
ज्ञानपीठ साहित्य जगत का सर्वाधिक प्रतिष्ठित सम्मान है। इसके इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा। पहली बार दृष्टि बाधित संत और साहित्यकार को यह सम्मान मिला। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने तुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी राम भद्राचार्य को ज्ञानपीठ सम्मान से विभूषित किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि आप अनेक प्रतिभाओं से सम्पन्न हैं तथा आपके योगदान बहुआयामी हैं। आपने शारीरिक दृष्टि से बाधित होने के बावजूद अपनी अंतर्दृष्टि बल्कि दिव्यदृष्टि से साहित्य और समाज की असाधारण सेवा की है। रामभद्राचार्य ने
बाल्यकाल में वेद कंठस्थ कर लिए था।
उनकी दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई है।वह बाइस भाषाओं के विद्वान है। उन्होंने विश्व का पहला दिव्यांग विश्वविद्यालय स्थापित किया। उन्होंने स्वयं इसको राज्य सरकार की सौंप दिया। वह उसके आजीवन कुलाधिपति हैं।
चित्रकूट अलौकिक क्षेत्र है। जिसके बारे में हमारे संतों ने कहा है कि चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिया लखन समेत अर्थात चित्रकूट में प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ नित्य निवास करते हैं। जगतगुरु रामभद्राचार्य ने यहीं तुलसी पीठ की स्थापन की है।