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बाल विवाह रुकवाने पर जब अपने हुए खफा तो बेटियों ने खुद को बनाया सशक्त

आगरा

आगरा।  कम उम्र में माता-पिता की मौत के बाद उसके अपने ही पराय हो गए। उसका विवाह के नाम पर सौदा कर दिया गया। बेटियों ने हिम्मत दिखाते हुए बाल विवाह की जंजीर को तोड़ दिया। इससे 'अपने' खफा हो गए और उनके हाल पर छोड़ दिया। उसने हिम्मत नहीं छोड़ी और बाल विवाह की बेड़ियों को तोड़कर खुद को सशक्त बनाया साथ ही अपने भाई बहनों का सहारा बनी हुयी है| यह कहानी है आगरा देवरी रोड पर रहने वाली तीन बहनों व एक भाई की| 
करीब चार साल पहले अपने माता-पिता का साया सिर से उठ जाने पर बड़ी दो बहनों की रिश्तेदारों ने शादी करना चाहा, लेकिन बेटियों ने विरोध किया। रिश्तेदार शादी करने के लिए अड़ गए। तब मोहल्ले की झरना देवी से मदद मांगी। झरना देवी ने चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस को सूचना दी। नरेश पारस के हस्तक्षेप पर बाल विवाह रुक गया, लेकिन बेटियों के नाते रिश्तेदारों ने साथ छोड़ दिया। ऐसे में उनके सामने खाने और रहने का संकट आ गया। उनकी पढ़ाई छूट गई। नरेश पारस ने बेटियों की हिम्मत बढ़ाई और आगे बढ़ने को कहा| नरेश पारस ने उनकी दोबारा से पढ़ाई शुरू करा दी और राशन इत्यादि से मदद करने लगे। इसके बाद इन बेटियों के हौसलों को पंख लग गए इन्होंने जी-तोड़ मेहनत की हाईस्कूल में बेहतर प्रदर्शन करके परीक्षा पास की। वही छोटे भाई बहनों की परवरिश के लिए उन्होंने जूतों के ऊपर सिलाई का काम शुरू कर दिया। जिससे वह अपने भाई बहन का पालन पोषण भी कर रही हैं। यह बेटियां मिसाल है, उन लड़कियों के लिए जो मुसीबत आने पर टूट जाती हैं।

मां-बाप की मौत के बाद भाई और छोटी बहनों का सहारा बनी बेटी
ऐसा ही एक और उदाहरण पेश करती जनपद की एक और बेटी| जिसने माता-पिता की मौत के बाद अपने छोटे भाई बहनों को संभाला। पिछले आठ साल से चार भाई-बहन के लिए जी-तोड़ मेहनत कर जिंदगी की गाड़ी को खींच रही है। वह घरों में काम करती है, उसे जो रुपये मिलते हैं। उससे परिवार चलता है। पिता की मार्ग दुर्घटना में मौत होने के बाद मां को टीबी की बीमारी ने चपेट में ले लिया। इसके चलते नाते-रिश्तेदारों ने भी दूरियां बना लीं। उसके बाद मां की मौत हो गई। इन आठ सालों में किसी अपने ने उनका दर्द नहीं पूछा। रोजी-रोटी की व्यवस्था की जद्दोजहद में अपने सपनों को भुला दिया। कुछ समय बाद ही भाई को भी टीबी की बीमारी ने घेर लिया तो वह चिंतित हो उठीं| अब अपने भाई के इलाज के साथ अपनी बहनों की परवरिश भी कर रही है। उनका कोई सगा ना होने के कारण चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस इलाज में मदद कर रहे हैं। 
 
चाइल्ड राइट्स एक्ट‌िविस्ट नरेश पारस बताते हैं कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक आगरा में लगभग 18 फीसदी बाल विवाह होते हैं। पांच साल पहले यह आंकड़ा 21 फीसदी था। आज भी बालिका वधू बनाने की परंपरा जारी है। अशिक्षा और दबाव के कारण कम उम्र में बेटियों का विवाह कर दिया जाता है। बहुत कम मामले सामने आते हैं। मलिन बस्तियों व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में कम उम्र में बेटियों का विवाह कर दिया जाता है। बेटी बड़ी होगी तो ज्यादा दहेज देना पड़ेगा। इसलिए उनका विवाह कर दिया जाता है। रिश्तेदारों में कोई नाराज व्यक्ति ही पुलिस को सूचना देता है अन्यथा अधिकांश मामलों में शादियां कर दी जाती हैं। शिकायत मिलने पर बाल विवाह रोक दिया जाता है। बाल विवाह कानून नियमावली ना होने के कारण आरोपी बच निकलते हैं।
मेरी कोशिश रहती है कि ऐसे सभी बच्चों की हर संभव मदद की जा सके| क्योंकि इनके नाते रिश्तेदारों इनसे दूरियां बना लेते हैं, इनकी मदद करने वाला कोई नहीं होता| ऐसे में हमेशा ही लगता है कि इन बच्चों की मदद करनी चाहिए। ज्यादातर स्कूल की फीस किताबें के साथ- साथ घर से संबंधित खर्च उठाता हूँ। कोविड महामारी के दौरान भी मैं अपने बच्चों की तरह इनका ध्यान रखा और किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी l

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