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यात्रा वृत्तांत (संस्मरण) 04-06जनवरी 2023

पं रामजस त्रिपाठी नारायण

मां भारती के वीर सपूतों से मिलने की उत्कंठा लिए निकल पड़ा था और बीच रास्ते में खबर मिली कि हमको वहां जाना है जहां अभी-अभी सैनिक अस्थाई रूप से डिप्लाय हुए हैं।
3:00 बजे अपने बेस पहुंचे, ठंड से सिकुड़ते हुए भोजन को  इसलिए भी नहीं छोड़े हमारे अंदर गर्मी आ जाए  तत्पश्चात लगभग 4:00 बजे हमारी यात्रा उस नये स्थान के लिए प्रारंभ हुई ।
कुछ दूर तक हम ब्लैक टॉप पर चले परंतु कुछ दूर के पश्चात नयी बन रही कच्ची सड़क पर हमारी गाड़ियां चलने लगी मुड़ने का जगह नहीं, तीन- तीन बार आगे पीछे करने के बाद गाड़ियां मूड़ती  फिर ओंय ओंय करती हुई आगे बढ़ती,  कुछ दूर जाकर हमारी गाड़ियां खड़ी हो गईं और वहां से हम उतर कर अपने साजो सामान के साथ सूर्य की अंतिम किरण के साथ गिरते-गिराते उछलते कूदते, चढ़ते चढ़ाते अपनी मंजिल को पहुंच ही गए। 
हमारे सैनिकों ने मुझे देखते ही कहा आप यहां किसलिए बाबा, मेरा एक ही जवाब था कि जहां आप हैं वहां मैं क्यों नहीं। 
रजनी की पूर्ण आभा वहां पर विजली न होने का एहसास नहीं करा रही थी। हमारे बड़े अधिकारी ने कैंप की सुरक्षा को इंश्योर किया तथा शेष को भोजन करके आराम करने के लिए हिदायत दी, तथा किसी भी प्रकार के अटैक आदि होने पर एक-एक व्यक्ति की क्या-क्या कार्यवाही होगी सबको समझाया। अंततः रात हो गई धौसा गर्ल्स स्कूल के बंद कमरे में दो- दो स्लीपिंग बैग के बीच पांव रगड़ते -रगड़ते सुबह हो गई पर . नींद नहीं आई.......।सुबह बाहर निकलने पर गिरा हुआ पानी शीशे- सा  बना हुआ दिखाई दिया और उस पर पांव रखने से दो चार बार हम गिरने से बचते दिखाई दिए।
 सामने जो कुछ था वह सब सफेद -सफेद ही था । सूर्य की रोशनी दूर पर्वत श्रृंखला पर पीली -पीली -सी नजर आ रही थी परंतु अपने पास अभी भी पानी का पाइप जाम ही था। सुबह के 10:00 बजे तक पानी लगी हुई अंगुलियां शरीर का अंग महसूस नहीं हो रही थी, इसी बीच गर्म -गर्म चाय के साथ पूड़ी और टिंड सब्जी सामने आ गई आती-आती पूड़ियां कुल्फी हो चुकी थी उनको फिर से पिघलाने के लिए हीटर पर रखा। ओ पिघलतीं तब तक चाय शरबत बन चुकी थी।
वाह !क्या आलम था, किसी तरह उनको निगलकर अंदर किया और पानी की घूंट मारी तो पहली बार खबर लगी कि मेरे दांत भी खराब  हैं , ऐसी सनसनाहट जैसे मालूम पड़ा मोबाइल चार्ज करने के लिए करंट आ गया हो। पर वास्तव में अभी तक मोबाइल डिस्चार्ज ही थी। पर सामने से योगराज जी आते हुए दिखाई दिए और उनके साथ 10-15 ग्रामीण जो हथियारबंद थे।
 योगराज जी ने आते ही नमस्कार पेश किया नमस्कार का उत्तर प्रति नमस्कार से हुआ और बातचीत के दौरान खबर लगी कि वे इस डोंडा डिस्ट्रिक्ट के धौसा गांव में अल्पसंख्यक नहीं बहुसंख्यक हैं जिस गांव में योगराज जी जैसे हेमराज जी , खेमराज जी अल्पसंख्यक हैं उनका बहुत ही बुरा हाल है उनको अपनी अस्मिता बचा पाना, अपने घर की इज्जत बचा पाना  मुश्किल ही रहता है, हालांकि इन लोगों ने भी 1990 से लेकर 2010 तक बहुत कुछ झेला है बहुत कुर्बानियां दी हैं, अपनों को खोया है तत्पश्चात संघ वालों की सिफारिश पर इनको आप सुरक्षा में थ्री नाट थ्री की बंदूकें मिली और वे स्वयं मोर्चा संभाले, तब जाकर क्रूर आतंकवादियों