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आदि गुरू नानक देव जी का अवतरण (कार्तिक पूर्णिमा) प्रकाश पर्व

डॉ. दिग्विजय कुमार शर्मा

गुरु नानक आराध्य है, सत्य सिंधु अवतार।
शब्द सुधा शुभ मंत्र दे, किया जगत उद्दार।
किया जगत उद्धार, सभी को मार्ग दिखाया।
भक्तिभाव से पूर्ण, ज्ञान का प्रकाश फैलाया।

आज कार्तिक पूर्णिमा एवं देव दीपावली 553 वां प्रकाश पर्व  के साथ साथ सिखों के प्रथम गुरु और सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव की जयंती है। दरअसल गुरु नानक देव का जन्म साल 1469 में कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। इनका जन्म पंजाब में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी (वर्तमान में ननकाना साहिब, पाकिस्तान) नामक स्थान पर हुआ था।

सिख धर्म को मानने वालों के लिए गुरु नानक जयंती का दिन बेहद खास होता है। गुरु नानक देव बचपन से ही धार्मिक प्रवृति के थे। उन्होंने अनेक देशों में भी अपने उपदेश दिए थे इसलिए उन्हें 'नानक लामा' नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपना जीवन मानव समाज के कल्याण में लगा दिया था। आज भी लोग इनकी बताई गई सीख का अनुसरण करते हैं।

व्यक्तित्व -
नानक जी (कार्तिक पूर्णिमा 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि )गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से सम्बोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु - सभी के गुण समेटे हुए थे। इनकी समाधि स्थल गुरुद्वारा ननकाना साहिब पाकिस्तान में स्थित है। इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवण्डी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्री(क्षत्रिय)कुल में हुआ था। तलवण्डी पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त का एक नगर है। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किन्तु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवम्बर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालूचन्द खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवण्डी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था। विद्यालय जाते हुए बालक नानक
बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने-लिखने में इनका मन नहीं लगा। 7-8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्राप्ति के सम्बन्ध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिन्तन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएँ घटीं जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे। बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे। नानक के सिर पर सर्प द्वारा छाया करने का दृश्य देखकर राय बुलार का नतमस्तक होना इनका विवाह बालपन मे सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अन्तर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचन्द का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरान्त 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़। उन पुत्रों में से 'श्रीचन्द आगे चलकर उदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक हुए।' ये चारों ओर घूमकर उपदेश करने लगे। 1521 तक इन्होंने चार यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में "उदासियाँ" कहा जाता है।

नानक सर्वेश्वरवादी थे। मूर्तिपूजा: उन्होंने सनातन मत की मूर्तिपूजा की शैली के विपरीत एक परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग मानवता को दिया। उन्होंने हिन्दू पन्थ के सुधार के लिए इन्होंने कार्य किये। साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी दृष्टि डाली है। सन्त साहित्य में नानक उन सन्तों की श्रेणी में हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।

हिन्दी साहित्य में गुरुनानक भक्तिकाल के अन्तर्गत आते हैं। वे भक्तिकाल में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा से सम्बन्ध रखते हैं। उनकी कृति के सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखते हैं कि- "भक्तिभाव से पूर्ण होकर वे जो भजन गाया करते थे उनका संग्रह (संवत् 1661) ग्रन्थ साहब में किया गया है।"

जीवन के अन्तिम दिनों में इनकी ख्याति बहुत बढ़ गई और इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। स्वयं ये अपने परिवार वर्ग के साथ रहने लगे और मानवता कि सेवा में समय व्यतीत करने लगे। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला उसमें बनवाई। इसी स्थान पर आश्वन कृष्ण १०, संवत् १५९७ (22 सितम्बर 1539 ईस्वी) को इनका परलोक वास हुआ।

मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।

कृतित्व -
नानक भेदाभेद वादी कवि थे और साथ ही अच्छे सूफी कवि भी। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है। उनकी भाषा "बहता नीर" थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे।

गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल है- जपजी, Sidh Gohst, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दी वार, Patti, बारह माह

सिख सम्प्रदाय में दस गुरु हुए हैं। जिसमें पहले गुरुनानक हैं तथा अन्तिम गुरु गोबिंद सिंह हुए हैं-
गुरु नानक देव,गुरु अंगद देव,गुरु अमर दास,गुरु राम दास,गुरु अर्जुन देव,गुरु हरगोबिन्द,गुरु हर राय,गुरु हर किशन,गुरु तेग बहादुर,गुरु गोबिंद सिंह थे। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन का आयोजन किया जाता है।

महत्त्व -
गुरु नानक जयंती के दिन सेवा का बहुत अधिक महत्व बताया जाता है। इस दिन लोग मत्था टेकने के लिए गुरद्वारे जाते है और वहां धर्म सेवा प्रदान देते है। गुरु नानक जयंती के अवसर पर गुरुद्वारों में लंगर का भी विशेष आयोजन किया जाता है। गुरु नानक जयंती के कुछ दिन पहले से ही गुरुद्वारों की साज-सजावट शुरू हो जाती है और गुरु ग्रंथ साहिब के अखंड पाठ का भी आयोजन किया जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा व प्रकाश के 553 वें पर्व, गुरु नानक जयंती 2022 की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।

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