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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस. पर विशेष

भारतीय योग कला से हो रहा विश्व का कल्याण : डॉ दिग्विजयकुमार शर्मा

हमारी भारतीय शिक्षा, संस्कृति में योग शिक्षा सर्वोत्तम रही है। योग शब्द का अर्थ ‘एक्य’ या ‘एकत्व’ होता है जो संस्कृत धातु ‘युज’ से निर्मित है। युज का अर्थ होता है ‘जोड़ना’ मिलना, एक होना रहा है। भगवतगीता के अनुसार ‘‘योग कर्मसु कौशलम्’’ अर्थात् योग से कर्मों में भी व्यापकता, कुश्लाता आती है। व्यावाहरिक स्तर पर योग शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने का एक साधन है। न्याय¸ वैशेषिक¸ सांख्य¸ वेदान्त एवं मीमांसा। इनकी उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 ई0 पू0 में हुई थी। पहले यह विद्या गुरू-शिष्य परम्परा के तहत पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी को हस्तांतरित होती थी। यह योग भारतीय ज्ञान की हजारों वर्ष पुरानी शैली है। हजारों मूर्तियाँ इसके संबंध में योग की स्थिति में अभी तक प्रमाणिक रूप में है। भगवतगीता में अनेकों बार योग शब्द का उल्लेख किया गया है। योग के साक्ष्य सिंधु घाटी, वैदित सभ्यता तथा बौद्ध एवं जैन दर्शन में किसी-न-किसी रूप में प्राप्त हुआ है। योग विद्या को वेदों में विशेष स्थान प्राप्त था। वेदों का मुख्य प्रतिपाद्य विषय आध्यात्मिक उन्नति करना है। इसके लिये यज, उपासना, पूजा व अन्य कार्यक्रमों का वर्णन किया गया है। इन सबसे पूर्व योग साधना का विधान किया गया है। ऋग्वेद में कहा गया है कि -
यस्मादृते न सिध्यति यज्ञोविपश्चितश्रन।
स धीनां योगमिन्वति।।
इस सूत्र से पता चलता है कि वेदों में योग को कितना महत्त्व दिया गया है। विष्णु पुराण में भी कहा गया है कि ‘‘जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।’’ योग के प्रसिद्ध ग्रंथों में पतंजलि द्वारा रचित 'योगसूत्र' एवं वेदव्यास द्वारा रचित 'योगभाष्य' का विशेष महत्त्व है। नागेश भट्ट द्वारा रचित 'योगसूत्रवृत्ति' भी विख्यात है। योग के आठ अंगों को अष्टांग कहते हैं जिससे आठों आयामों का अभ्यास एक साथ किया जाता है। यम, नियम, आसन, प्रणायाम, धारणा, ध्यान, प्रात्याहार, समाधि को योग के आठ अंग माना जाता है। योग में प्राणायाम का विशेष महत्त्व है। प्राण का अर्थ जीवन शक्ति एवं आयाम का अर्थ ऊर्जा पर नियंत्रण होता है। अर्थात् श्वास लेने संबंधी कुछ विशेष तकनीकों द्वारा जब प्राण पर नियंत्रण किया जाता है तो उसे प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम के तीन मुख्य प्रकार होते हैं- अनुलोम-विलोम, कपालभाति, प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम।

भारतीय धर्म और दर्शन में योग का अत्यधिक महत्त्व है। आध्यात्मिक उन्नति या शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये योग की आवश्यकता एवं महत्त्व को प्राय: सभी दर्शनों एवं भारतीय धार्मिक संप्रदायों द्वारा एकमत से स्वीकार किया गया है। जैन और बौद्ध दर्शनों में भी योग के महत्त्व को स्वीकृति प्राप्त है। वर्तमान समय अर्थात् आधुनिक युग में योग के महत्त्व में और अधिक अभिवृद्धि हुई है। मनुष्यों में बढ़ती व्यस्तता एवं मन की व्याकुलता इसके प्रमुख कारणों में से हैं। आधुनिक मनुष्य को आज योग की अत्यधिक आवश्यकता हो गई है। मन और शरीर अत्यधिक तनाव, प्रदूषण एवं भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण रोगग्रस्त होते जा रहे हैं। व्यक्ति के अंतर्मुखी और बहिर्मुखी स्थिति में असंतुलन आ गया है। इसका श्रेय भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी को जाता है , एक खास बात यह भी है कि गर्मियों में सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित होता है एवं उत्तरी गोलार्द्ध में 21 जून वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है। सर्वप्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन 21 जून, 2015 को किया गया था जिसने विश्व भर में कई कीर्तिमान स्थापित किये। वर्तमान में योग भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिये प्रासांगिक विषय बना हुआ है। योग के महत्त्व को देखते हुए आज पूरा विश्व इसे पूरे मनोयोग से अपना रहा है। माननीय मोदी जी के अनुसार, योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिये एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवनशैली में यह चेतना बनकर हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करता है। श्री श्री रविशंकर के अनुसार ‘‘योग सिर्फ व्यायाम और आसन ही है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्त्व का स्पर्श लिये हुए एक आध्यात्मिक ऊँचाई है, जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की एक झलक देता है। ओशो के अनुसार ‘‘योग को धर्म, आस्था और अंधविश्वास के दायरे में बाधना गलत है। योग विज्ञान है, जो जीवन जीने की कला है। साथ ही यह पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। जहाँ धर्म हमें खूंटे से बाँधता है, वहीं योग सभी तरह के बंधनों से मुक्ति का मार्ग है।’’ स्वामी रामदेव के अनुसार ‘‘मन को भटकने न देना और एक जगह स्थिर रखना ही योग है।’’ सही मायनों में योग भारत के पास प्रकृति प्रदत्त ऐसी अमूल्य धरोहर है, जिसका भारत सदियों से शारीरिक और मानसिक लाभ उठाता रहा है, लेकिन कालांतर में इस दुर्लभ धरोहर की अनदेखी का ही नतीजा है कि लोग तरह-तरह की बीमारियों के मकड़जाल में जकड़ते गए। वैसे तो स्वामी विवेकानंद ने भी अपने शिकागो सम्मेलन के भाषण में सम्पूर्ण विश्व को योग का संदेश दिया था लेकिन कुछ वर्षों पूर्व युगों युगों की योग पद्यति को योगगुरु स्वामी रामदेव द्वारा योग विद्या को घर-घर तक पहुंचाने का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जिससे आमजन योग की ओर आकर्षित होते गए। आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में योग का महत्व कई गुना बढ़ गया है।

