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शारदा वंदना गीत

पं रामजस त्रिपाठी नारायण

हे !अंबे  हे!अंबिके,  हे!शारद  हे!मात ।
मेरी भवबाधा हरो! मिले ज्ञान सौगात ॥
वीणा की झंकार से, झंकृत कर दो गात ।
रोम -रोम पुलकित रहे, मानवता संजात॥

मैं जड़मति अनजान हूँ, मोटी बुद्धि विचार ।
मुझको ले लो शरण में, कर दो बेड़ा पार ॥
वर्ण शब्द अरु वाक्य का,नहीं रखूँ कुछ ज्ञान।
बोल तोतली बोलकर, बनना चहूँ महान ॥
मुझे अमरता देन हित, कर अमृत बरसात।
हे !अंबे  हे!अंबिके, हे!शारद  हे!मात ।।

मुझमें तनिक न भाव रस, सूखा सख्त स्वभाव।
अहं क्रोध का बाढ़ है, चहुँ दिस दिखे अभाव।।
सात्विक विद्या बुद्धि से, भर दो माँ आगार।
मुझको ले लो शरण में, करदो भव  से पार।।
तेरी कृपा प्रकाश से, मिट जाए कलि रात।
हे !अंबे  हे!अंबिके, हे!शारद  हे!मात ।।

माता कर ऐसी कृपा, मिले मुझे सत्संग।
विज्ञ जनों का साथ हो, मन में बढे उमंग ॥
सत्य भाव करुणा दया,का मुझमें हो वास।
जो बोलूँ  सो सत्य हो, जग में भरूँ सुहास।।
 कृपा आपकी प्राप्त कर, होए भोर विभात।।
हे !अंबे हे!अंबिके, हे!शारद  हे!मात ।।

मातु शारदे अंबिके, धरूँ तुम्हारा ध्यान ।
सात्विकता की बाढ़ हो, गलित होय अभिमान॥
तेरी कृपा प्रसाद से, हो मेरा कल्याण ।
जागृत सत्व विवेक हो, अनुप्राणित हो प्राण।।
खुशियों का साथी बनूँ, आए सज बारात।
हे !अंबे  हे! अंबिके, हे!शारद  हे!मात ।।

शारद ऐसी कर कृपा, मिल जाएँ सत्संग।
मानस का तम रज घटे, सात्विक उठे उमंग।
इसी भाव कविता रचूँ, पुलकित हो संसार।
कविताओं में आ बसे, तेरा सब उपचार।।
काव्य सरस नवगीत सुन, होए पुलकित गात।।
हे !अंबे  हे! अंबिके, हे! शारद  हे! मात ।

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