उत्तर प्रदेशलखनऊ

सांस्कृतिक चेतना

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

लखनऊ। दुनिया के अभूतपूर्व आयोजन प्रयागराज महाकुंभ की पूर्णता हुई। प्रारंभ से लेकर पूर्णता तक दुनिया में यह चर्चा का विषय रहा। इसके साथ ही विचार कुंभ भी चलते रहे। भारत में आदि काल से विचार विमर्श शास्त्रार्थ की परम्परा रही। कभी कोई विचार किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया गया। विचारों के मंथन से ही नवनीत मिला। सनातन चिंतन में इसका समावेश है।
कुंभ का ऐतिहासिक महत्व विश्व प्रसिद्ध है। इस प्रकार का आयोजन अन्यत्र कहीं भी नहीं होता है। छाछठ करोड़ से अधिक लोगों ने बिना किसी भेदभाव के संगम में स्नान किया। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के आगमन और अन्य उनके लिए व्यवस्था करने का विलक्षण कार्य किया गया। किसी ने किसी की जाती प्रांत देश नहीं पूंछा। अभी लोग समान रूप से श्रद्धालु ही थे। भारत में तो प्राचीन काल से सभी मत पंथ व उपासना पद्धति को सम्मान दिया गया। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः ही भारत की विचार दृष्टि है। निःस्वार्थ सेवा और सामाजिक समरसता भारत की विशेषता रही है। इस दर्शन में किसी सम्प्रदाय से अलगाव को मान्यता नहीं दी गई। विविधता के बाद भी समाज एक है। भाषा,जाति, धर्म,खानपान में विविधता है। महाकुंभ इस विविधता में एकता का उत्सव ही था। भारतीय चिंतन विविधता में भी एकत्व सन्देश देता है। हमारी संस्कृति का आचरण सद्भाव पर आधारित है। सेवा समरसता का भाव सदैव रहना चाहिए। इस पर अमल होना चाहिए। इसी से श्रेष्ठ भारत की राह निर्मित होगी।
महाकुंभ में यही भाव परिलक्षित हुआ।
भारत की प्रकृति मूलतः एकात्म है और समग्र है। अर्थात भारत संपूर्ण विश्व में अस्तित्व की एकता को मानता है।
सत्य,अहिंसा,अस्तेय ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह,
शौच,स्वाध्याय,संतोषतप को महत्व दिया गया। समरसता सद्भाव से देश का कल्याण होगा। जब भारत एवं भारत की संस्कृति के प्रति भक्ति जागती है व भारत के पूर्वजों की परंपरा के प्रति गौरव जागता है, तब सभी भेद तिरोहित हो जाते हैं। पूरी दुनिया को भारत ने ही वसुधैव कुटुंबकम का भाव दिया है। इसलिए वह श्रेष्ठ है। प्रयागराज महाकुंभ यह चिंतन व्यवहारिक रूप में दिखाई दिया। यही विचार महाकुंभ है।

Share this post to -

Related Articles

Back to top button