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महान क्रांतिकारी महर्षि अरविंद घोष, सरदार अजीत सिंह की 75 वीं पुण्यतिथि पर विशेष

रीना त्रिपाठी

15 अगस्त को जब आज हम स्वतंत्रता की हीरक जयंती मना रहे हैं तब भारत माता के दो महान सपूत, महान क्रांतिकारी महर्षि अरविंद घोष की 150 वी जन्म जयंती और शहीदे आजम भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह की 75 वीं पुण्यतिथि पर इन दो महान क्रांतिकारियों का स्मरण भारतीय नागरिक परिषद और इसके संरक्षक शैलेंद्र दुबे के सहयोग से इतिहास के उन स्वर्ण अक्षर में लिखे क्रांति की दास्तां को याद करना जन-जन तक पहुंचाना भारतीय नागरिक परिषद का महत  राष्ट्रीय कर्तव्य है।
          आइए याद करते हैं इसी कड़ी में......15 अगस्त 1872 - भारत माता के महान सपूत अरविंद घोष महर्षि अरविंद को उनकी जन्म जयंती पर कोटि-कोटि नमन। बचपन में ही शिक्षा के लिए लंदन भेज दिए गए 23 वर्ष बाद लंदन से आकर गुजरात में नेशनल कॉलेज बड़ौदा में वाइस प्रिंसिपल बने। भगिनी निवेदिता के संपर्क में आने के बाद कोलकाता वापस आए और बम तमंचे की क्रांति के जनक बने। महान क्रांतिकारी अरविंद घोष बम तमंचे की क्रांति के सभी क्रांतिकारियों के गुरु थे। उनके छोटे भाई बारीन्द्र घोष बहुत बड़े क्रांतिकारी थे और उन्हें काले पानी की सजा हुई थी।1908 में अरविंद घोष अलीपुर बम केस में गिरफ्तार किए गए ।अरविंद घोष का मुकदमा चित्तरंजन दास ने लड़ा था।  अलीपुर जेल में ही अरविंद घोष का साक्षात्कार सूक्ष्म रुप(स्वामी विवेकानंद का 1902 में निर्वाण हो गया था) में स्वामी विवेकानंद से हुआ। योगेश्वर श्रीकृष्ण की देख रेख में  स्वामी विवेकानंद के प्रशिक्षण में अरविंद घोष ने अलीपुर जेल में योग सीखा और  योगी हो गए। अलीपुर जेल से निकलने के बाद अरविंद घोष योगी अरविंद हो चुके थे। पांडिचेरी में अपना आश्रम बनाया और महर्षि अरविंद के नाम से पूरी दुनिया उन्हें जानती हैं ।वंदे मातरम को जन जन का नारा और क्रांतिकारियों के बलिदान का मंत्र अरविंद घोष ने ही बनाया था। 3 साल की उम्र में ही लंदन चले गए, 25 साल की उम्र में लंदन से वापस आकर वडोदरा नेशनल कालेज में शिक्षक, महान क्रांतिकारी और क्रांतिकारियों के  गुरु और महर्षि अरविंद के रूप में उनके जीवन में उत्तरोत्तर इतने परिवर्तन आए कि वह युगपुरुष बन गए। आज 15 अगस्त है भारत का स्वतंत्रता दिवस। वर्षो पूर्व उन्होंने अपने शिष्यों को बता दिया था कि भारत मेरे जन्म दिन पर स्वतंत्र होगा किंतु दुख की बात यह होगी कि भारत खंडित हो जाएगा।  दूरदर्शिता को नमन करते हुए आगे बढ़ते हैं।
      पगड़ी संभाल जट्टा पगड़ी संभाल....... गीत  के नायक सरदार अजीत सिंह की स्मृति में उनके निधन के 75 वर्ष बाद
            15 अगस्त 1947 - शहीद ए आजम भगत सिंह के बचपन से  ही प्रेरणास्रोत रहे उनके सगे चाचा सरदार अजीत सिंह की पुण्यतिथि पर महान क्रांतिकारी को कोटि कोटि नमन।
         सरदार अजीत सिंह एक विद्रोही क्रांतिकारी थे। अंग्रेजों के विरोध में उन्होंने अंग्रेजों द्वारा बनाए गये कृषि कानूनों का विरोध करते हुए किसानों को संगठित किया और पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन चलाया। लगान माफी की याचना करते हुए एक गरीब किसान की पगड़ी जब एक अंग्रेज अफसर ने उछाल दी थी तब उस पगड़ी को अपने हाथों में लोक कर सरदार अजीत सिंह ने भरी महफिल में पगड़ी संभाल जट्टा पगड़ी संभाल.... नामक विख्यात क्रांतिकारी गीत गाकर क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित कर दी थी।
        1906 में सरदार अजीत सिंह जब मात्र 25 वर्ष के थे तब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सूरत कांग्रेस में उनके बारे में यह कहा था कि यदि आज  भारत स्वतंत्र हो जाये तो सरदार अजीत सिंह  स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बनाये  जाने के  योग्य है। 1909 में लाला लाजपत राय के साथ सरदार अजीत सिंह को भारत से निष्कासित कर वर्मा की माण्डले जेल में कैद करके रखा गया। विद्रोही क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह  अपने जीवन के लगभग 40 वर्ष विस्थापित रहे और अपना अधिकांश समय विदेशों में क्रांति की ज्वाला जलाये रखते हुए व्यतीत किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हिटलर और मुसोलिनी से सरदार अजीत सिंह ने ही मिलवाया था । सरदार अजीत सिंह ने रोम रेडिओ का नाम बदलकर आजाद हिंद फौज रेडियो रख दिया था।
         द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी की एक जेल में सरदार अजीत सिंह जब बंद थे तब उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था। यह बात जब पंडित जवाहरलाल नेहरू को पता चली तो उन्होंने तमाम प्रयास कर सरदार अजीत सिंह को जेल से रिहा कराया और पं नेहरू के बहुत आग्रह के बाद 1946 में  वे भारत आने को तैय्यार हुए। सरदार अजीत सिंह का इलाज पंडित नेहरू के  दिल्ली स्थित निवास पर चलता था। जब डॉक्टरों ने सलाह दी कि सरदार अजीत सिंह को किसी ठंडी जगह पर ले जाया जाए तब उन्हें डलहौजी में ले जाया गया।
        15 अगस्त 1947  को जब देश को  स्वतंत्रता मिली तो सरदार अजीत सिंह विभाजन से इतने दुखी थे कि डलहौजी में प्रातः 4:00 बजे वे उठे और उन्होंने अपने परिवार जनों से वंदे मातरम कह कर अपने प्राण त्याग दिये। 15 अगस्त को आज जब सारा देश स्वतंत्रता की हीरक जयंती मना रहा है और अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है तब ऐसे विद्रोही क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह का स्मरण न करना कदापि उचित नहीं है और कृतघ्नता है । भारत माता के महान सपूत को उनकी 75वीं पुण्यतिथि पर एक बार पुनः श्रद्धा नमन
@रीना त्रिपाठी

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