कोरोना संक्रमण को लेकर समस्त विश्व में भय का माहौल बना हुआ है। ऐसे में लोग कोरोना की दो लहर निकल चुकी हैं वेक्सिनेशन भी बड़े स्तर पर सभी को लगाई जा रही है इसके पश्चात तीसरी लहर जो बच्चों के लिए बहुत ही खतरनाक बताई जा रही है उससे बचने के लिए अलग-अलग उपाय कर रहे हैं। लोग कई प्रकार के नुस्खे अपनाने के साथ-साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए पुरानी परंपराओं की ओर भी लौट रहे हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है योग। योग के नियमित अभ्यास से शरीर स्वस्थ तो रहता ही है साथ-साथ हमारी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में काफी मददगार साबित होता है। योगासन से यह खांसी, जुखाम, वायरल बुखार, कमर दर्द, सांस लेने की तकलीफ आदि बीमारियां भी दूर भागती हैं। योग करने वाले व्यक्तियों में स्फूर्ति व ऊर्जा का संचार होने के साथ-साथ शरीर की नाड़ियों की शुद्धि भी होती है। साथ ही रोग से लड़ने की क्षमता भी मिलती है। कोरोना काल में आयुर्वेदिक औषधियों का इस्तेमाल कर लोग काढ़ा से अपना इम्युनिटी बूस्ट कर रहें है तो वहीं कोरोना के कारण लोगों में योग को लेकर जागरूकता भी बढ़ी है। अपने आप को स्वस्थ रखने के लिए लोग इन चीजों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।

