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प्रवचन,ज्ञान,दर्शन एवम चारित्रय मोक्ष के मार्ग हैं: जैन मुनि मणिभद्र

डीके श्रीवास्तव

आगरा। मोक्ष को प्राप्त करने के लिए क्या साधना करनी पड़ती है, इस मर्म को बतलाते हुए श्रमण भगवान महावीर ने बतलाया है कि ज्ञान, दर्शन और चारित्रय यह मोक्ष के मार्ग हैं। हमारे अंदर सम्यक ज्ञान जब होता है, तो हमारी आत्मा प्रकाशित होती है। आत्मा के दीपक 1 अकाकाकाको प्रज्ज्वलित होने का अवसर मिलता है। इसलिये ज्ञान को नेत्र कहा गया है, दृष्टि कहा गया है, दीपक कहा गया है। ज्ञान दीपक के समान होता है तो दीपक प्रकाशमान है तो वह चारित्रय है। यह उद्गार जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र महाराज ने महावीर भवन स्थानक में प्रतिदिन प्रात: 9 से 1० बजे तक होने वाली धर्म सभा में श्रावकों के सम्मुख रखे। 
उन्होंने आगे बताया कि जब हमें ज्ञान और दर्शन की उपलब्धि होती है और इस उपलब्धि के बाद जब हम इसका उपयोग करते हैं और आचरण जब हमारे जीवन में आता है तो वह आचरण हमें मंजिल तक पहुंचाने मेें सहयोग करता है। चारित्रय का अर्थ शास्त्रों में बताया है जो जीव को कर्म से रहित कर दे उसे चारित्रय कहते हैं, हम लोग अनादिकाल से कर्म करते आ रहे हैं। उसे मुक्त करने में ज्ञान दर्शन और चारित्रय की बहुत बड़ी भूमिका होती है। ज्ञान जब उपलब्ध हो जाता है तो जीवन में दर्शन आ जाता है और ज्ञान और दर्शन के प्रतिफल को ही चारित्रय बोला गया है। चारित्रय और धर्म एक ही हैं। चारित्रय को धर्म भी कहा जा सकता है। हम अक्सर यह कहते हैं कि अमुक व्यक्ति का चारित्रय पवित्र और उज्जवल है तो हमारी भावना पवित्र है। भगवान महावीर ने कहा है कि तुम्हारा जो धर्म है वह तुम्हारा चारित्रय है। 
उन्होंने आगे बताया कि बिना श्रावक के साधु का चारित्रय पल नहीं सकता और बिना साधु के श्रावक बन नहीं सकता। इसलिये श्रावक को साधु की और साधु को श्रावक की आवश्यकता होती है। इसलिये भगवान ने इसे तीर्थ कहा है।  उन्होंने बतलाया कि तीर्थ दो प्रकार के होते हैं एक ब्राह्य जैसे कि पालिकाना, सम्मेद शिखर जी यानिकि हिंदूओं अनुसार मथुरा, वृंदावन। ये तीर्थ हैं। दूसरा तीर्थ भावतीर्थ। जिसकी स्थापना भगवान या तीर्थंकर करते हैं जिसमें साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाओं का संगम होता है। उन्होंने समझाया कि आप कहीं जाते हैँ तो आप घर से कार में निकलते हैं जिसके चार पहिये होते हैं लेकिन यदि एक पहिया पंक्चर हो जाये या पहिया खराब हो जाये तो गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती है। इसी प्रकार धर्म का तीर्थ साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका ये जो चार तीर्थ हैं । इन चारों तीर्थ के बिना संसार के भवसागर से तरना असम्भव होता है। 
इससे पूर्व जैन मुनि पुनीत ने नवकार मंत्र की महिमा का बखान किया। मुनि विराग ने सुमधुर भजन का गायन किया।  इस चातुर्मास पर्व में उमा जैन की पांचवे दिन की तपस्या चल रही है। आयंबिल की तपस्या वर्षा भंडारी एवं नवकार मंत्र के जाप का लाभ संगीता सकलेचा परिवार ने लिया। आज की धर्मसभा में संजय एवं राजीव चप्लावत द्वारा गौतम वंदना एवं मंगेश सोनी, वर्षा, संजीव भंडारी ने सुमधुर भजनों की प्रस्तुति दी। राजेश सकलेचा ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस दौरान प्रेमचंद्र जैन, नरेश चप्लावत, सुरेश जैन, सुमित्रा जैन, अशोक जैन गुल्लू, रेनू जैन सहित अनेक धर्मप्रेमी उपस्थित थे।

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