कितना धोखेबाज है.....
डॉ. सत्यवान सौरभ
पाकर भी कुछ ना मिले, होकर जिम्मेवार ।
कितना धोखेबाज है, ‘सौरभ’ ये किरदार ।।
किसे सुनाएँ वेदना, जोड़े किस से आस ।
नहीं खून को खून का, ‘सौरभ’ जब अहसास ।।
भुला दिए सब वायदे, बिखर गए सब मेल ।
औरों की छत जा चढ़ी, छोड़ पेड़ को बेल ।।
लुप्त हुई संवेदना, सूख गया अनुराग ।
जब से ‘सौरभ’ हैं हुए, दिल से बड़े दिमाग ।।
सम्बन्धों की टूट के, क्या बतलाऊँ भेद ।
नाव फँसी मझधार में, नाविक करते छेद ।।
लहरों को बहका रहे, रोज नए तूफ़ान ।
खड़े किनारे डूबते, सपनों के जलयान ।।
जब दौलत की लालसा, बांटे मन के खेत।
ठूँठा-ठूँठा जग लगे, जीवन बंजर रेत।।