
लखनऊ। भारत राजनीतिक रूप से परतंत्र रहा, लेकिन सांस्कृतिक रूप में इसे पराधीन बनाने में आक्रांताओं को कभी सफलता नहीं मिली। इस दौरान विदेशी सत्ता के विरुद्ध लगातार संघर्ष भी चलते रहे।
राष्ट्र रक्षा हम सबका मूल धर्म है। इस धर्म का पालन करके हम न केवल वर्तमान को बल्कि आने वाले भविष्य को सुरक्षित रख सकते हैं। परतंत्रता के दौर में रानी अहिल्या बाई ने स्वतन्त्र और स्वाभिमानी शासन संचालन की मिसाल कायम की थी। उनका जीवन सुशासन और सनातन के प्रति समर्पित था। इसमें परिवारवाद के प्रति मोह नहीं था। मलवा की जनता को अहिल्या बाई ने अपना परिवार माना। उनकी सेवा करती रहीं। इसलिए लोकमाता की रुप में उन्हें प्रतिष्ठा मिली।
गरीब कल्याण ओर नारी सशक्तिकरण की उनकी योजनाएं आधुनिक लोककल्याणकारी शासन के लिए मार्गदर्शन की भांति हैं। उनका जन्म इकतीस मई सत्रह सौ पच्चीस को महाराष्ट्र के चौंडी गांव में हुआ था. उनका विवाह मराठा साम्राज्य के सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव होलकर के साथ हुआ था. उन्होंने अट्ठाइस वर्ष शासन किया। ओंकारेश्वर नर्मदा किनारे उन्होंने महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया था। सनातन आस्था के अनुरूप मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की। काशी,गया, सोमनाथ,अयोध्या, मथुरा,हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण,रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए।
कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर,गया में विष्णु मन्दिर बनवाये। बड़ी संख्या मे घाट कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया मार्ग बनवाए। गरीबों की लिए सदाब्रत अन्नक्षेत्र स्थापित किए। पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था कराई। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया। अंग्रेजों को अपने राज्य में पांव पसारने नहीं दिए। अहिल्या बाई ने अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। इन्होंने विदेशी आक्रांताओं की चुनौती स्वीकार की। उन्हें जवाब दिया। अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटीं। इन सभी लोगों ने राष्ट्र को सर्वोच्च माना। सहज रूप से राष्ट्र की सेवा में समर्पित रहीं। इस ध्येय मार्ग से विचलित नहीं हुई।
अहिल्याबाई होलकर सभी युद्धों में विजयी रहीं। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर ने सनातन धर्म और भारतीय विरासत की जो मजबूत नींव रखी। आज प्रधानमंत्री के नेतृत्व में ‘विकास और विरासत’ के अभियान का आधार बन चुकी है। देश स्वतन्त्र है। अब देश को शक्तिशाली बनाना आवश्यक है।
इस कार्य में भी देशभक्ति का वैसा ही जज्बा होना चाहिए।
भारतीय इतिहास की शौर्य गाथाओं से राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का सन्देश देते है। विदेशी दासता से मुक्ति हेतु महान सेनानियों के बलिदान से सदैव प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने राष्ट्रहित को सर्वोच्च माना। भारत माता को स्वतन्त्र कराने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। अहिल्या बाई जैसी अनेक विभूतियां से प्रेरणा लेकर वर्तमान समय में सशक्त और सामर्थ्यशाली भारत विकास के एक आयाम का आकार धारण कर रहा है।
शिवाजी, महाराणा प्रताप और अहिल्याबाई होल्कर जैसे नायकों को स्कूली पाठ्यक्रम से दूर रखा गया। तीन सौ वर्ष पहले जब महिला सशक्तीकरण की कोई परिकल्पना भी नहीं थी, तब अहिल्याबाई ने शासन, सेवा और धर्म की मिसाल कायम की।वे कभी युद्ध में पराजित नहीं हुईं। उनका योगदान काशी, हरिद्वार, अयोध्या, सोमनाथ जैसे तीर्थों के निर्माण और पुनरुद्धार में आज भी जीवंत है।
उनके सिद्धांत, कार्यशैली और धार्मिक दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक हैं।जब देश गुलामी की बेड़ियों से जकड़ा हुआ था, तब विदेशी शासकों की गुलामी के शिकार उन सत्तालोलुप लोगों ने ऐसे नामों को आगे नहीं आने दिया, जो प्रेरणादायी बनकर आगामी पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त कर सकें।विरासत बनेगी, सुशासन की व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालन के लिए निष्पक्ष न्याय की कसौटी पर खड़ा उतरकर सबको सुरक्षा प्रदान करने की वचनबद्धता को आगे बढ़ाना पड़ेगा। सबके प्रति सुरक्षा का भाव पैदा हो, जब विरासत और विकास का अभियान आगे बढ़ता है। अहिल्या बाई ने जीवन में कोई आनंद की घटना नहीं देखी। उनके परिवार का कोई सदस्य साथ नहीं बचा।सभी की युद्ध में मृत्यु हो गई थी। लेकिन उन्होंने खुद को संभाला। महिलाओं और किसानों के लिए जो काम हुए उनकी लंबी सूची है। व्यापार और अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत कुछ किया। बड़े बड़े राजाओं की भी अहिल्या बाई के साथ तुलना नहीं हो सकती है। कुशल सैन्य प्रबंधन के कारण एक भी युद्ध में अहिल्याबाई कभी नहीं हारी, वह अजेय महिला और अजेय रानी रही। धर्म और संस्कृति के उत्थान के लिए उन्हें बहुत कुछ काम किया। आज काशी विश्वनाथ मंदिर देखने को मिलता है वह अहिल्या बाई के बिना संभव नहीं था।
उन्होंने राजस्व व्यवस्था स्थापित की थी, बिना कर लगाए राजस्व पचहत्तर लाख से बढ़ाकर सवा करोड़ तक पहुंचाया। महिला सशक्तिकरण को विधवा महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिलाया था। अहिल्याबाई का जीवन प्रेरणादायक है। वह महान शासक के रूप में याद की जाएंगी। उनका शौर्य और सुशासन सदैव प्रेरणा देता रहेगा।