लखनऊ

संस्कृति और सामर्थ्य का महोत्सव

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

उत्तर प्रदेश के सभी जनपद अपनी किसी न किसी विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। इसमें सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, औद्योगिक,लोक कला आदि के विविध क्षेत्र शामिल है। वर्तमान प्रदेश सरकार ने इन तथ्यों को देखते हुए जनपदों की विशिष्ट पहचान को विकास से जोड़ने के प्रयास किए। एक जिला एक उत्पाद योजना से यह यात्रा प्रारंभ हुई। इसके साथ ही प्रत्येक जनपद में महोत्सव आयोजित कराने का निर्णय भी लिया गया था। इसके माध्यम से जनपदों के समग्र विकास को रेखांकित किया जा रहा है। वर्तमान प्रदेश सरकार उत्तर प्रदेश को आर्थिक सांस्कृतिक गौरव दिलाने की अनेक योजनाएं संचालित कर रही है। एक जिला एक उत्पाद उन्ही में से एक है। तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इसकी आधारशिला रखी थी। तत्कालीन
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसे लांच किया था। इसी प्रकार एक जनपद एक मेडिकल कालेज का सपना भी साकार हो रहा है। प्रत्येक जनपद अपने महोत्सव भी आयोजित कर रहे है। इनमें सिंगल विंडो पोर्टल भूमि की कीमत उपलब्धता और आवंटन,कर भुगतान,प्रणाली पारदर्शी सूचनाएं और ऑनलाइन उपलब्धता,पर्यावरण सुधार,आवश्यक अनुमति का सहजता से मिलना आदि बिंदु दिखाई देते है। लोक कला और लोक संगीत का प्रदर्शन किया जाता है। इसमें स्थानीय कलाकारों को भी अवसर मिलता है। गोरखपुर महोत्सव में भी यहां का समग्र विकास परिलक्षित हुआ।
गोरखपुर का नाम ही महान आध्यात्मिक विभूति से जुड़ा है। यह महान संत गुरु
गोरखनाथ की तप स्थली रही है। नाथ योगियों ने क्रियात्मक योग के माध्यम से नियम संयम की विशिष्ट विधा दी है। कौन सी क्रिया का लाभ कब प्राप्त होगा, नाथ योगियों ने इसे विस्तार से समझाया है। कई आसनों के नाम नाथ योगियों के नाम पर हैं जैसे गोरखआसन, मत्स्येंद्रआसान, गोमुखआसन आदि। नाथ परंपरा में हर नाथ योगी जनेऊ धारण करता है जो उसे शरीर की नाड़ियों से अवगत कराता है। नाथ जनेऊ की उपयोगिता उसे योगी की दीक्षा के समय बताई जाती है। योग हर नाथ योगी के जीवन का अभिन्न हिस्सा होता है। गुरु गोरखनाथ ने चेतना के उच्च आयाम तक पहुंचाने का मार्ग दिखाया है। उन्होंने चेतन मन के साथ ही अवचेतन और अचेतन मन को साधने की क्रिया भी सिखाई है। मानव मन, बिना साधना के जितना चेतन होता है वह संपूर्ण चेतना का बहुत छोटा भाग है। योग के माध्यम से साधना की चरम सीमा पर जाकर हम अवचेतन और अचेतन मन के रहस्यों को उद्घाटित कर सकते हैं। नाथ योगियों की साधना का उद्देश्य भी यही रहा है। शरीर की यही साधना अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों को प्राप्त करने का माध्यम भी है। जिस प्रकार जीवन के लिए प्राण आवश्यक है उसी प्रकार मन की वृत्तियों और शरीर के बीच तारतम्य स्थापित करने के लिए प्राणायाम भी आवश्यक है। चराचर जगत पंचभूतों से बना है। इन्हीं पंचभूतों से हमारा शरीर भी बना है। महायोगी गुरु गोरखनाथ ने भी कहा है कि पिंड में ही ब्रह्मांड समाया है। जो तत्व ब्रह्मांड में है वही हमारे शरीर में भी हैं। भारतीय मनीषा में हर व्यक्ति के जीवन का एक अभीष्ट होता है, धर्म के पथ पर चलते हुए मोक्ष की प्राप्ति करना प्रति करना। धर्म की साधना के लिए स्वस्थ शरीर की अपरिहर्ता हमारे ऋषियों, मुनियों ने बताई