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स्थिरीकरण और संतुलन अपरिहार्य 

डॉ दिलीप अग्निहोत्री 

लखनऊ। भारत में जनसँख्या के स्थिरीकरण और संतुलन दोनों पर गंभीरता से विचार करना होगा. यह भविष्य के प्रति वर्तमान पीढ़ी की जिम्मेदारी है. किन्तु इस गंभीर मसले को भी विपक्ष वोटबैंक नजरिये से देख रहा है. इसका मतलब है कि उसे केवल अपनी वर्तमान राजनीति की चिंता है. भावी पीढ़ी की उसे कोई परवाह नहीं है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसँख्या के स्थिरीकरण और संतुलन का विषय उठाया. लेकिन प्रतिपक्ष ने इसे लोकतंत्र से जोड़ दिया. यह दिखाने का प्रयास किया गया जैसे लोकतंत्र की चिंता केवल उसे है. योगी आदित्यनाथ का कहना समाज विज्ञान के आधार पर बिल्कुल सही था. उनका कहना था कि  किसी एक वर्ग की जनसँख्या में अप्रत्याशित वृद्धि  अशांति को जन्म देती है. भारत विविधताओं का देश है. यहां की जनसँख्या में संतुलन कायम रखना अपरिहार्य है. जिन्होंने योगी के इस कथन का विरोध किया है, उन्हें अपने शासनकाल में कैराना  आदि कस्बों की दशा पर विचार करना चाहिए. यहां जनसँख्या में असंतुलन के दुष्परिणाम दिखाई देने लगे थे. तत्कालीन सरकार इसका समाधान करने में विफल थी.क्योंकि यह उसके लिए वोटबैंक का विषय था. कश्मीर घाटी 
पश्चिम बंगाल केरल के अनेक इलाक़ों में यही दशा रही है. आश्चर्य यह कि विपक्ष इस विषम स्थिति को जानबूझकर कर देखना नहीं चाहता. योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि बढ़ती जनसंख्या समाज में व्याप्त असमानता समेत प्रमुख समस्याओं का मूल है। समुन्नत समाज की स्थापना के लिए जनसंख्या नियंत्रण प्राथमिक शर्त है. जनसंख्या से बढ़ती समस्याओं के प्रति स्वयं व समाज को जागरूक करने का प्रण लेना चाहिए। जनसँख्या स्थिरीकरण के लिए जागरूकता प्रयासों के क्रम में स्कूलों में हेल्थ क्लब बनाये जाने का अभिनव प्रस्ताव है। डिजिटल हेल्थ मिशन की भावनाओं के अनुरूप नवजातों किशोरों और वृद्धजनों की डिजिटल ट्रैकिंग की व्यवस्था की भी बात है। सभी समुदायों में जन सांख्यकीय संतुलन बनाये रखने,उन्नत स्वास्थ्य सुविधाओं की सहज उपलब्धता, समुचित पोषण पर भी जोर दिया गया। जिन देशों की जनसंख्या अधिक होती है, वहां जनसांख्यकीय असंतुलन घातक होता है.इससे धार्मिक जनसांख्यिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इसलिए जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयास सभी वर्गों पर समान रूप से लागू होने चाहिए.
विपक्ष ने राष्ट्रीय महत्त्व के इस विषय को भी राजनीति के हवाले कर दिया. ट्वीट किया गया कि अराजकता आबादी से नहीं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की बर्बादी से पैदा होती है। भारत में जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास दशकों से चल रहे है। सरकार द्वारा संचालित अभियान के देश ने दो स्वरूप देखे है। आपात काल के दौरान जनसँख्या नियंत्रण नीति जोर जबरदस्ती पर आधारित थी। लेकिन आपात काल की समाप्ति के बाद इसको नकार दिया गया। शेष अवधि में प्रचार व सहायता के माध्यम से जनसँख्या नियंत्रण का अभियान चलाया गया। लेकिन इसका भी पर्याप्त लाभ नहीं हुआ। जाहिर है कि यह विषय दशकों पुराना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विषय को उठाया था। जनसँख्या नियंत्रण के दोनों स्वरूपों की विफलता सामने है। इसलिए नए रास्ते की तलाश का प्रयास किया जा रहा है। अर्थात यह विषय पुराना है,लेकिन समाधान का तरीका अवश्य नया है। आपात काल के दौरान ही ब्यालीसँवा संविधान संशोधन पारित किया गया था। इसके द्वारा समवर्ती सूची में जनसंख्या नियंत्रण एवं परिवार नियोजन विषय जोड़ा गया था। ऐसे में केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा इससे संबंधित अधिनियम बनाना असंवैधानिक नहीं हो सकता। करीब दो दशक पहले भी सविधान समीक्षा आयोग ने केंद्र सरकार को इससे संबंधित निर्देश दिया था। कहा गया कि वह जनसंख्या नियंत्रण संबंधी कानून बनाएं। इस समय