से इनकी इज्जत बच सकी और इनके बाप दादों की जमीन बच सकी और ए पलायन होने से बच सके, नहीं तो ए जम्मू डोडा भद्रवाह का इलाका भी आज डोगरी हिंदुओं से मुक्त हो चुका होता जैसे काश्मीर, काश्मिरी पंडितों से हो चुका है। मुझे सबसे आश्चर्यजनक बात यह लगी कि उसी बीच में एक महोदया भी अपनी राइफल लेकर आती नजर आईं बड़ी शान से कह रही थी कि मैं अपनी सुरक्षा में इसको चला सकती हूं और कुछ दिन पूर्व ही 10 सालों से  प्रयोग में नहीं आई हुई राइफलें सेना की मदद से फायर में शामिल करायी गईं थी और इससे व्ही डी सी  में एक आत्मविश्वास पैदा हुआ था कि हमारे पास सरकार के द्वारा दी गई राइफले हैं  और हम इसको चलाना भी जानते हैं यह सेना के द्वारा एक बहुत बड़ी पहल की गई थी जिसका फल उनको आत्म सुरक्षा के रूप में मिल रहा था और वे लोग सेना को बड़ी ही इज्जत की निगाह से देख रहे थे ।
फलस्वरूप कोई अपने घरों से लकड़ी लेकर पहुंचा रहा है, तो कोई बैठने की व्यवस्था के लिए कुर्सी पहुंचा रहा है तो कोई पानी पहुंचा रहा है कोई आकर बार-बार पूछ रहा की कोई जरूरत हो तो बताएं हम आपकी सेवा में तत्पर हैं।
आगे योगराज जी से बात करते-करते यह ज्ञात हुआ कि जिस संघ की कार्यप्रणाली को कभी-कभी कुछ लोग इतने निंदित ढंग से व्याख्या देते हैं पर अगर वह न होती तो 1947 के दौर में जब कवालियों ने भारत पर हमला किया था तो हमारी भारतीय सेना इतनी कारगर न होती क्योंकि इसी संघ के स्वयंसेवक भारतीय सेना के साथ जुड़ कर भारत मां की अस्मिता के लिए अपनी अस्मिता को खतरे में डाल दिए थे और भारतीय सेना का भरपूर सहयोग किए थे। और आज भी संघ के कार्यकर्ता दूर ऊंची ऊंची पहाड़ियों और ग्रामीण इलाकों में जा जाकर लोगों में जनजागृति पैदा कर रहे हैं,  सामाजिक सुधार की संभावना देख रहे हैं, नशा से मुक्ति के लिए आह्वान कर रहे हैं एवं राष्ट्र भावना जागृत करने का कार्य कर रहे  हैं।
खैर इन सब बातों के बीच देखते ही देखते शस्त्र धारी व्हीडीसी की संख्या 25-30 हो गई थी और मैं भी इस सुअवसर पूर्ण यात्रा का पूरा पूरा लाभ लेते हुए उन ग्रामीणों से  बातचीत करने लगा और उनके जीवन यापन के तरीके तथा रहन-सहन के विषय में जानकारी ली ।
सभी लोग बड़े ही चाव से मुझे देख रहे थे अपनी आंखों से मुझे ऊर्जा प्रदान कर रहे थे और मैं भी पूरी क्षमता के साथ जो कुछ अपने पास था उसको उड़ेलने की कोशिश में लग गया था ।
उनको मैं प्रेरणा के अलावा और क्या दे सकता था क्योंकि वहां पर अभी भी शिक्षा का अभाव है क्योंकि गरीबी है ।
अतः  बताया कि संसार में तीन प्रकार के बल होते हैं एक तन बल एक धन बल और एक बुद्धि बल तन बल हम अच्छा पौष्टिक भोजन खाकर शरीर को स्वस्थ रखकर और अपने भाई बंधुओं के साथ रहकर उनको सहयोग करके अपनी यूनिटी बनाकर बढ़ा सकते हैं, दूसरे धन बल को हम अपनी बुद्धि बल शिक्षा बल के द्वारा अच्छी खेती कर उद्योग कर धन बल को भी बढ़ा सकते हैं और अपने समाज के लोगों को अपने बच्चों को ऊंचे पदों पर भेजकर अपनी अस्मिता को सुरक्षित रख सकते हैं। और  तीसरे बुद्धि बल शिक्षा बल को बढ़ाने के लिए हमें अपने बच्चों को पौष्टिक भोजन खिलाकर स्कूल तक भेजकर। जानना होगा कि अच्छी शिक्षा से हीं हमारे बुद्धि बल का विकास हो सकता है।
