सम्पादकीय

मोदी सरकार और रिलायंस में टकराव के मायने?

केपी मलिक

पिछले दस सालों से राजनीति और पूंजी के गठजोड़ पर अब तक की चर्चा हमेशा आपसी फायदे के ‘मित्रवाद’ तक सीमित थी, लेकिन आज दोनों के हित जब टकरा रहे हैं तो जांच और कार्रवाई का यही सिस्टम बड़े पूंजीपति बनाम सरकार जैसी श्रृंखला सामने ला रहा है।
जब जांच एजेंसियाँ एक समूह विशेष पर शिकंजा कसें, तो जनता के मन में सवाल उठना स्वाभाविक है कि कड़ी कार्रवाई सिर्फ़ निर्देश या ‘सिस्टम’ बदलने के बहाने के तौर पर है या सच में संस्थाओं की जवाबदेही तय करने की पहल?
देश में कम से कम 100 से अधिक बड़े-छोटे पूंजीपतियों पर अनुमान है कि 10 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का घोटाला हुआ है, और सरकार की चुप्पी या सहूलियत से ये सब संभव हो पाता रहा। वर्तमान घटनाक्रम से सत्ता-पूंजी के रिश्तों में ‘मित्रता’ से ‘मुकाबला’ की नई शुरूआत है, जिसका अंजाम पूरे देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था को दिशा देगा।

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