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सावन सहो न जाय

किरण मिश्रा

परदेशी से प्रीत कठिन है,
नैनन नीर बहाय,
अपना बसे विदेश बलमुवा,
सावन सहो न जाय, 

मन का पपिहरा पी पुकारे,
हियरा दरकत जाय।
चँदा निरख रइन गयी सगरी ,
नींद न पलक समाय।।

हरियर चुड़िया वैरनि लागे ,
पतरि कलाई मोर,
दादुर मोर पपिहरा गावैं ,
बिजुरी करती रोर। 

बिन साजन कैसा ये सावन,
हिया मचावे शोर।
नागिन बनके सेज डरावै,
तड़पन करती भोर।

रुन झुन बूदें झरे अटारी, 
बदरा घन घहराय,
सखियाँ सगरी ताना मारें
इब दुख कहा न जाय।।

डाॅ किरणमिश्रा_स्वयंसिद्धा 
नोयडा

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