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महान व्यक्तित्व व राष्ट्रवादी विचारधारा के उद्योगपति – रतन टाटा

मृत्युंजय दीक्षित

भारत के महान उद्योगपति रतन टाटा जी के निधन पर पूरे भारत ने उन्हें अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करी। रतना टाटा जी का व्यक्तित्व अनुपम व सराहनीय था यही कारण रहा कि उनके निधन का समाचार आते ही उनसे किसी न किसी रूप से जुड़े हर व्यक्ति ने उन्हें नमन किया। रतन टाटा न केवल एक उद्योगपति थे अपितु दूरदर्शीऔर मानवतावादी व्यक्ति थे।उन्होंने समाज के लिए अद्वितीय योगदान दिया और मानवीय आदर्शों को मूर्तरूप दिया।
रतन टाटा स्वदेशी की भावना को बढ़ावा देने वाले व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “मेक इन इंडिया“ मिशन के सच्चे सारथी थे। रतन टाटा ने राष्ट्रप्रथम की भावना से कार्य करते हुए राष्ट्र को व्यापारिक हितों से ऊपर रखा। उनका व्यवसायिक दृष्टिकोण वास्तव में देश के लिए परिवर्तनकारी सिद्ध हुआ। रतन टाटा हर प्रकार की आधुनिक सुविधाएं होते हुए भी सादगी भरा जीवन व्यतीत करने थे। यह रतन टाटा की कंपनियों का ही कमाल है कि आज भारत के हर घर- घर में उनकी उपस्थिति है, आयोडीन युक्त टाटा नमक से लेकर सुबह की चाय की पत्ती तक में टाटा का नाम है। रतन टाटा मात्र बिजनेस टाइटन ही नहीं थे अपितु अपने आप में एक संस्थान थे। रतन टाटा ने अपने परिश्रम के बल पर भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में स्थान दिलाया। रतन टाटा ने न केवल राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया अपितु वह बहुत बड़े समाजसेवी, दानवीर व पशु संरक्षक भी थे । यह रतन टाटा ने केवल कोविडकाल में ही 1500 करोड़ की धनराशि दान की थी।
रतन टाटा का जीवन भारत के उद्यमियों के लिए वैश्विक स्तर पर सोचने और आगे बढ़ने, बेदाग प्रतिष्ठा तथा कारपोरेट प्रशासन के उच्च मानक को बनाये रखने के लिए सदा प्रेरणास्रोत रहेगा। उन्होंने उद्योगपति रहते हुए भी अपने समस्त जीवन में ईमानदारी, विनम्रता तथा सामाजिक जिम्मेदारी के मूल्यों को अपनाया। राजनीति से दूर रहते हुए भी भारत के समावेशी विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अनुकरणीय है। वह नैतिक नेतृत्व के पर्याय हैं।
रतन टाटा का लालन -पालन 10 वर्ष की अवस्था से उनकी दादी ने ही किया क्योंकि उनके माता -पिता अलग हो गए थे। उन्होंने अमेरिका से आर्किटेक्चर की डिग्री ली और और दो साल वहां की एक फर्म में नौकरी भी की। रतन ने 1991 में जेआरडी टाटा से टाटा समूह की कमान संभाली और अपनी दूरदर्शिता, व्यापार कौशल और नैतिक नेतृत्व के बल पर टाटा समूह को वैश्विक पहचान दिलाई।1991 से 2012 तक रतन टाटा के कार्यकाल में टाटा समूह का राजस्व 46 गुना बढ़कर 4.75लाख करोड़ रुपए पहुंच गया। समूह का लाभ 51 गुना बढ़कर 33.5 करोड़ रुपए अधिक पहुंच गया। उनके कार्यकाल में टाटा समूह ने नए वेंचर्स और अंतरराष्ट्रीय विस्तार के बाद स्वयं को बदला जिससे समूह का बाजार पूंजीकरण 33 गुना बढ़ गया। टाटा के नेतृत्व में ही 2004 में टीसीएस का आईपीओ आया जो उस समय देश का सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा बड़ा इश्यू था। टाटा समूह निवेशकों की पहली पसंद बन गया ।रतन टाटा ने सर्वप्रथम नैनो कार का सपना देखा, दिखाया पूरा भी किया। जब पहली लाल रंग की नैनो कार भारत की सड़कों पर उतरी तो हर नागरिक उसे देखकर हर्षित हुआ।