 तथा किसी भी तरह से हमें नशे का शिकार नहीं होना चाहिए क्योंकि नशा हमारे तीनों प्रकार के बलों का नाश करता है ।देखते ही देखते इस प्रकार से बात करते हुए आधे घंटे गुजर चुके थे देखा कि 10:30 बजे भगवान भास्कर हमारे क्षेत्र में अपनी किरणों के साथ एक गर्माहट भरी सुखद गर्मी के साथ प्रकट हो गये थे। तत्पश्चात हमारे उच्च अधिकारियों के द्वारा उन को प्रेरित करते हुए उनके महत्व को बताया गया कि  उनके ही वजह से इस क्षेत्र में शांति है और उनको अपने आप को बचाते हुए किस प्रकार से कोई मुश्किल या हमला होने पर मुश्किलों से जूझना है। तत्पश्चात उनको अपनी आत्म सुरक्षा में अपनी रायफलों को कैसे प्रयोग में लाना है, उसके साथ कैसे सावधानी पूर्वक हैंडिल करना है तथा किसी मुसीबत के समय में अपने आप को कैसे छुपा कर दुश्मन को ध्वस्त करना है, इसकी  हमारे वीर सैनिकों द्वारा ट्रेनिंग दी गई तत्पश्चात हम सभी बड़ी शान से एक साथ मिलकर चाय पिए। फलस्वरूप सभी ग्रामीण खुश थे, वे यह कहते हुए विदा लिए कि आप लोगों के वजह से ही हम यहां सुरक्षित हैं और आप हमारे लिए भगवान बनकर आए हैं और जो ग्राम सरपंच थे वे कुछ नजदीक घरवालों को बतलाए कि शाम तक सैनिक भाइयों को गर्म पानी करने के लिए लकड़ियां यहां रख दी जाएं ।
तत्पस्चात् हम लोग दोपहर का भोजन किए और प्लान के अनुसार एक बहुत ही ऊंची पहाड़ी पर प्रकृति की सफेद चादर के बीच अमृत सरोवर नाम के झील के दर्शन के लिए निकले जहां पर मान्यता है कि नाग देवता विराजमान है। वहां दर्शन किया तत्पश्चात मैहल नाग मंदिर जो बहुत प्राचीन मंदिर है  दर्शन किया और मंदिर के पास एक छोटा सी झोपड़ी देखा इसके विषय में ग्रामीणों से पूछा तो यह पाया कि जो ग्राम सुरक्षा सदस्य हैं वे आकर यहां सुरक्षा करते हैं कि कोई मंदिर को नुकसान न पहुंचाए या जला न दे।
धीरे-धीरे शाम तक सूर्य की अंतिम किरण के साथ हम अपने अस्थाई शिविर में पहुंच गए, और देखा कि कुछ ग्रामीण अपने कंधों पर दो -दो, तीन -तीन लकड़ियां लिए चले आ रहे थे और कुछ पहले से ही लकड़ी रख कर चले गए थे उनके साथ शाम को पुनः चाय पिया और उनको धन्यवाद करके विदा किया। लगता है वह हमारी प्रकृति को समझ गए थे इसलिए जाते -जाते  कह गए कि सर नीचे एक मंदिर है जो बहुत ही प्राचीन  है पांडव के समय का यह मंदिर है पांडव अज्ञातवास में इसी रास्ते से गुजरे थे उसका जरूर दर्शन कीजिए। मुझे लगता है कि जो मैं जो थोड़े समय ग्रामीणों के बीच में बातचीत किया था उसका असर उनके दिमाग पर बहुत गहरा पड़ा था और वे मुझे अपना मानने लगे थे स्नेह देने लगे थे, उनकी आंखों में उनका प्यार झलक रहा था जिसके लिए मैं उनको बस नमस्कार ही कह सका हाथ हिलाकर अभिवादन दे सका। अगले दिन सुबह जब मैं अपने सैनिकों से मिलकर वापस हो रहा था तो उसी मंदिर की ओर से दर्शन करते हुए लौटा और देखा कि इतनी सर्दी में भी जो नाग देवता के मंदिर के नीचे से धारा निकल रही है वह गर्म पानी की धारा है और उसका मैं आचमन करके प्रणाम किया कुछ फोटो लिया तथा उस मंदिर के आसपास पिछले दिन मिले हुए कुछ भाई मिल गए जो मुझे अपने घरों में बुलाकर चाय पीने के लिए आग्रह किए परंतु कुछ हमारे प्रोटोकॉल और कुछ समय न होने की वजह से हाथ जोड़कर विदा लिया  तथा धन्यवाद कहकर फिर मिलने की आशा देकर अपने दूसरे गंतव्य की ओर निकल पड़ा।

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