राजनीतिसम्पादकीय

राहुल गांधी की मंशा और नियत पर सवाल

राकेश कुमार मिश्र

देश में सर्वोच्च संवैधानिक संस्था संसद में नेता विपक्ष राहुल गांधी एक लम्बे समय से जिस तरह देश में एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार के विरुद्ध झूठे एवं अतार्किक आरोप लगाकर देश में सरकार के प्रति अविश्वास फैलाने एवं अराजकता उत्पन्न करने की कोशिश कर रहे हैं, उसे देखकर उनकी मंशा और नियत पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। अपने अराजकता फैलाने के इस प्रयास में वे चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भी वोट चोरी कराने जैसे घृणित एवं मनगढ़ंत आरोप लगाने एवं देश के मुख्य चुनाव आयुक्त एवं सम्बन्धित अधिकारियों को सरकार बदलने पर देख लेने की धमकी तक दे रहे हैं। कल राजीव गांधी ने एक पी पी टी करके दूसरी बार चुनाव आयोग पर वोट चोरी कराने में संलिप्त होने का आरोप लगाया और यह भी कहा कि वोट चोरी करके सरकार बनाने का यह सिलसिला पिछले 10 – 15 वर्षों से चल रहा है। कल शाम को ही राजीव गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट लिखा जिसमें कहा गया कि देश के युवा, छात्र एवं जेन जी देश के लोकतंत्र को बचाएंगे ओर वोट चोरी रोकेंगे। मैं हमेशा आप के साथ खड़ा हूं। हम और आप सभी इस बात से अवगत हैं कि अभी हाल में ही नेपाल में हुए हिंसक एवं अराजक विद्रोह के पीछे जेन जी का ही हाथ था। ऐसे में उनके इस पोस्ट को युवा और छात्रों को सरकार के विरुद्ध उकसाने और सड़क पर उतरने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसे देश को अराजकता की आग में झोंकने का एक कुत्सित कदम ही कहा जा सकता है। हकीकत यह है कि पहले बंगलादेश और फिर नेपाल में हुए विद्रोह एवं सत्तापलट ने राहुल गांधी सहित सभी विपक्षी नेताओं में उम्मीद की एक किरण जगाई है कि युवाओं में सरकार के प्रति अविश्वास एवं भ्रम फैलाकर आसानी से सत्तापलट कर अपने हितों को साधा जा सकता है। राहुल गांधी और विपक्षी नेता यह भूल जाते हैं कि भारत में लोकतन्त्र की जड़ें बहुत मजबूत हैं और भारत की प्रबुद्ध एवं परिपक्व जनता ने पिछले 75 वर्षों में हर विपरीत परिस्थिति में भी सरकार बदलने के लिए अपनी वोट की ताकत और लोकतांत्रिक तरीके पर ही विश्वास किया है। नेपाल के विद्रोह के पीछे सबसे बड़ा कारण वहां राजनीतिक अस्थिरता के साथ साथ तीन नेताओं के बीच ही सत्ता की बंदरबांट एवं सरकारों में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार एवं परिवारवाद था। देश की वर्तमान सरकार न तो परिवारवाद की देन है और न ही उस पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप हैं जिससे देश का युवा और सामान्य जनमानस क्षुब्ध और आक्रोशित हो। इसके विपरीत देश की तीव्र प्रगति एवं विश्व में भारत के बढ़ते कद को देखते हुए युवाओं और लोगों में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा ही है। सरकार की अनेकों जनमानस के कल्याण हेतु चलाई गई योजनाओं जैसे उज्जवला योजना, आयुष्मान योजना, सभी के लिए आवास, मुफ्त अनाज वितरण, हर घर जल आदि के कारण सरकार के प्रति सामान्य जनमानस एवं समाज के कमजोर तबके का विश्वास बढ़ा है। ऐसे में राहुल गांधी के साथ साथ विपक्ष के यह मंसूबे दिन में ही सपने देखने जैसे लगते हैं। राहुल गांधी सहित विपक्षी नेताओं को भारत जैसी बड़ी एवं तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की नेपाल या श्रीलंका से तुलना करने में शर्म भी नहीं आती। यह भी गजब का संयोग है कि राहुल गांधी के ट्वीट का जवाब 24 घंटे के भीतर ही दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनाव में छात्रों ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को अध्यक्ष एवं महामंत्री सहित चार में तीन सीटें जिताकर दे दिया है अब तो राहुल गांधी की समझ में आ जाना चाहिए कि देश के युवा एवं जेन जी किसके साथ हैं। राहुल गांधी यह भी भूल जाते हैं कि नेपाल में जेन जी के निशाने पर वर्तमान सरकार एवं प्रधानमंत्री ही नहीं देश में भ्रष्टाचार एवं परिवारवाद में लिप्त रही सभी दलों के नेता थे। यदि भारत में भी उसी तर्ज पर कोई विद्रोह होता है तो सबसे पहले उसके निशाने पर लम्बे समय तक सत्ता का सुख भोगने वाले परिवारवादी राजनीति के वंशज उनके और उनके सहयोगी दलों के नेता ही होंगे जो भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे हैं और आज भी जमानत पर हैं। मोदी जी जैसे पारदर्शी जीवन जीने वाले एवं अपनी मेहनत से इस मुकाम पर पहुंचे जनसेवक राजनेता के लिए यह विषय ही महत्वहीन है। विपक्ष भले ही मोदी जी को हटाने के लिए कितने ही झूठे एवं अतार्किक षड़यंत्र रचे परन्तु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है अब भी मोदी जी देश के ही नहीं विश्व के सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं और आज भी देश की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग यह चाहता है कि मोदी जी भविष्य में भी भारत का लम्बे समय तक नेतृत्व करते रहें और भारत को सफलता की नई ऊँचाइयों तक ले जाने में सफल हों।