दर्ज याचिका में सविधान समीक्षा योग की सिफारिशों को लागू करने की बात कही गई है। जनसँख्या नियंत्रण का संबन्ध विकास व संसाधनों से भी जुड़ा है। संसाधनों की भी एक सीमा होती है। जनसँख्या व संसाधनों के बीच एक संतुलन होना चाहिए। अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि से संसाधनों का अभाव होने लगता है। सबसे पहले इसका प्रतिकूल प्रभाव गरीबों पर पड़ता है। जिस वस्तु का अभाव होता है,उसकी कीमत बढ़ जाती है। धनी वर्ग उनको खरीद सकता है। जबकि गरीबों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है। जनसँख्या की अनियंत्रित वृद्धि विकास में बाधक भी साबित हो सकती है। इससे संसाधनों पर दवाब बढ़ता है। लोगों के जीवन स्तर में कमी आती है। भारत के लिए यह स्थिति विशेष चिंता का विषय है। भारत के पास विश्व मात्र दो प्रतिशत भूभाग है। जबकि यहां पर विश्व की बीस प्रतिशत जनसँख्या निवास करती है। भारत की जनसंख्या वर्तमान में एक सौ पैंतीस करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले कुछ वर्षों में चीन भी भारत से पीछे हो जाएगा। जनसँख्या के मामले में भारत सबसे बड़ा देश हो जाएगा। जिस गति से जनसँख्या बढ़ रही है, उसके अनुरूप संसाधनों की व्यवस्था संभव ही नहीं है। राजनीतिक दल चाहे जो दावा करें,वह संसाधनों का सृजन नहीं कर सकते। जो लोग जनसँख्या नियंत्रण का विरोध करते है,उन्हें संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता के संबन्ध में भी विचार व्यक्त करना चाहिए। जनसंख्या का स्थिरीकरण होना अपरिहार्य है। 1991 से 2021 के बीच उत्तर प्रदेश की आबादी एक सौ बीस प्रतिशत बढ़ी थी। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। तब प्रदेश की आबादी तेरह करोड़ थी। अब यह बढ़कर पच्चीस करोड़ से अधिक हो गई है। यह माना गया कि बढ़ती जनसंख्या से विकास व संसाधनों से संबंधित अनेक प्रकार की समस्याएं उतपन्न हो रही हैं। इस आधार पर समाज में दो वर्ग है। एक वर्ग ने स्वेच्छा से जनसँख्या नियंत्रण को स्वीकार किया है। यह उनका समाज व देश के प्रति सहयोग भी है। दूसरे वर्ग ने जनसँख्या नियंत्रण को स्वीकार नहीं किया है। इस कारण संसाधनों पर दबाब बढ़ रहा है। सहयोग करने वालों को प्रोत्साहन देना चाहिए। जबकि ऐसा ना करने वालों को उन्हीं सीमित संसाधनों से सुविधा प्रदान करते रहने का औचित्य नहीं है। जनसंख्या नियंत्रण परिवार नियोजन से अलग है। सरकारी संसाधन और सुविधाएं उन लोगों को उपलब्ध हो जो जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग कर रहे हैं। विशाल जनसंख्या एक संसाधन तभी होता है जब ईज ऑफ लिविंग का स्तर ठीक हो. योगी आदित्यनाथ ने कहा कि था कि मानव की आबादी को सौ करोड़ तक होने में लाखों वर्ष लगे थे.लेकिन सौ से पांच सौ करोड़ होने में दो शताब्दी भी नहीं लगी. इस वर्ष के अंत तक विश्व की आबादी आठ सौ करोड़ होने की सम्भावना है। जनसंख्या स्थिरीकरण में जागरूकता का सबसे अधिक महत्व है। यह जागरूकता केवल स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी ही नहीं है। नगर विकास,ग्राम्य विकास, शिक्षा आदि विभागों को भी इससे जुड़ना होगा। हमने मस्तिष्क ज्वर के नियंत्रण में अन्तर्विभागीय समन्वय के महत्व को देखा है.जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास सफलतापूर्वक
संचालित करने की आवश्यकता है. लेकिन जनसांख्यिकीय असंतुलन नहीं होना चाहिए. योगी ने कहा कि ऐसा ना हो कि किसी एक वर्ग की आबादी बढ़ने की स्पीड,उनका प्रतिशत ज्यादा हो और जो मूल निवासी हों उन लोगों की आबादी को जागरूकता और इंफोर्समेण्ट से नियंत्रित कर दिया जाए। स्पष्ट है कि जनसँख्या पर योगी के विचार देश के व्यापक हित में है. उनके लिए यह विषय राजनीति या चुनाव से जुड़ा हुआ नहीं है. दूसरी तरफ विपक्ष का नकारात्मक रुख एक बार फिर उजागर हुआ. जिन विषयों पर राष्ट्रीय सहमति होनी चाहिए, उस पर भी विपक्ष अपनी वोटबैंक सियासत छोड़ने को तैयार नहीं है.

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