उत्तर प्रदेश

यदि हम कुछ समय रावण के व्यक्तित्व चिंतन पर दें तो दशानन रावण विद्वता में युगों तक याद किए जाते रहेंगे

रीना त्रिपाठी

नवरात्रि और दशहरे की शुभकामनाओं के साथ यदि हम कुछ समय रावणके व्यक्तित्व चिंतन पर दें तो दशानन रावण विद्वता में युगों तक याद किए जाते रहेंगे।
पुराने जमाने में लोग रावण जलने के बाद उड़े हुए चीथड़ो को बच्चों को किताबों में रखने के लिए प्रोत्साहित करते थे ताकि रावण जैसे विद्वान के विद्वता कुछ अंश बच्चों में आ सके। युगों से आज भी असत्य की हार और सत्य की जीत का त्यौहार विजया दशमी धूमधाम से मनाया जाता है।
विश्लेषण करने पर हम पाते हैं रामायण में रावण को ऋषि विश्रवा की संतान बताया गया है लेकिन उसकी मां कैकसी क्षत्रीय राक्षस कुल की थीं। इसलिए उसे ब्रह्मराक्षस कहा जाता था।उसकी दो कमियाँ पहला मांस भक्षण और दूसरा शराब सेवन के कारण उसे राक्षस कहा गयारावण का गोत्र सारस्वत ब्राह्मण था । सारस्वत ब्राह्मण के प्रमाण स्वरूप रावण परम शिव भक्त, ज्योतिषी, तांत्रिक वेदों के सिद्धांतों से ज्ञात परम प्रतापी महाज्ञानी भी थे।रावण के गुरु शिव जी थे, रावण शिव जी को ही अपना गुरु मानता था विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र सिद्धियां और वरदान शिव जी से रावण को प्राप्त हुए थे, दशानन रावण की कुल देवी भी प्रत्यंगिरा देवी थीं। देवी के यज्ञ और हवन के बाद ही रावण अपने अन्य कार्य को करता था प्रत्यंगिरा देवी पर रावण के पुत्र मेघनाथ को सिद्धि प्राप्त थी।निकुंबला देवी के नाम से भी जाना जाता है।
रावण के द्वारा रचित तंत्र मंत्र का संकलन विभिन्न पुस्तकों के रूप में बात के ऋषि मुनियों के माध्यम से प्राप्त होते हैंरावण को हिंदू ज्योतिष पर आधारित पुस्तक रावण संहिता और सिद्ध चिकित्साकि रावण ने ही अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों की रचना की।आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष का ज्ञाता : रावण अपने युग का प्रकांड पंडित ही नहीं, वैज्ञानिक भी था। हिमालय को अपने हाथों से उठा लेना रावण के बल को दर्शाता है और शिव तांडव स्त्रोत आज तक अभिशप्त से मुक्ति का आसान साधन है।
आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष के क्षेत्र में उसका योगदान महत्वपूर्ण है। इंद्रजाल जैसी अथर्ववेदमूलक विद्या का रावण ने ही अनुसंधान किया। उसके पास सुषेण जैसे वैद्य थे, जो देश-विदेश में पाई जाने वाली जीवनरक्षक औषधियों की जानकारी स्थान, गुण-धर्म आदि के अनुसार जानते थे। रावण की आज्ञा से ही सुषेण वैद्य ने मूर्छित लक्ष्मण की जान बचाई थी अपने राज्य के प्रसिद्ध वैद्य को अपने दुश्मन के भाई की चिकित्सा करने हेतु भेजना रावण की सह्रदय और विधाता की एक झलक दिखाता है।चिकित्सा और तंत्र के क्षेत्र में रावण के ये ग्रंथ चर्चित हैं- 1. दस शतकात्मक अर्कप्रकाश, 2. दस पटलात्मक उड्डीशतंत्र, 3. कुमारतंत्र और 4. नाड़ी परीक्षा……रावण के ये चारों ग्रंथ अद्भुत जानकारी से भरे हैं। रावण ने अंगूठे के मूल में चलने वाली धमनी को जीवन नाड़ी बताया है, जो सर्वांग-स्थिति व सुख-दु:ख को बताती है। रावण संहिता में रावण ने नाड़ी और अंगूठे के छाप के आधार पर किसी एक खानदान की पुस्तो की कुंडली बनाने का ज्ञान दिया।
स्त्रियों के बाएं हाथ की नाड़ी और रेखाएं महत्वपूर्ण होती हैं यह ज्ञान भी हमें इस कालखंड से प्राप्त होता है।
रावण की ये तीन इच्छाएं थीं, सोने में सुगंध पैदा करना, स्वर्ग तक सीढी बनाना और समुद्र का पानी मीठा करना। आप कल्पना करिए नियति को कुछ और मंजूर था यदि रावण को और मौका मिला होता है तो शायद वह यह सब भी करके दिखा देते।
ज्योतिष गणना और भविष्य गणना का एक उदाहरण अक्सर हम बुजुर्गों की कहानियों में सुनते हैं रावण अतिशय विद्वान था। एक बार रावण जनक जी के दरबार में गए थे क्योंकि शिवजी का धनुष जनक जी के यहां था और उसे उठाकर रखने का कार्य जनक जी का था ।जनक जी वार्ता में व्यस्त थे तब तक धनुष के कक्ष की सफाई होनी थी। दासी ने आकर सूचना दी परंतु जनक जी नहीं जा पाए। तभी सीता जी जो की एक बच्ची थी उन्होंने धनुष को उठा लिया जिससे उस कक्ष की सफाई हो सके। वापस दासी ने आकर यह सूचना जनक जी को दे दी की कक्ष की सफाई हो चुकी है, दासी की इस प्रकार जानकारी देने से कि राजा जनक की पुत्री सीता शंभू का धनुष उठाकर इस प्रकार इधर से उधर रख देती है जैसे कोई खिलौना हो। निश्चित रूप से बालिका असाधारण है। रावण को बहुत आश्चर्य हुआ रावण ज्योतिष का प्रकांड विद्वान था। अतः उसने राजा जनक से सीता जी की हस्तरेखा देखने का आग्रह किया और पुत्री सीता का हाथ देखा। वह सीता का हाथ देखकर चकरा गया की यह तो साक्षात जगत जननी का हाथ है। लेकिन उसने सीता के हाथ में यह भी देखा कि भविष्य में यह कन्या किसी को भी संपूर्ण त्रिलोक का स्वामी बननेऔर अमरता का वरदान दे सकती है। वर्ष दिन और समय की गणना भी उसने लगभग कर ही ली पर सटीक घडी की गणना नहीं की थी।
कुछ विद्वान कहते हैं कि यही सोचकर रावण ने सीता जी का अपहरण किया था क्योंकि ज्योतिष के अनुसार अपहरण के बाद का कालखंड ही वह कालखंड था जिसमें सीता जी किसी को त्रिलोकी का स्वामी बनने का वरदान देने वाली थी। और वह इसी कारण से इस वरदान की इच्छा से रोज अशोक वाटिका में जाता था। लेकिन वरदान तो किसी और के हिस्से में था। जिस दिन अशोक वाटिका में श्री हनुमान जी आए और उन्होंने सारी कथा सुनाई तब उन्हे हरिजन जानकार यानि भगवान राम का जन जानकार सीता जी ने वह वरदान दे दिया। अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस् वर दीन्ह जानकी माता।।
इस प्रकार जानकी माता का अपहरण जिस उद्देश्य से श्री रावण ने किया था वह उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया और अष्ट सिद्धि नवनिधि को प्रदान करने वाले ऐसा वरदान श्री हनुमान जी को मिल गया। जबकि उसी दिन कुछ समय पहले ही रावण अशोक वाटिका गया था त्रिजटा वाला प्रकरण उसी दिन हुआ पर उसे यह नहीं पता था कि यह वरदान एक माता के स्वरुप में पुत्र को दिया जाएगा।
रावण एक परम भगवान शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकाण्ड विद्वान, पण्डित एवं महाज्ञानी था।भगवान विष्णु के पार्षद जय-विजय में से जय का दूसरा जन्म था ।रावण के शासन काल में लंका का वैभव अपने चरम पर था और उसने अपना महल पूरी तरह स्वर्ण रजित बनाया था, इसलिए उसकी लंकानगरी को सोने की लंका अथवा सोने की नगरी भी कहा जाता है।
रावण के भाई बहन में सर्वाधिक विभीषण, शूर्पणखा,कुंभकर्ण , सहस्त्रानन , अहिरावण , महिरावण आदि। वही महान और परम योद्धा पुत्रों में इंद्रजीत, अक्षय कुमार , त्रिशरा , देवांतक , नरांतक , प्रहस्त , अतिकाय आदि पुत्र थे।
पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। युगों तक जिसकी विधाता का गुणगान होता था उसको करने के लिए स्वयं नारायण को अवतार लेना पड़ा।