भारत सरकार के 'आयुष मंत्रालय' के अनुसार इस वर्ष योग दिवस पर सामूहिक रूप से किसी स्थान पर योग करने के बजाय लोग अपने घरों में एक तय समय पर योग करेंगे। आज योग का ज्ञान जिस सुव्यविस्थत तरीके से हमें उपलब्ध है उसका श्रेय महर्षि पतंजलि को जाता है। पहले योग के सूत्र बिखरे थे जिन्हें समझना मुश्किल था। महर्षि पतंजलि ने इन्हें समझते हुए इन्हें सुव्यवस्थित किया और अष्टांग योग का प्रतिपादन किया। भारत के षट् दर्शनों में महर्षि पतंजलि का योग दर्शन बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। योग शब्द की परिभाषा महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में ‘‘योगश्रितवृत्ति निरोध:’’ के रूप में दी जिसका अर्थ होता है चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग कहते हैं। इसके अभ्यास एवं वैराग्य को आवश्यक बताया जाता है- ‘‘अभ्यास वैराग्याम्यां तन्निरोध:’’ और चित्त की वृत्तियों के निरोध से होने वाली उपलब्धि को ‘‘तदा द्रष्ट: स्वरूपऽवस्थानम्’’ माना गया है अर्थात् इस समय द्रष्टा की अपने स्वरूप में स्थिति हो जाती है। इस अवस्था की प्राप्ति के लिये जो साधन बताए गए हैं, वे ही अष्टांग योग कहलाते हैं। अनेक बड़े महर्षियों, योगियों और गुरुओं द्वारा योग को परिभाषित किया गया है। देखा जाए तो योग कोई धर्म नहीं है, यह जीने की एक कला है, जिसका लक्ष्य है- स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन। योग के अभ्यास से व्यक्ति को मन, शरीर और आत्मा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। यह भौतिक और मानसिक संतुलन द्वारा शांत मन और संतुलित शरीर की प्राप्ति कराता है। तनाव और चिंता का प्रबंधन करता है। यह शरीर में लचीलापन, मांसपेशियों को मजबूत करने और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है। इसके द्वारा श्वसन, ऊर्जा और जीवन शक्ति में सुधार होता है। इससे प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार और स्वस्थ्य जीवन शैली बनाए रखने में मदद मिलती है। योगाभ्यास से कोरोना से लड़ा जा सकता है। दरअसल कोरोना का संक्रमण उन लोगों को जल्दी अपना शिकार बना सकता है, जिनकी इम्युन पावर बहुत कमजोर होती है। आमतौर पर होने वाले संक्रमण में भी अगर किसी व्यक्ति की इम्युनिटी कमजोर होती है, तो वह जल्दी बीमार हो जाता है। ऐसे में योग इम्युन पावर बढ़ाता है। 'कपालभाति' एक प्रचलित प्राणायाम है। इस प्राणायाम को करने की प्रक्रिया में सांस लेते हैं और छोड़ते हैं। जिससे आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी और आप किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचे रहेंगे। 'अनुलोम विलोम' से भी मजबूत होती है इम्युनिटी जिससे आपको सामान्य रूप से होने वाली सर्दी खांसी और जुकाम तक नहीं होती है। दरअसल अनुलोम विलोम प्रणायाम को करने से श्वसन क्रिया बेहतर हो जाती है। इसके अलावा रिसर्च के अनुसार यह भी बताया जा चुका है कि इससे आपके शरीर की इम्युनिटी काफी मजबूत होती है। 'भस्त्रिका प्राणायाम' भी कोरोना वायरस  से संक्रमित होने से बचाता है। भस्त्रिका प्रणायाम को करने से शरीर की कोशिकाएं स्वस्थ बनी रहती हैं और श्वसन क्रिया से जुड़ी कोई भी बीमारी आपको नहीं होगी। साथ ही साथ आपकी इम्युनिटी भी मजबूत करता है। इसके कारण आप कोरोना वायरस के संक्रमण से बचे रहेंगे भी।

वर्तमान समय में योग के इस महत्त्व को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा योग की बढ़ती स्वीकारोक्ति एवं पश्चात् को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस तरह की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत लोगों तथा समाजों एवं संस्कृतियों के मध्य सांस्कृतिक एवं सभ्यागत वार्ता बनाए रखने में मदद करती है और इस स्वीकृति से पूरे विश्व को लाभ पहुँचता है। आज विश्वभर में अनेक विवि, संस्थानों और एनजीओ आदि के द्वारा योग शिक्षा को सभी प्राप्त कर लाभ ले रहे हैं। हमारी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हमारे जीवन में योग बहुत ज़रूरी और उपयोगी है। यह हमारे शरीर, मन एवं आत्मा के बीच सन्तुलन अर्थात् योग स्थापित करना होता है। वहीं, योग की प्रक्रियाओं में जब तन, मन और आत्मा के बीच सन्तुलन एवं योग (जुड़ाव) स्थापित हो जाता है तब ही आत्मिक सन्तुष्टि, शान्ति एवं चेतना का अनुभव होता है। योग ना सिर्फ हमारी शरीर को शक्तिशाली एवं लचीला बनाए रखने में मदद करता है बल्कि यह हमें तनाव से भी मुक्ति दिलाता है। यह शरीर के जोड़ों एवं मांसपेशियों में लचीलापन लाता है और मांसपेशियों को मजबूत बनाए रखता है। यही नहीं, यह हमारी शारीरिक विकृतियों को काफी हद तक ठीक करता है। शरीर में रक्त-प्रवाह को सुचारू करता है तथा पाचन-तन्त्र को मजबूत भी बनाता है। इन सबके अतिरिक्त योग हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्तियां भी बढ़ाता है और कई प्रकार की बीमारियां जैसे कि अनिंद्रा, तनाव, थकान, उच्च रक्तचाप, चिन्ता इत्यादि को दूर करता है तथा शरीर को ऊर्जावान भी बनाता है। आज के इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में स्वस्थ रह पाना किसी चुनौती से कम नहीं है। अतः हर आयु-वर्ग के स्त्री-पुरूष के लिए योग बहुत उपयोगी होता है।

आज की स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि योग शिक्षा की बेहद आवश्यकता है, क्योंकि सबसे बड़ा सुख अगर कुछ है तो वह हमारे शरीर का स्वस्थ होना है। हमारा शरीर स्वस्थ है तो आपके पास दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। स्वस्थ व्यक्ति ही देश और समाज का हित कर सकता है और इस व्यस्ततम और भागमभाग भरी ज़िंदगी में खुद को स्वस्थ एवं ऊर्जावान बनाए रखने के लिए योग बेहद आवश्यक है।

डॉ दिग्विजयकुमार शर्मा
प्रोफेसर, शिक्षाविद, साहित्यकार
पत्रकार, मोटिवेशनल स्पीकर, आगरा

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