जातिविहीन समाज और बौद्ध धम्म पर आधारित जीवन-दृष्टि: विकसित, अखंड और समृद्ध भारत के निर्माण की दिशा में एक वैचारिक प्रस्तावना
डॉ प्रमोद कुमार

भारत एक महान सांस्कृतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं से समृद्ध देश रहा है। परंतु इसके साथ ही यह भी एक कटु सत्य है कि इस देश की सामाजिक संरचना में जातिव्यवस्था ने गहरे और स्थायी विभाजन पैदा किए हैं। जातिव्यवस्था ने सामाजिक समरसता, समानता, बंधुत्व और न्याय जैसे मूल्यों को क्षति पहुँचाई है। आज जब भारत विकसित और समृद्ध राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम एक ऐसे समाज की रचना करें जो जाति, वर्ण, ऊँच-नीच और छुआछूत से मुक्त हो।
बौद्ध धम्म – जो तथागत गौतम बुद्ध की करुणा, समता और प्रज्ञा से परिपूर्ण शिक्षाओं पर आधारित है – एक ऐसी जीवन-दृष्टि प्रस्तुत करता है जो जातिविहीन समाज की स्थापना की नींव रखता है। यह लेख इसी वैचारिक प्रस्तावना को विस्तार देने का प्रयास है कि कैसे बौद्ध धम्म पर आधारित जीवन-दृष्टि भारत को एक विकसित, अखंड और समृद्ध राष्ट्र बना सकती है।
1. जातिव्यवस्था: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सामाजिक विघटन
1.1 जातिव्यवस्था की उत्पत्ति
भारत की प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में ‘वर्ण व्यवस्था’ एक कार्य-विभाजन की अवधारणा के रूप में प्रारंभ हुई थी। परंतु कालांतर में यह जन्म आधारित जातिव्यवस्था में परिवर्तित हो गई। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के वर्गों में जन्म के आधार पर बँटवारा हुआ, और इसके साथ-साथ असंख्य उपजातियाँ भी अस्तित्व में आईं।
1.2 सामाजिक अन्याय और विषमता
जातिव्यवस्था ने भारतीय समाज में ऊँच-नीच, अस्पृश्यता, सामाजिक बहिष्कार और आर्थिक असमानता को जन्म दिया। एक वर्ग विशेष को ज्ञान, संपत्ति और सत्ता का स्वाभाविक अधिकारी मान लिया गया, जबकि एक बड़े वर्ग को शारीरिक श्रम, सेवा और अपमानजनक कार्यों के लिए नियत कर दिया गया।
1.3 जातिव्यवस्था के दुष्परिणाम
सामाजिक एकता का अभाव
आर्थिक विकास में बाधा
शिक्षा और संसाधनों में असमान भागीदारी
महिलाओं की दोहरी दासता
सामुदायिक वैमनस्य और राजनीतिक दुरुपयोग
2. बौद्ध धम्म: समता, करुणा और प्रज्ञा का पथ
2.1 बौद्ध धम्म की मूल अवधारणाएँ
तथागत बुद्ध ने अपने जीवन और शिक्षाओं के माध्यम से मानवता के लिए एक समतावादी, वैज्ञानिक और मानवोचित जीवन-दृष्टि प्रस्तुत की। उनके धम्म का मूल आधार चार आर्य सत्यों, अष्टांगिक मार्ग, पंचशील और प्रतीत्यसमुत्पाद जैसे सिद्धांतों पर आधारित है।
2.2 जातिवाद का खंडन
बुद्ध ने जातिवाद, ब्राह्मणवाद और यज्ञ-बलि की परंपराओं का खुला विरोध किया। उन्होंने बार-बार यह प्रतिपादित किया कि मनुष्य की श्रेष्ठता उसके जन्म से नहीं, बल्कि उसके कर्म, नैतिकता और ज्ञान से होती है।
>”न जातिया ब्राह्मणो होति, न जातिया होति अब्राह्मणो। कर्मणा ब्राह्मणो होति, कर्मणा होति अब्राह्मणो।”
2.3 धम्म का मानवमूलक स्वरूप
बौद्ध धम्म में कोई भी जाति, वर्ण, लिंग या वर्ग के आधार पर भेदभाव नहीं है। धम्म केवल मनुष्यता, करुणा, मैत्री और प्रज्ञा पर आधारित है। यह जीवन को सम्यक दृष्टिकोण, सम्यक आचार और सम्यक व्यवहार के माध्यम से देखने का मार्ग प्रशस्त करता है।
3. बौद्ध धम्म पर आधारित जीवन-दृष्टि के घटक
3.1 सम्यक दृष्टि (Right View)
यह दृष्टिकोण मनुष्य को पूर्वग्रह, अंधविश्वास, और रूढ़ियों से मुक्त करता है। यह उसे तर्क और यथार्थ के आधार पर सोचने की प्रेरणा देता है।
3.2 सम्यक संकल्प और आचार
बौद्ध जीवन-दृष्टि में करुणा, अहिंसा और सत्य के साथ जीवन जीने की प्रेरणा दी जाती है। यह व्यक्ति के नैतिक और सामाजिक व्यवहार को शुद्ध करता है।
3.3 सम्यक वाणी, कर्म और आजीविका
बुद्ध ने जीवन को शुद्ध और समरस बनाने के लिए सत्य बोलने, अहिंसा का पालन करने, और नैतिक आजीविका अपनाने का निर्देश दिया।