असंख्य अच्छाइयां होने के बावजूद घमंड और अहंकार रावण की कमजोरी थी।रावण को दशानन इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसके दस सिर थे इन दस सिरों को बुराई का प्रतीक माना जाता है। इन सिरों के अलग-अलग मतलब हैं:
काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार, धोखा।
और इन्हीं बुराइयों को प्रतीक मानकर हम रावण दहन के रूप में हर वर्ष दशहरे का त्योहार बनाते हैं पर अफसोस नैतिकता सामाजिकता भाईचारा हम रावण से नहीं सीख पाए आज भी हमारे बीच अबोध बालिका से लेकर वृद्ध अवस्था की दहलीज में पहुंची महिलाओं से भी विचार की घटनाएं आए दिन पेपर में छपती हैं काश जी बात की सजा हम रावण को हर वर्ष देते हैं वह अपने समाज में एक आदर्श के रूप में स्थापित करते हुए बहन और बेटियों का सम्मान चाहे वह अपनी बहन बेटी हो या दूसरों की अपनी मां करके करें तो शायद प्रतीकात्मक रूप से रावण के जीवन से पूरी मानव प्रजाति को एक सीख मिलेगी और नारी सम्मान के प्रसिद्ध नवरात्रि के त्यौहार में पूजी जाने वाली कन्या समाज में सुरक्षित रह सकेगी।
घमंड अहंकार और वह विचार रूपी रावण काश हमारे समाज से हमेशा के लिए चले जाए भाईचारा बहन बेटियों की सुरक्षा मिले और व्यभिचार अन्याय शोषण हमेशा के लिए संसार से खत्म हो जाए। त्रिकाल दर्शी भूत भविष्य और वर्तमान जानने वाला रावण जब अपने एक गलती की सजा युगों तक झेलने को विवश है तो क्यों ना हम नैतिकता की सीख लेते हुए अपने समाज को सुरक्षित रखें और कम से कम गलतियों से सीख ले। भगवान राम का अमोघ वाण भी दशानंद को नहीं मार पा था क्योंकि रावण के हृदय में माता सीता आराध्या के रूप में विराजमान थी यह सब उसने मोक्ष प्राप्ति हेतु किया।

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