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तेल बेचने से Wipro तक कैसा रहा अजीम प्रेमजी का सफर? जानिए सबसे बड़े दानवीर की कहानी

साल 2022-21 में अजीम प्रेमजी ने रोजाना 27 करोड़ रुपये के हिसाब से दान किए। इस दौरान उन्होंने 9713 करोड़ रुपये का डोनेट किया था। अजीम प्रेमजी बताते हैं कि वो अपनी मां से काफी प्रभावित थे।

 21 साल का नौजवान जो अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (Stanford University America) में पढ़ाई कर रहा था। उसके पास अचानक एक दिन मां का फोन आता है कि तुम्हारे पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। घर वापस आ जाओ। अचानक सामने खड़ी हुई इस मुसीबत के बाद भी वह नौजवान घबराया नहीं। पिता के द्वारा पीछे छोड़ी गई कंपनी की कमान को अपने हाथ में लिया। और देखते ही देखते दुनिया के अरबपतियों की लिस्ट में शामिल हो गया। हम बात कर रहे हैं दुनिया के सबसे बड़े दानवीरों में से एक आईटी कंपनी विप्रो (Wipro) के संस्थापक अजीम प्रेमजी (Azim Premji Story) की, जिनका आज 77वां जन्मदिन है। आइए जानते हैं शून्य से शिखर तक पहुंचने का उनका सफर कैसा रहा?

दादा चावल के व्यापारी थे। 

अपने 75वें जन्मदिन पर अपनी कहानी साझा करते हुए अजीम प्रेमजी (Happy Birthday Azim Premji) बताते हैं कि उनके दादा चावल के व्यापार से जुड़े थे। तब के दौर में उनकी साप्ताहिक आमदनी 2 रुपये थी। 1945 में उनके दादा की मौत के बाद अजीम प्रेमजी के पिता मोहम्मद हुसैन हसन प्रेमजी 21 साल की उम्र में कंपनी को सम्भालते हैं। 

जिन्ना ने पाकिस्तान आने का दिया ऑफर

अजीम प्रेमजी के पिता ने वेस्टर्न वेजीटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड (Western Indian Vegetable Limited) नाम से एक कंपनी शुरू की। इस कंपनी के जरिए वो वानस्पति तेल के कारोबार में उतरे। कंपनी के दो साल भी पूरे नहीं हुए कि भारत के दो टुकड़े हो गए। अजीम प्रेमजी के पिता को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तरफ से बुलावा आया। लेकिन उन्हें इस ऑफर को नकार कर भारत में रुकने का फैसला किया। 1966 अजीम प्रेमजी पिता की मौत 51 साल की उम्र में हो जाती है। तब अजीम प्रेमजी पढ़ाई बीच में छोड़कर कंपनी की कमान अपने हाथ में लेते हैं। और परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला करते हैं। 

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आइटी सेक्टर में उतरने का बना लिया मन 

पिता की मृत्यु के बाद के शुरुआती कुछ साल अच्छे नहीं रहे। वेस्टर्न वेजीटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड से लगातार नुकसान हो रहा था। लेकिन इस मुश्किल समय में अजीम प्रेमजी ने हौसला नहीं खोया। जल्द ही कंपनी ने रफ्तार पकड़ ली। और फिर उससे मुनाफा भी कामने लगे। अमेरिका से लौटे प्रेमजी समझ चुके थे कि आने वाले समय आईटी का है। यही वजह है कि उन्होंने इस सेक्टर में किस्मत आजमाने का फैसला किया। यही वह समय था जब अजीम प्रेमजी ने विप्रो (Wipro) को शुरू किया। 

1979 में विप्रो ने पहले कर्मचारी को नौकरी पर रखा 

अगस्त 1979 में विप्रो ने अपने कर्मचारी को नौकरी पर रखा। दो महीने बाद विप्रो ने मिनी कंप्यूटर्स को डेवलेप, मैन्युफैक्चरिंग और मार्केटिंग के लिए आवेदन किया। उसके बाद विप्रो साल दर साल नई ऊचाईओं तक पहुंचता गया। 1995 में 30 साल बाद अजीम प्रेमजी ने अपनी पढ़ाई स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी पूरी की। इसी बीच साल विप्रो ने 1996 में कंपनी का हेडक्वार्टर बेंगलुरू शिफ्ट कर दिया। 

कलयुग के कर्ण!

अपने 75वें जन्मदिन पर एक वीडियो में वो बताते हैं कि उनकी मां लोगों की सेवा करती थी। वे कहते हैं, 'तब हम बहुत अमीर नहीं थे लेकिन मां लोगों से मदद लेकर अपनी सेवाएं देती थी।' इसी वीडियो में अजीम प्रेमजी बताते हैं कि वो अपनी मां से काफी प्रभावित थे। साल 2022-21 में अजीम प्रेमजी ने रोजाना 27 करोड़ रुपये के हिसाब से दान किए। इस दौरान उन्होंने 9713 करोड़ रुपये का डोनेट किया था। 

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पद्मविभूषण से हो चुके हैं सम्मानित 

साल 2011 में अजीम प्रेमजी को भारत का दूसरा सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। जेआरडी टाटा से काफी प्रभावित रहने वाले अजीम प्रेमजी 31 जुलाई 2019 को विप्रो के चेयरमैन के पद से रिटायर हो गए। मौजूदा समय में उनके बड़े बेटे रिशद प्रेमजी विप्रो के चेयरमैन हैं।

 

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