलर्स की एक नई प्रजाति खोज निकाली है। इसे लिसु रेन बैबलर नाम दिया गया है। बेंगलूरू, चेन्नई और तिरुवनंतपुरम के पक्षी प्रेमियों की टीम ने सबसे पहले इस साल मार्च में चांगलांग जिले के मुगाफी चोटी इस प्रजातियों को देखा। आमतौर पर यह पक्षी म्यांमार, चीन और थाईलैंड में पाया जाता है। अरुणाचल के जंगलों इस पक्षी की खोज के बारे में दक्षिण एशियाई पक्षीविज्ञान (ऑर्निथोलॉजी) शोध पत्रिका इंडियन बर्ड्स में प्रकाशित किया गया।

इससे पहले भारत में रेन बैबलर को 1988 में देखा गया था। उस समय की दो तस्वीरें है, जिन्हें अमेरिकी पक्षीविज्ञानी पामेला रासमुसेन ने 2005 में प्रकाशित किताब में शामिल किया है। नई प्रजाति के बारे में खोज दल के सदस्य प्रवीण जे ने कहा, जिन पक्षियों को हमने देखा वे ग्रे-बेलिड रेन बैबलर के विपरीत नगा रेन बैबलर की तरह ही मीठे स्वर में गा रहीं थीं। पक्षियों की कुछ तस्वीरें और वीडियो लेने में कामयाबी मिली, उनकी मधुर आवाज को भी रिकॉर्ड किया गया है। दल के सदस्य दीपू करुथेदाथु ने बताया कि मुगाफी में जिन पक्षियों की तस्वीरें लीं उनके पेट का रंग सफेद था।

उन्होंने ग्रे-बेलिड रेन बैबलर की मौजूदा रिकॉर्डिंग व तस्वीरों से मुगाफी की तस्वीरें और आवाज मिलाने की कोशिशें की, लेकिन आकार के अलावा आवाज और रूपरंग में ये पक्षी पूरी तरह अलग हैं। इनके पेट का हिस्सा सफेद है। जब सभी तरह की जानकारियों को जोड़कर देखा गया, तो पता चला कि असल में यह एक नई प्रजाति है। खासतौर पर इसके पंख, पेट का हिस्सा किसी भी मौजूदा ज्ञात प्रजाति से मेल नहीं खाते हैं। नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान से होते हुए चांगलांग जिले के मियाओ से लगभग 82 किलोमीटर दूर लिसू समुदाय के एक गांव विजयनगर के पहाड़ों में दो दिन की चढ़ाई के बाद ही ग्रे-बेलिड रेन बैबलर दिखते हैं। वहीं, यह पक्षी देखने को मिला।

स्थानीय जनजाति से प्रेरित होकर रखा नाम
किसी प्रजाति या उप-प्रजाति के नामकरण के लिए ज्ञात प्रजातियों के साथ तुलना करने के लिए व्रेन बैबलर की नई प्रजातियों से आनुवंशिक मिलान की जरूरत होती है। हालांकि, टीम ने स्थानीय लिसु जनजाति के नाम पर इसका नाम पर रखा है। टीम के सदस्य योलिसा योबिन का कहना है कि नाफदफा में कुछ और जगहों पर भी लिसु रेन बैबलर पक्षी दिख सकते हैं। हालांकि, इसके लिए इन घने और खतरनाक जंगलों में लंबा वक्त बिताना होगा।
 

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