राहुल गांधी मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही लगातार उनके विरोध में दुष्प्रचार एवं अभद्र भाषा का प्रयोग करते रहे हैं।नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद से उनके सुर और अधिक स्तरहीन एवं अपमानजनक हो गए हैं। मोदी जी के विरोध में न तो उन्हें देश की गरिमा एवं प्रतिष्ठा को आघात पहुंचाने में कोई शर्म या परहेज है और न ही प्रतिष्ठित एवं संवैधानिक संस्थानों को गाली देने एवं अपमानित करने में कोई संकोच है। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक हमेशा वे विपक्ष के प्रमुख नेता के नाते कभी भी सरकार के साथ सकारात्मक विमर्श करने के स्थान पर दुष्प्रचार में ही संलिप्त रहे। राफेल सौदे पर उनका चौकीदार चोर का नारा उच्चतम न्यायालय के सौदे को क्लीन चिट दिए जाने और न्यायालय से लिखित माफी मांगने के बाद भी तब तक जारी रहा जब तक 2019 के आम चुनाव में देश की जनता ने उन्हें नकार कर आईना नहीं दिखा दिया। कभी पेगासस तो कभी हिंडनबरग जैसे मुद्दे उठाकर वे जनता में भ्रम फैलाने एवं संसद के संचालन में अवरोध खड़ा कर अराजकता को ही बढ़ावा देने में अपनी जीत समझते रहे। यहाँ यह जानना जरुरी है कि इनमें कोई भी आरोप न्यायालय के समक्ष टिक तक नहीं सका और कल ही सेबी ने अपने फैसले में अडानी पर हिंडनबरग रिपोर्ट के आधार पर लगाए गए सभी आरोपों से बरी कर दिया। आप सभी को याद होगा कि उपरोक्त रिपोर्ट आने पर न केवल पूरे संसद सत्र को बाधित किया गया वरन अडानी के साथ मोदी जी का नाम जोड़कर दोनों पर देश की जनता और निवेशकों के साथ विश्वासघात करने का दुष्प्रचार भी किया गया। जनता को यह समझाने की भी कोशिश की गई कि मोदी और अडानी की युगलबंदी से एल आई सी और स्टेट बैंक आफ इंडिया जैसे वित्तीय संस्थानों को भी भारी नुकसान पहुंचाने के साथ साथ आम आदमी की बचत एवं निवेश को भी जोखिम में डालने का काम किया गया। हकीकत यह है कि आज भी यह संस्थान रिकार्ड लाभ कमाकर सफलता के शिखर पर हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष के इस दुष्प्रचार का नुकसान अडानी के साथ साथ उनके शेयरों में निवेश करने वाले आम निवेशकों को भी उठाना पड़ा। मेरा पूरा विश्वास है कि राहुल गांधी को शायद ही कभी इसके लिए अफसोस हो कि उनकी गैर जिम्मेदार हरकत का नुकसान आम आदमी को उठाना पड़ा। अडानी ने निर्णय आने के बाद यह पूछा कि क्या विपक्ष अब अपने किए के लिए देश से माफी मांगेगा। इसी तरह कृषि क्षेत्र की तरक्की एवं छोटे सीमान्त किसानों के हित में लाए गए कृषि कानूनों को भी विपक्ष के दुष्प्रचार एवं अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर देने के कारण मोदी सरकार को संसद में पारित होने के बाद भी वापस लेना पड़ा। देश के अनेकों अर्थशास्त्रियों एवं कृषि विशेषज्ञों ने इसे बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बताया था।
राहुल गांधी के चरित्र की यह विशेषता है कि निरन्तर झूठ बोलने और सेना पर सवाल उठाने, चीन द्वारा भारतीय सीमा के अतिक्रमण जैसे दुष्प्रचार करने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्र को समर्पित संगठन एवं सावरकर जैसे महान देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी को अपशब्द कहने के लिए न्यायालय के द्वारा चेतावनी दिए जाने के बाद भी उनको न कोई अफसोस होता है और न उनकी भाषा में कोई सुधार दिखता है। राहुल गांधी आखिर चाहते क्या हैं कि सेना किसी भी कार्यवाही के समय या बाद में उनको अपनी रणनीति बताए और देश तथा शत्रु को होने वाले नुकसान का लेखा जोखा दे। यह भी उनकी समझ से परे है कि सेना की कार्यवाही एवं नफा नुकसान की चर्चा सार्वजनिक तौर पर करना कूटनीतिक तौर पर सही नहीं होता और न ही कोई देश ऐसा करता है। नेता प्रतिपक्ष को इतनी परिपक्वता तो दिखानी ही चाहिए कि वह मोदी विरोध में देश की सेना एवं सुरक्षा मामलों पर अनावश्यक सवाल उठाने से बचें। ईवीएम मशीन को लेकर तो राहुल गांधी सहित पूरा विपक्ष 10 वर्षों से दुष्प्रचार एवं चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करता रहा है परन्तु चुनाव आयोग के सख्त रुख और उच्चतम न्यायालय से भी निराशा ही हाथ लगने पर अब राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष ने 2024 के आम चुनाव में हार के बाद एक नया झूठा दुष्प्रचार करके चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए। 