image

कोचिंग हब में आत्महत्या का अंतहीन सिलसिला

पिछले दिनों कोटा में कोचिंग कर रही छात्रा कृति ने सरकार और अपने माता-पिता को मृत्युपूर्व अपने नोट में जो संदेश दिया है वह आंख खोलने के लिए काफी है।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

कोटा के कोचिंग हब में 04 जून को एक और होनहार छात्रा आयुषी ने जीवनलीला समाप्त कर ली। इस साल जनवरी से अब तक यह छठीं आत्महत्या है। इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना संजोए बच्चों का बीच राह में मौत के आगोश में समा जाना हृदय विदारक होने के साथ ही साथ कहीं गहरे तक सोचने को मजबूर कर देता है। आखिर क्या कारण है कि उज्ज्वल भविष्य व गरिमामय प्रोफेशन से जुड़ने की तैयारी में नई पीढ़ी के युवा राह पर उतरते ही इस कदर निराशा के दलदल में फंस जाते हैं कि बिना आगे-पीछे सोचे मौत को गले लगाने में क्षण भर भी नहीं हिचकते हैं। कोटा में कोचिंग कर रहे विद्यार्थियों में जिस तेजी से आत्महत्या का दौर चला है वह अपने आप में गंभीर होने के साथ ही बच्चों के परिजनों, कोटावासियों या राजस्थान ही नहीं देश के मनोवैज्ञानिकों, राजनेताओं, प्रशासन, शिक्षाविदों को गहरी सोच में डाल दिया है। कोरोनाकाल में कोचिंग गतिविधियां बंद होने से आत्महत्याओं का यह अंतहीन सिलसिला कुछ कम अवश्य हुआ पर कोचिंग संस्थानों के चालू होते ही आत्महत्याओं का जो सिलसिला शुरू हो गया है वह अपने आप में चिंतनीय हो जाता है।

पिछले दिनों कोटा में कोचिंग कर रही छात्रा कृति ने सरकार और अपने माता-पिता को मृत्युपूर्व अपने नोट में जो संदेश दिया है वह आंख खोलने के लिए काफी है। अपनी मां को लिखा है -'आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रही। इस तरह की मजबूर करने वाली हरकत 11 वीं पढ़ रहीं मेरी छोटी बहन के साथ मत करना, वो जो करना चाहती है, जो पढ़ना चाहती है वह उसे करने देना।' कुछ इसी तरह से सरकार को लिखा है अगर वे चाहते हैं कि 'कोई बच्चा नहीं मरे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें, यह कोचिंग खोखला बना देती है।' कृति के इन संदेशों में कितनी सच्चाई और दर्द छिपा है यह अपने आप बयां कर रहा है। आखिर बच्चों का बचपन बड़ों की ईगो के आगे टिक नहीं पा रहा है और गलाकाट प्रतिस्पर्धा का कारण बनने के साथ ही बच्चों को मानसिक दबाव और कुंठा की राह धकेल रहा है। यह सच्चाई है।

कभी राजस्थान की औद्योगिक नगरी के रूप में जाना जाने वाला कोटा शहर बीते कुछ दशकों से शिक्षा नगरी के नाम से पहचान बना चुका है। आईआईटी और इंजीनियरिंग में प्रवेश दिलाने की कोचिंग के लिए कोटा शहर की पहचान पूरे देश में कोचिंग हब के रूप में है। कुकुरमुत्ते की तरह कोटा में कोचिंग व्यवसाय ने पांव पसारे हैं। अकेले कोटा में ही कोचिंग के लिए आने वाले छात्र-छात्राओं की तादाद कोई दो से ढाई लाख तक है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में कोचिंग का व्यवसाय कोई 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का माना जा रहा है। इसमें से अकेले कोटा में कोचिंग का कारोबार एक हजार करोड़ रुपये से अधिक है। साफ है कोचिंग पूरी तरह से व्यवसाय का रू ले चुकी है। ऐसे में मानवीय संबंध या गुरु-शिष्य के संबंध कोई मायने नहीं रखते। अपनत्व या आपसी संवेदना तो दूर-दूर की बात है। कोचिंग संस्थान पांच से छह घंटों तक कोचिंग कराते है। शेष समय हॉस्टल में अध्ययन में बीतता है। पहले से ही मानसिक दबाव में रह रहे बच्चे कोचिंग संस्थानों की नियमित परीक्षाओं के माध्यम से रैंकिंग के दबाव में इस कदर रहते हैं कि संवेदनशील बच्चे तो इस दबाव को सहन ही नहीं कर पाते। कोचिंग संस्थानों के लिए तो यह निरा व्यवसाय बन कर रह गया है। उन्हें बच्चों के मनोविज्ञान को समझने की न तो जरूरत महसूस होती है और न ही इसकी परवाह। दूसरी तरफ परिजन ऊंचे-ऊंचे ख्वाब देखते हुए बच्चों का इन कोचिंग संस्थानों में प्रवेश कराकर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं। बीच सत्र में छोड़ने की स्थिति में फीस वापस नहीं करने की स्थिति में बच्चों पर दबाव बना रहता है। हॉस्टल या पेंइग गेस्ट के रूप में रहने वाले स्थान पर न सेहतमंद खाने की व्यवथा होती है न ही आपसी दुख-दर्द को बांटने वाली बातें करने वाला कोई। रैंकिंग के गिरते-चढ़ते ग्राफ के चलते बच्चे अत्यधिक दबाव में आ जाते हैं। बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ जाता है और इसका परिणाम सामने है।

कोटा में आत्महत्या की घटनाओं से केन्द्र व राज्य सरकार दोनों ही चिंतित हैं। सरकार और मनोविज्ञानियों ने अपने स्तर पर प्रयास भी शुरू किए पर वह अभी कारगर नहीं हो पा रहे हैं। कोरोना से पहले केन्द्र सरकार ने आत्महत्या के कारणों का अध्ययन कराने के लिए कमेटी गठित की तो जिला प्रशासन भी सक्रिय हुआ। बच्चों के मानसिक दबाव को कम करने के लिए कोचिंग विद फन का कांसेप्ट लाया गया। जिला प्रशासन ने कोचिंग संस्थानों के लिए गाइडलाइन जारी करने के साथ ही होप हेल्प लाइन शुरू की। जिला प्रशासन की दखल के बाद फन डे, योग, मेडिटेशन के माध्यम से पढ़ाई के तनाव को कम करने के प्रयास शुरू किए गए। परिजनों ने भी अपने बच्चों से निरंतर संपर्क बनाना शुरू किया। काउसलिंग व स्क्रीनिंग जैसी व्यवस्थाएं भी नियमित करने का प्रयास आरंभ हुआ। कोटा में कोचिंग छात्रों की आत्महत्या के कारण कोई भी रहे हों पर यह बेहद चिंतनीय है। चिंतनीय यह भी है कि कोचिंग अब संस्थागत कारोबार का रूप ले चुकी है। ऐसे में जब कोई कारोबार हो जाता है तो उसमें संवेदनशीलता की बात किया जाना बेमानी हो जाता है। केवल और केवल अपने नाम के लिए संस्थान बच्चों को मानसिक दबाव और डिप्रेशन का शिकार बना रहे हैं। यह शिक्षाविदों और समाज विज्ञानियों के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए। समय रहते इसका कोई न कोई हल खोजना ही होगा।

हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद

Post Views : 335

यह भी पढ़ें

Breaking News!!