है। आयुर्वेद में जहां व्याधियों को दूर करने के लिए औषधियों और पंचकर्म की पद्धतियां हैं। तो वही योग में भी हठयोग, राजयोग,ज्ञानयोग, लययोग और क्रियायोग की विशिष्ट विधियां हैं। इसी क्रम में शरीर की आरोग्यता के लिए नाथपंथ का हठयोगी योग को खट्कर्म से जोड़ता है। आयुर्वेद, योग और नाथपंथ की पद्धतियां,तीनों ही वात, पित्त और कफ से जनित रोगों के निदान के लिए एक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। तीनों ही व्यवहारिकता के स्तर पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। तीनों ने ही शरीर को पंचभौतिक माना है। नियम संयम का जीवन में बड़ा महत्व है। योग ने उसी को जोड़ा है। अंतःकरण की शुद्धि नियम संयम से ही हो सकती है। नाथ योगियों ने क्रियात्मक योग के माध्यम से नियम संयम की विशिष्ट विधा दी है। कौन सी क्रिया का लाभ कब प्राप्त होगा,नाथ योगियों ने इसे विस्तार से समझाया है। योग के कई आसनों के नाम नाथ योगियों के नाम पर हैं जैसे गोरखआसन, मत्स्येंद्रआसान, गोमुखआसन आदि। सीएम योगी ने कहा कि नाथ परंपरा में हर नाथ योगी जनेऊ धारण करता है जो उसे शरीर की नाड़ियों से अवगत कराता है। नाथ जनेऊ की उपयोगिता उसे योगी की दीक्षा के समय बताई जाती है। योग हर नाथ योगी के जीवन का अभिन्न हिस्सा होता है। गुरु गोरखनाथ ने चेतना के उच्च आयाम तक पहुंचाने का मार्ग दिखाया है। उन्होंने चेतन मन के साथ ही अवचेतन और अचेतन मन को साधने की क्रिया भी सिखाई है। मानव मन, बिना साधना के जितना चेतन होता है वह संपूर्ण चेतना का बहुत छोटा भाग है। योग के माध्यम से साधना की चरम सीमा पर जाकर हम अवचेतन और अचेतन मन के रहस्यों को उद्घाटित कर सकते हैं। नाथ योगियों की साधना का उद्देश्य भी यही रहा है। शरीर की यही साधना अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों को प्राप्त करने का माध्यम भी है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार जीवन के लिए प्राण आवश्यक है उसी प्रकार मन की वृत्तियों और शरीर के बीच तारतम्य स्थापित करने के लिए प्राणायाम भी आवश्यक है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अपने प्राचीन ज्ञान के धरोहरों से हमने दूरी बनानी प्रारंभ की तो एक समय ऐसा भी आ गया कि भारतीय हीन भावना का विषय बन गए। अपने दिव्यज्ञान के स्रोत से वंचित होते गए। हमारी प्राचीन आयुर्वेद की दवाओं को बाहरी लोगों ने पेटेंट करना शुरू कर दिया। आज भारत की प्राचीन ज्ञान धारा, आयुर्वेद और योग को फिर से प्राचीन गौरव प्राप्त हो रहा है। भारत की सभ्यता और संस्कृति अति प्राचीन है। सृष्टि के कालखंड की सबसे प्राचीन संस्कृति भारतीय संस्कृति को माना जाता है। अलग अलग कालखंड में ऋषियों,मुनियों ने अपनी ज्ञान के धारा के अनुभव से इसे नया आयाम प्रदान किया। पहले ज्ञान की परंपरा गुरु शिष्य के माध्यम से श्रवण परंपरा थी। उसे लिपिबद्ध करने का कार्य महर्षि वेदव्यास ने चार संहिताओं के माध्यम से किया। महर्षि वेदव्यास ने न केवल चार वेदों ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना की बल्कि उन्होंने श्रीमद्भागवत पुराण समेत अठारह पुराणों की रचना को भी ज्ञान से जोड़कर भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाया। