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बर्लिंगटन के स्थान पर अशोक सिंहल के नाम से चौराहे का नामकरण 

लखनऊ

लखनऊ।.नवरात्रि के प्रथम दिवस के शुभ अवसर पर बर्लिंगटन चौराहे का अशोक सिंघल के नामकरण किया गया. लोकार्पण श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री एवं श्रद्धेय अशोक सिंहल के साथ कार्य करने वाले चंपत राय, लखनऊ की महापौर श्रीमती संयुक्ता भाटिया द्वारा किया गया.महापौर ने बताया कि बर्लिंगटन चौराहे को लम्बे समय से अंग्रेजी काल की दासता का प्रतीक माना जाता रहा है। इससे मुक्ति के लिए अनेक संगठन बहुत बार माँग करते रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष रहे अशोक सिंहल इसी चौराहे के निकट स्थित भार्गव निवास में प्रायः रुका करते थे. दासता के प्रतीक बर्लिंगटन चौराहे के नाम को परिवर्तित करना लखनऊ महानगर के जनमानस के लिए बहुत सुखदायी अनुभूति सिद्ध हुई है। विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष व श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चम्पत राय ने सोमवार को कहा कि पराधीनता की याद दिलाने वाली सारी बातों और प्रतीकों से देश को मुक्ति चाहिए। अगर कोई भी राष्ट्र व राज्य सत्ता अपने को सर्वप्रभुता संपन्न मानती है तो गुलामी के सारे प्रतीकों को हटाना चाहिए।चम्पत राय यहां बर्लिंगटन चौराहे के लोकार्पण के अवसर पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बर्लिंगटन के स्थान पर ऐसे भारतीय सपूत का नाम आया है, जिनके जीवन से समाज को निःस्वार्थ, त्याग व पुरुषार्थ की प्रेरणा मिलेगी।उन्होंने कहा कि जीवन के हर क्षेत्र में स्वतंत्रता आनी चाहिए। यह परम्परा देश के अन्य भागों में भी चल रही है। आजादी के बाद कई पार्कों व चौराहों का नाम बदला गया है। कभी देश में मुगल गार्डेन हुआ करता था। कभी कलकत्ता था, जिसे कोलकाता किया गया। इसी तरह मद्रास को चेन्नई किया गया।चम्पत राय ने कहा कि अशोक सिंहल को कोई पद प्राप्ति की कामना थी ही नहीं। निःस्पृह कष्ट सहकर देश की भलाई के लिए काम कैसे किया जाता है, इसके लिए अशोक सिंहल की पूरी जीवनी पढ़नी होगी। अशोक सिंहल का लखनऊ से विशेष लगाव रहा है। 1950 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने के बाद लम्बे समय तक वह लखनऊ में रहे। अयोध्या का आन्दोलन जब शुरू हुआ तो दिल्ली से अयोध्या आते जाते वह लखनऊ में रुकते थे। विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक दिनेश कुमार ने कहा कि अंग्रेजों की पराधीनता का प्रतीक बर्लिंगटन के स्थान पर अशोक सिंहल के नाम से चौराहे का नामकरण किया गया। यह समाज को एक अच्छा संदेश देने का काम हुआ है। लखनऊ का नाम लखनपुर करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि लखनऊ का नाम लखनपुर ही था। अब दोबारा लखनपुर नाम करके समाज को एक अच्छा संदेश दिया जा सकता है।

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