सम्पादकीय

जो सैटेलाइट जलती पराली देख लेती है वो डूबती फ़सल भी देखे!

केपी मलिक

सरकार की सैटेलाइट पंजाब के किसान के खेत में जलती पराली की एक चिंगारी भी पकड़ लेती है, लेकिन क्या वही सैटेलाइट आज पंजाब के किसान की उजड़ती और डूबती फसलें, सूखी आँखें, और टूटता दिल भी देख रही है? पराली का धुआँ उठते ही प्रशासन चलान लेकर दौड़ पड़ता है, पर क्या किसानों की बर्बादी पर भी उतनी ही फुर्ती से मुआवजे का काफिला आएगा? या फिर सरकार की निगाहें खेत के धुएँ तक सीमित हैं, किसान का दर्द उनके कैमरों तक पहुँच ही नहीं पाता?
कहाँ तो सेटेलाइट से पराली का धुआँ नापने में सरकार की आँखें चील-सी तेज़ हैं, और कहाँ किसानों की तबाही पर ये आंखें अचानक धुंधला जाती हैं। पराली पर जुर्माना लगाने में जिस पैमाने की मुस्तैदी प्रशासन दिखाता है, क्या वैसे ही किसानों के आंसुओं की कीमत भी तय करेगा, या उनकी उजड़ी खेतिहर ज़िन्दगी फिर किसी सरकारी कैमरे में कैद नहीं होगी?

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