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माता पार्वती के द्वार गजानन झूले पलना

डीके श्रीवास्तव

आगरा।आज नगला डीम में चल रही श्री शिवमहापुराण कथा का छठवां दिन था। छठे दिन कथा वाचक डॉ दीपिका उपाध्याय ने गणेश उत्पत्ति की पावन कथा सुनाई। गौरी पुत्र गणेश की उत्पत्ति की कथा सुनाते हुए डॉ. दीपिका उपाध्याय ने बताया कि किस प्रकार देवी पार्वती ने भगवान श्रीगणेश को उत्पन्न किया तथा द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया।

अच्छे एवं आज्ञाकारी द्वारपाल के समान जब गणेश जी ने भगवान शिव को ही कैलाश पर्वत पर प्रवेश न करने दिया तो उन्हें क्रोध आ गया और भयानक युद्ध छिड़ गया। क्रोधित महादेव ने गौरी पुत्र गणेश का सिर अपने त्रिशूल से काट दिया। इससे माता पार्वती कुपित हो गई। उनको शांत करने के लिए ब्रह्मा जी ने हाथी का सिर जोड़कर गणेश जी को जीवित किया तथा देवताओं ने उन्हें मंगल उपहार दिए। कैलाश पर्वत पर महान उत्सव हुआ।

 भगवान गणेश को प्रथम पूज्य होने का अधिकार तभी से मिला है तथा उन्होंने यह सिद्ध भी कर दिया कि जब तक देवता भी गणेश पूजन नहीं करेंगे तब तक उन्हें भी किसी कार्य में सफलता नहीं मिलेगी। जब भगवान शिव त्रिपुर दहन करने चले तब वह त्रिपुर को तब तक नहीं भेद सके, जब तक उन्होंने गणेश पूजन नहीं किया। भगवान गणेश सभी विघ्नों को हरने वाले हैं, वे प्रथम पूज्य ही नहीं है बल्कि प्रत्येक शुभ कार्य में प्रथम स्मरणीय भी हैं। इसीलिए सफलता प्राप्त करने के लिए भगवान श्री गणेश का स्मरण करके ही प्रत्येक कार्य प्रारंभ करना चाहिए। भगवान गणेश मात्र विघ्न हर्ता ही नहीं है, बुद्धि प्रदाता है, समस्त गुणों के दाता हैं।

 अपने बुद्धि चातुर्य का परिचय उन्होंने तब दिया जब माता-पिता ने विवाह के लिए धरती की परिक्रमा की शर्त रखी। जहां कुमार कार्तिकेय तुरंत अपना वाहन मयूर लेकर धरती की परिक्रमा करने चले गए, वहीं गणेश जी ने सृष्टि के कारण अपने माता-पिता की सात परिक्रमा कर बुद्धि चातुर्य का परिचय दिया और प्रजापति विश्वरूप की कन्याओं रिद्धि और सिद्धि से विवाह किया।

 आगे त्रिपुर दहन की कथा सुनाते हुए कथा वाचक डॉ. दीपिका उपाध्याय ने बताया कि शास्त्र विरुद्ध आचरण त्याग कर मनुष्य कभी सुखी नहीं हो सकता। मनमाने कार्यों को करने तथा नित नये धर्म अपनाने से मनुष्य का पराभाव होता है। शिव भक्ति छोड़कर मुंडी के भ्रमित उपदेश अपनाने के कारण ही त्रिपुर वासियों को पराभव सहना पड़ा। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि अपने पूर्वजों के धर्म का त्याग कभी ना करें तथा सदैव धर्म मार्ग पर चले।

 कथा के दौरान मंच संचालन की व्यवस्था डॉ राहुल शर्मा ने संभाली। कथा के विश्राम के बाद महिलाओं ने भजन कीर्तन किया।

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