वो ढूंढे हैं फायदे
डॉ. सत्यवान 'सौरभ'
आँखों से पर्दा उठा,
सीख मिली बेजोड़।
वो ढूंढे हैं फायदे,
तू ढूंढें है जोड़।।
ये भी कैसा प्यार है,
ये कैसी है रीत ।
खाया उस थाली करें,
छेद आज के मीत ।।
अपनों की जड़ खोदते,
होता नहीं मलाल ।
हाथ मिलाकर गैर से,
करते लोग कमाल ।।
क़तर रहे हैं पंख वो,
मेरे ही लो आज ।
सीखे हमसे थे कभी,
भरना जो परवाज़ ।।
बदले आज मुहावरे,
बदल गए सब खेल ।
सांप-नेवले कर रहे,
आपस में अब मेल ।।
जीवन पथ पे जो मिले,
सबका है आभार ।
काँटे, धोखा, दर्द जो,
मुझे दिए उपहार ।।
जब तक था रस बांटता,
होते रहे निहाल ।
खुदगर्जी थोड़ा हुआ,
मचने लगा बवाल ।।