भारतीय हिन्दी दिवस 14 सितंबर 2024
हमें गर्व है हिंदी पर,
शान हमारी हिंदी है,
कहते सुनते हिंदी हम,
पहचान हमारी हिंदी है।
हम सब को मिलकर अपने विचारों को साझा करने के लिए हिंदी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग करें, यह हमारा प्रयास होना चाहिए।”
विश्व की सर्वाधिक सरल एवं सरस भाषा हिंदी के सम्मान में मनाए जा रहे हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
“हिंदी का सम्मान बढ़ेगा,
तभी देश का मान बढ़ेगा।”
“हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है; यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का सेतु है, जो हमें साझा ऐतिहासिक, कहानियों, लेखन, कविताओं, परंपराओं और सपनों के माध्यम से जोड़ता है।”
हिंदी दिवस का इतिहास 14 सितम्बर 1949 से नए स्वतन्त्र देश की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रुप में ऐतिहासिक निर्णय लिया गया था। आज हम इसकी 75वीं वर्ष गांठ मना रहे हैं। हमें अनेक भाषाओं और बोलियों वाले विविधतापूर्ण राष्ट्र में भाषाई एकता को बढ़ावा देना था। जिससे कि हिंदी भाषा और भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीयता की पहचान को सम्मान दिया जा सके। लेकिन “ढाक के तीन पात” कहावत सिद्ध हुई है। आज देश भर में अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने सरकार को ज्ञापन दिया, बहुत पहल की और वर्तमान में बहुत हिंदी प्रेमी पुरजोर प्रयासरत हैं। लेकिन अभी तक राष्ट्र भाषा का दर्जा नही मिल पा रहा है। यह देश के लिए बडी विडम्बना है। कहने को तो ‘एक देश , एक भाषा, एक संविधान होने की बात करते हैं। लेकिन एकदम शून्य की स्थिति में सभी मौन साधे हुए है। जिस देश में ही अपनी भाषा का तिरस्कार हो उस देश के सरकार और नागरिकों को लानत हैं। इस लिए “उठो, जागो, और जबतक प्रयास करो, जब यक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।”
हिंदी भाषा हमारी संस्कृति, संस्कार एवं स्वाभिमान की प्रतीक है, हमें बंधुत्व के आत्मीय भाव से जोड़ती है। हम इसके विस्तार एवं विकास हेतु पूर्णतः प्रतिबद्ध होना चाहिए ऐसा मेरा मानना है। हम सभी को हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग का संकल्प लेना चाहिए।
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से हुई है। अपभ्रंश भाषाओं की उत्पत्ति प्राकृत से हुई। प्राकृत, पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है। किसी जमाने में संस्कृत मुख्य रूप से बोलचाल की भाषा थी, वैसे ही आज हिन्दी बोलचाल की भाषा है। लेकिन अंग्रेज़ी ने बहुत हद तक अपने पैर पसार लिए हैं। वह दिन अब दूर नहीं जब हिन्दी का अस्तित्व एक प्राचीन भाषा के रूप में रह जायेगा और अंग्रेज़ी मुख्य भाषा का स्थान ले लेगी।
यह प्रक्रिया कुछ वर्षों की नहीं अपितु अनेकानेक वर्षों की है। धीरे-धीरे हिन्दी पाठ्यक्रम में एक वैकल्पिक विषय के रूप में उपस्थित रहेगी फिर उसकी ज़रूरत कम और ख़त्म होती जाएगी। अंग्रेज़ी के बिना काम चलेगा नहीं इसलिये उसको ससम्मान शिरोधार्य किया जाएगा। बस किसी का अपमान करना हो तो इतना ही काफ़ी है।
निज भाषा उन्नति अहे,
सब उन्नति कौ मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के,
मिटत न हिय कौ सूल।
मेरा एक हिन्दी भाषी और एक लेखक होने के नाते मेरा यह कर्तव्य है कि हिन्दी उत्तरोत्तर उन्नति करे, हिन्दी को पूर्ण सम्मान मिले और हमारी आने वाली पीढ़ी को हम इस काबिल बनायें कि वह यह मशाल अपने आगे आने वाली पीढ़ी के हाथ में ससम्मान सौंप कर जाये।
पुनः आप सभी को राजभाषा हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जय हिन्द! जय हिंदी!
प्रोफेसर दिग्विजय कुमार शर्मा
शिक्षाविद, साहित्यकार
आगरा