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत पुराण आज भी भारत वासियों को धर्म का सही मार्ग दिखाता है। आयुर्वेद की मान्यता है कि चराचर जगत पंचभूतों से बना है। इन्हीं पंचभूतों से हमारा शरीर भी बना है। महायोगी गुरु गोरखनाथ ने भी कहा है कि पिंड में ही ब्रह्मांड समाया है। जो तत्व ब्रह्मांड में है वही हमारे शरीर में भी हैं। गोरखपुर की पहचान गीता प्रेस से भी है, जो हिंदू धार्मिक पुस्तकों का विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक है। सबसे प्रसिद्ध प्रकाशन कल्याण पत्रिका है। श्री भगवत गीता के सभी अठारह भाग इसकी संगमरमर की दीवारों अंकित हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरखपुर ने एक छोटे शहर के रूप में विकास की अपनी यात्रा प्रारम्भ की थी। यह आज पूर्वी उत्तर प्रदेश के मजबूत महानगर के रूप में विकास हुआ है। बारह जनवरी को वैश्विक मंच पर भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक छवि, भारत की आध्यात्मिक विरासत सनातन धर्म की वैदिक परम्पराओं को स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानन्द की पावन जयन्ती है। इसके अलावा गोरखपुर महोत्सव से हम सभी को जुड़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है। महोत्सव के पीछे अपनी परम्परा के साथ जुडने का उद्देश्य होता है। हम सभी को अपनी परम्पराओं से विस्मृत नहीं होना चाहिए। संस्कृति के अभाव में कोई राष्ट्र लम्बे समय तक अपनी जीवन गाथा को आगे नहीं बढ़ा सकता। लोक गाथा, लोक परम्परा राष्ट्र की संजीवनी होती है। महोत्सव के माध्यम से लोक परम्परा,लोक गाथाएं,लोक गायन, लोक कलाकारों को एक मंच प्राप्त होता है। वे अपनी प्रतिभा से लोक परम्पराओं की जानकारी वर्तमान पीढ़ी को दे सकें, उनको आगे बढ़ा सकें, यही महोत्सव के पीछे का उद्देश्य है।वेदों की परम्परा गद्य और पद्य में है। भारत का गायन वेदों की परम्परा में है। सामवेद में गायन भी है और गायन की यह परम्परा हजारों वर्षों की विरासत का हिस्सा है। गायन, वादन, नृत्य इन सभी विधाओं को समाहित करने के साथ ही, महोत्सव का उद्देश्य स्थानीय नौजवानों, कलाकारों, कलाकृतियों, किसानों और उद्यमियों तथा समाज के लिए योगदान करना,उनको प्रोत्साहित करना, उनको मंच उपलब्ध कराना है। उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना है। यह सभी कार्यक्रम एक साथ चल रहे है। गोरखपुर नाम से ही पता लग जाता है कि यह महायोगी भगवान गोरखनाथ की पावन साधना स्थली है। गोरखपुर भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक परम्परा की एक महत्वपूर्ण भूमि है। गीताप्रेस के माध्यम से भारत के धार्मिक साहित्य का एक प्रमुख केन्द्र भी है। गोरखपुर के पास ही कुशीनगर में भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली तथा संत कबीरदास की निर्वाण स्थली मगहर भी है। गोरखपुर के आस पास भारत की प्राचीन विरासत के अनेक प्रतीक स्थल है। कथा सम्राट के रूप में विख्यात मुंशी प्रेमचन्द्र ने गोरखपुर को अपनी कर्म स्थली बनाया था। फिराक गोरखपुरी ने अपनी जन्मभूमि गोरखपुर को गौरवान्वित किया। वैश्विक मंच पर भारत की आध्यात्मिक विरासत का प्रसार करने वाले स्वामी योगानंद परमहंस ने इसी गोरखपुर में जन्म लिया था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत की चूले हिलाने वाले शहीद बन्धु सिंह की जन्म और कर्म भूमि यही गोरखपुर है। इसी जनपद में पं राम प्रसाद बिस्मिल को देश की आजादी के आन्दोलन में काकोरी ट्रेन एक्शन के लिए फांसी की सजा दी गयी थी।

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