गीतिका
पं रामजस त्रिपाठी नारायण
संघर्षों से मत घबराओ , सदा नहीं यह शूल रहा।
जीवन का यह मूल रहा है, समझो यह स्कूल रहा।।१
दृष्टि हमारी निश्चित करती, जीवन क्या देगी हमको?
रहा धनात्मक जो जीवन में, उसके पथ में फूल रहा।।२
अपने जड़ से जुड़ा रहा जो,उसे उखाड़े क्या आंधी ।
जिसका जड़ मिट्टी को छोड़ा, उसको सब प्रतिकूल रहा।।३
मुश्किल को जो पार किया है, वह ही जीवन पाया है।
लड़ा नहीं या हार गया जो , उसका जीवन धूल रहा।।४
तूफानी दौरों से जीवन, में परिवर्तन होता है।
इससे नूतनता आती है, सदा नहीं यह शूल रहा।।५
महा सिंधु के महा भंवर से,जो लड़ना है नारायण।
उसके हित हीं लहरें उठती, नहीं दूर परिकूल रहा।।६
सदा गोद में सोया है जो, चाटुकार की लोरी सुन।
उसके हित सच्चाई भी तो, कहां कभी अनुकूल रहा।।७