यही बिडम्बना है मोदी जी भी अपने काम पर विश्वास न कर मण्डल – कमंडल की राजनीति में फँसने में लगे हैं
राजनीतिक षड्यंत्रों देश को आंदोलित कर आग लगाने का जो विपक्ष का प्रयास है उससे बचाव की मुद्रा में सरकार दिख रही न कि उनको सही ढंग से पहुँचाने की. सरकार कुछ समय से अपने जो अच्छे कदम है उन्हें जनता तक पहुँचाने में या समझाने में असफल रही है किसान आंदोलन हो अग्निवीर हो या फिर आरक्षण में सुधार और सुप्रीम कोर्ट की चिंता ये सब राजनीति की भेंट चढ़ चुके हैं.
उम्मीद थी कि आरक्षण सार्थक होता नीति में सकारात्मक
परिवर्तन होता, आज आईएएस, आईआरएस और सरकार नौकरी पाकर भी दलित बने हुए हैं विधायक सांसद होकर भी दलित हैं और सदैव दलित ही बने रहना है तो फिर आरक्षण क्यों. आरक्षण सिर्फ़ एक परिवार को एक बार ऐसा होता तो दलितों के हालत सुधर चुके होते अनेकों को अवसर मिलता. अभी सीमित परिवार लाभ उठा रहे हैं और वह कभी नहीं चाहेंगे इसमें बदलाव हो वही दलित परिवार ५० सालों से अधिकारी, विधायक, सांसद बने हैं कैसे कोई बिल पास होने देंगे सारी पार्टियों के दलित सांसद इकट्ठे हो जायेंगे और उन्हीं को जो भुगत रहे है जो आज की नीति से प्रताड़ित हैं उन्हीं को आंदोलित करेंगे उन्हीं का लाभ लेंगे उन्हें दलितों की भलाई से कुछ थोड़ी लेना है यदि आरक्षण की मंशा को समझा गया होता तो आज ७५ साल दलित नहीं बने रहना पड़ता.
पूरन डावर
चिंतक एवं विश्लेषक