3.4 ध्यान और प्रज्ञा
बौद्ध धम्म व्यक्ति को ध्यान और प्रज्ञा के माध्यम से आत्मानुशासन, आत्मज्ञान और मानसिक संतुलन की ओर ले जाता है। यही जीवन-दृष्टि सामाजिक शांति और स्थायित्व की आधारशिला बनती है।
4. जातिविहीन समाज की कल्पना और आवश्यकता
4.1 सामाजिक समरसता का आधार
जातिविहीन समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार, अवसर और सम्मान प्राप्त होता है। यह समाज सह-अस्तित्व, परस्पर सहयोग और बंधुत्व की भावना से परिपूर्ण होता है।
4.2 लोकतंत्र और समता
जातिविहीन समाज लोकतंत्र की आत्मा है। जब सभी नागरिक समान होंगे, तभी लोकतंत्र वास्तविक अर्थों में प्रभावशाली बन सकता है।
4.3 आर्थिक विकास और न्याय
जातिविहीन समाज आर्थिक संसाधनों के न्यायसंगत वितरण की ओर अग्रसर करता है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं की समान उपलब्धता को सुनिश्चित करता है।
5. बौद्ध धम्म और आधुनिक भारत: एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
5.1 डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान
बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धम्म को जाति-विरोधी और वैज्ञानिक जीवन-दृष्टि के रूप में पुनःस्थापित किया। उन्होंने 1956 में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा लेकर भारत में सामाजिक क्रांति की नई राह खोली।
>”बुद्ध का धम्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की साक्षात अभिव्यक्ति है।” – डॉ. अंबेडकर
5.2 संविधान और धम्म के मूल्यों का साम्य
भारतीय संविधान में समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्य बौद्ध धम्म के ही प्रतिरूप हैं। दोनों में समान रूप से मानवता, न्याय और नैतिकता की प्रधानता है।
5.3 बौद्ध धम्म की प्रासंगिकता
आज के भारत में जब जातीय हिंसा, भेदभाव और सामाजिक असमानता अभी भी व्याप्त है, तब बौद्ध धम्म एक ऐसे वैचारिक और नैतिक मार्गदर्शक के रूप में उभरता है जो सभी के लिए कल्याणकारी है।
6. जातिविहीन और बौद्ध दृष्टि आधारित भारत: निर्माण की रणनीति
6.1 शिक्षा के माध्यम से परिवर्तन
बौद्ध मूल्यों पर आधारित नैतिक शिक्षा का प्रचार
जातिवाद विरोधी सामग्री को पाठ्यक्रम में शामिल करना
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कशक्ति का विकास
6.2 धर्मनिरपेक्ष सामाजिक आंदोलन
समानता और मानवाधिकार के लिए जनआंदोलन
बहुजन समाज को बौद्ध धम्म से जोड़ना
जाति तोड़ो, समाज जोड़ो अभियान
6.3 नीतिगत और संवैधानिक उपाय
जातिगत आरक्षण के साथ-साथ सामाजिक एकीकरण की पहल
जाति आधारित राजनीति और धार्मिक संकीर्णता पर रोक
बौद्ध संस्कृति केंद्रों की स्थापना
6.4 डिजिटल और मीडिया रणनीति
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर जातिविरोधी जागरूकता
बौद्ध धम्म की शिक्षाओं का सोशल मीडिया प्रचार
फिल्मों, वृत्तचित्रों, साहित्य और कला के माध्यम से विचार-प्रसार
7. निष्कर्ष: समतामूलक भारत की ओर
जातिविहीन समाज और बौद्ध धम्म पर आधारित जीवन-दृष्टि न केवल एक सामाजिक व्यवस्था है, बल्कि यह एक मानसिक और नैतिक क्रांति है। यह वह मार्ग है जो भारत को न केवल समृद्ध और विकसित बनाएगा, बल्कि उसे एक ऐसा राष्ट्र भी बनाएगा जो अखंड, सहिष्णु, न्यायसंगत और मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत हो।तथागत बुद्ध ने जो जीवन-दर्शन दिया था, और जिसे डॉ. अंबेडकर ने आधुनिक भारत में पुनःस्थापित किया, वही आज की सामाजिक चुनौती का समाधान प्रस्तुत करता है। यह केवल एक वैचारिक प्रस्तावना नहीं, बल्कि एक क्रियात्मक दृष्टिकोण है – जो भारत को जाति के बंधनों से मुक्त कर एक सच्चे ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ राष्ट्र की ओर ले जा सकता है।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा