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आर टी आई की मूल भावना

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

नई दिल्ली। सूचना का अधिकार संविधान की व्यवस्था और भावना के अनुरूप है। भारत के नागरिकों को शासन प्रशासन से सीधे जवाब मांगने का अधिकार है। सूचना का अधिकार अधिनियम द्वारा इसको सुनिश्चित किया गया है। प्रत्येक अधिकार के साथ कर्तव्य भी जुड़ा होता है। सूचना के अधिकार का सकारात्मक उपयोग करना नागरिकों का कर्तव्य है। इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर अधिकार की गरिमा कम होती है। इसके प्रति आमजन का जागरूक होना भी जरूरी है। सूचना चाहने वाले जन सामान्य और जिनके पास सूचना है,उनके बीच सूचना का अधिकार सेतु की भांति होता है। सुशासन के अनुसार
मैक्सिमम गवर्नेंस मिनिमम गवर्नमेंट होना चाहिए। सूचना के अधिकार के माध्यम से इस विचार पर अमल सुनिश्चित होता है। इस अधिनियम के माध्यम से पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह कार्य जन सूचना के अधिकार की भावना के अनुरूप है। केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन का मंत्र अनिवार्य रूप से पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। केंद्रीय सूचना आयोग के सम्मेलन का विषय भी यह था।
विकसित भारत की यात्रा में आरटीआई का योगदान। सूचना के अधिकार अधिनियम ने नागरिकों को सूचना तक पहुंचने के लिए एक मजबूत तंत्र प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाया है। सरकार और लोगों के बीच की खाई को पाटा है। यह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और नागरिक केंद्रित शासन मॉडल को बढ़ावा देने में आधारशिला के रूप में कार्य करता है।
सूचना आयोग द्वारा ई फाइलिंग, ई सुनवाई और अभिलेखों के डिजिटलीकरण सहित ई पहलों को अपनाने से दक्षता और पारदर्शिता के लिए नए मानक स्थापित हुए हैं।
पारदर्शिता व्यवस्था को व्यापक बनाने में आरटीआई अधिनियम की धारा चार के महत्व को समझने की आवश्यकता है।
शासन में विश्वास पैदा करने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही आवश्यक है। देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने के लिए आरटीआई प्रक्रिया को अधिक उत्तरदायी और नागरिक-अनुकूल बनाने के प्रयास किए जा रहे है।

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