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भक्तों की रक्षा एवं कल्याण को अवतार लेते हैं भगवान शिव

डीके श्रीवास्तव

आगरा। भगवान शिव प्रत्येक कलयुग में अपने चार शिष्यों के साथ अवतरित होते हैं। जब भी भक्तों की रक्षा की आवश्यकता पड़ती है तब-तब भगवान आशुतोष अवतरित हो जाते हैं। भगवान शिव के विविध लीलावतारों की कथा सुनाते समय कथा वाचक डॉ.दीपिका उपाध्याय ने उक्त वचन कहे।
 आगरा के ग्राम नगला डीम में चल रही श्रीशिवमहापुराण कथा का आज नौवां दिन था। 
आज भगवान शिव के विभिन्न अवतारों की कथा सुनाते हुए कथावाचक ने बताया कि जब नारद जी ने वायु देवता से भगवान शिव के अवतारों की संख्या पूछी तो वे भी ना बता सके। उन्होंने कहा स्वयं काल भी जिनकी गति की गणना करने में सक्षम नहीं है, उन कालातीत भगवान शिव के अवतारों की गणना वे कैसे कर सकते हैं।
 भगवान शिव के अवतारों का वर्णन करते हुए कथा वाचक डॉ दीपिका उपाध्याय ने बताया कि जब हिरणकशिपु का वध करने के बाद भी नरसिंह भगवान का क्रोध शांत ना हुआ तब भगवान ने शरभ अवतार लेकर उनकी अभिमान को समाप्त किया और उन्हें श्वेतद्वीप का वास दिया। ऋषि विश्वानर के यहां गृहपति रूप में भगवान शिव अवतरित हुए और अग्नि कोण के दिग्पाल के रूप में गृहपति विराजे। 
महर्षि अत्रि और उनकी तेजस्वी पत्नी सती अनुसूया ने तपस्या कर ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र के अंश को चंद्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा ऋषि के रूप में जन्म दिया।
 दुर्वासा ऋषि ने श्री कृष्ण और रुक्मिणी से अपना रथ खिंचवा कर उन्हें सुदृढ़ देह का वरदान प्रदान किया।
 इसी प्रकार जब गंगा स्नान करते समय दुर्वासा ऋषि का वस्त्र बह गया तब द्रौपदी ने अपना आंचल फाड़कर उन्हें ससम्मान प्रदान किया। दुर्वासा ऋषि ने वस्त्र बढ़ने का आशीर्वाद दिया जिससे चीर हरण प्रसंग में द्रौपदी की लाज बची।
 भगवान शिव ने त्रेता में श्री हरि के रामअवतार के साथ हनुमान अवतार ग्रहण कर उनके कार्य सिद्ध किए। वैश्यनाथ अवतार लेकर वेश्या महानंदा का उद्धार किया। समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु का मान बढ़ाया। भोलेनाथ ने वृषभावतार लेकर उनके अभिमान को दूर किया।
 इस अवसर पर कथावाचक ने वस्तुओं जैसे गौ, स्वर्ण, भूमि, वस्त्र, ऋतु फल आदि के दान का महत्व बताया साथ ही लोगों को प्रकृति संरक्षण तथा जीव सेवा का भी संदेश दिया। इस अवसर पर मंच संचालन की व्यवस्था डा. राहुल शर्मा ने संभाली।

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