रतन टाटा ने अपनी कंपनियों व विभिन्न समूहों के माध्यम से गरीबों, किसानों, महिलाओं और युवाओं का उद्धार किया। टाटा ट्रस्ट ने कुपोषण दर को कम करने और मातृ स्वास्थ्य में सुधार के लिए सरकारों के साथ काम किया। राष्ट्रीय पोषण मिशन के साथ साझेदारी में ट्रस्ट ने 1200 से अधिक फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया। कैंसर के इलाज तथा देखभाल के लिए भी संस्थानों के साथ साझेदारी कर अत्याधुनिक सुविधाएं दीं। टाटा समूह ने शिक्षा एवं कौशल विकास पर पर भी ध्यान दिया। टाटा ट्रस्ट किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद कर रहा है।ग्रामीण किसानों को फसल विविधीकरण और कुशल जल उपयोग जैसी स्थायी कृषि प्रणाली अपनाने मे भी मदद की है। रतन टाटा का समूह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभिनव योजना हर घर नल से जल योजना में भी भागीदारी कर रहा है।
ऐसा नही है कि रतन टाटा को अपने कैरियर में कभी विरोध नहीं झेलना पड़ा। बंगाल में उनकी परियोजनाओं का तीखा विरेध हुआ था और 2008 में उनको बंगाल से अपनी परयोजना बाहर हटानी पड़ी थी। तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा को एक शब्द का संदेश भेजकर उनकी टाटा नैनो परियोजना को गुजरात बुला लिया। नरेंद्र मोदी का वह एक शब्द था “वेलकम“। फिर 2010 में साणंद में 2000 करोड़ रुपए के निवेश से निर्मित टाटा नैनो संयंत्र का उद्घाटन किया गया।
ऐसा कहा जा सकता है कि रतन टाटा का जीवन वटवृक्ष की तरह था जिसने उद्योग, शिक्षा और समाजसेवा के अनगिनत क्षेत्रों को पोषित किया। वह खेलों की दुनिया के संपर्क में भी रहे और सिनेमा जगत में भी अपना हाथ आजमाया किन्तु एक फिल्म में काम करने के बाद उसको विराम दे दिया । टाटा समूह ने अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय हर समय में दिया और रतन ने इस परिपाटी को आगे बढ़ाया। वह हर क्षेत्र मे स्वदेशीकरण चाहते थे चाहे वह माचिस की डिब्बी बनाने का काम हो या फिर कार बनाने से लेकर हवाई जहाज या फिर लड़ाकू विमान बनाना।
रतन टाटा सदा भारत के अनमोल रतन की तरह स्मरण किये जाएंगे। उनके नेतृत्व में ही टाटा समूह की कंपनियां विश्व की जानी मानी कंपनियो से स्पर्धा करने में सक्षम बनीं। रतन टाटा सदा आम भारतीयों के सुख की चिंता किया करते थे।उनका लक्ष्य आम जन के जीवन स्तर को बेहतर बनाना था। वह भारत की आर्थिक उन्नति को लेकर सदा सक्रिय रहे और इसीलिए उन्होंने कई स्टार्टअप को आगे बढ़ने में सहायता की।
रतन टाटा का मानवीय पहलू उस समय सभी ने देखा जब 2008 में मुबई में 26/11 आतंकी हमले के बाद वो सभी 80 पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचे। इसी प्रकार अपने एक कर्मचारी के अस्वस्थ होने पर उन्होंने उसके घर पहुंचकर स्वयं परिस्थिति को समझा और उचित सहायता उपलब्ध करायी। कोविडकाल के दौरान आर्थिक संकट से जूझ रहे एक हॉकर की सहायता के लिए वह उससे प्रतिदिन 14 समाचार पत्र खरीदने लगे थे। रतन टाटा के संवेदनशील मन के ऐसे अनगिनत प्रमाण आज उनके अवसान पर सामने आ रहे हैं ।

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