2024 के चुनाव के बाद कहीं मतदाता सूची में भाजपा के पक्ष में वोट बढ़ाने और कहीं समय के बाद भी थोक में भाजपा के पक्ष में मतदान कराने के मनगढ़ंत आरोप चुनाव आयोग पर लगाये गए जिनका जवाब भी चुनाव आयोग ने समय समय पर दिया। महाराष्ट्र विधान सभा के चुनाव में मिली करारी हार के बाद राहुल गांधी ने खुलकर चुनाव आयोग पर मतदाता सूची में गड़बड़ी कर भाजपा को जिताने के आरोप लगाए। यहां भी चुनाव आयोग के जवाब एवं उच्चतम न्यायालय तक से मात खाने के बाद भी वे आज तक चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाने और भाजपा के पक्ष में मतदाता सूची में फेरबदल करने के दुष्प्रचार पर कायम हैं। इसी बीच चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधान सभा के चुनाव के पूर्व मतदाता सूची के शुद्धिकरण के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण कराने का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही बिहार में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव के साथ मिलकर चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए जिसमें पूरा विपक्ष उनके साथ आ गया। चुनाव आयोग पर यह आरोप लगाया गया कि वह इस प्रक्रिया द्वारा उनके समर्थक दलित एवं अल्पसंख्यक समुदाय के नाम काटकर भाजपा को बिहार में जिताने के लिए काम कर रहा है। चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण कराने की प्रक्रिया पर सवाल उठाने के साथ साथ इसे असंवैधानिक तक कहा गया और उच्चतम न्यायालय तक में इसे चुनौती दी गई। उच्चतम न्यायालय ने विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया को संवैधानिक एवं मतदाताओं से मित्रवत करार देते हुए चुनाव आयोग का विशेषाधिकार माना और इस पर रोक लगाने से मना कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को आधार कार्ड को भी सबूत वाले दस्तावेजों में शामिल करने का निर्देश अवश्य चुनाव आयोग को दिया परन्तु उसकी सत्यता को जांचने का अधिकार भी उसे दे दिया। इसके बाद जनता को भ्रमित करने के लिए राहुल और तेजस्वी ने बिहार में वोट अधिकार यात्रा की जिसका एकमात्र लक्ष्य चुनाव आयोग को खुलकर वोट चोरी में संलिप्त बताने एवं भाजपा के पक्ष में काम करने वाली संस्था बताकर जनता में चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर अविश्वास फैलाकर अराजकता को बढ़ावा देना था। इस यात्रा में ही चुनाव आयोग को बुरा भला कहकर देश के चुनाव आयुक्तों को सरकार बदलने पर देख लेने की धमकी तक दे गई। इसी दौरान वोट चोर गद्दी छोड़ के नारे के साथ न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में लम्बे समय से वोट चोरी करके सरकार बनाने का आरोप भाजपा पर लगाया गया और मोदी सरकार को बदनाम कर अराजकता फैलाने और उस पर जनता के विश्वास को तोड़ने की मुहिम चलाई गई।
अभी कुछ दिनों पहले ही राहुल गांधी ने एक पी पी टी करके कर्नाटक की सेन्ट्रल बंगलौर संसदीय सीट के महादेवपुरा विधान सभा क्षेत्र की मतदाता सूची में एक लाख से अधिक फर्जी मतदाता जोड़कर भाजपा को जिताने का आरोप चुनाव आयोग पर लगाया गया जिसके अनेक दावे झूठे निकले और विभिन्न समाचार चैनलों ने ही चौबीस घंटे के भीतर उनके अनेक आरोपों की हवा निकाल दी। राहुल गांधी ने इसे एटम बम कहते हुए अपने और सहयोगी दलों के सांसदों को डिनर पर बुलाकर उस पी पी टी को दिखाया। कुछ दिनों बाद ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपनी टीम के साथ एक प्रेस वार्ता करके सभी सवालों का न केवल जवाब दिया बल्कि मतदाता सूची में चली आ रही गड़बड़ियों को दूर करके स्वच्छ नई मतदाता सूची तैयार करने के लिए देश भर में विशेष गहन पुनरीक्षण कराने की बात भी कही। मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी कहा कि आरोप लगाने वालों को पत्र भेजा जा चुका है कि वे शपथ पत्र पर हस्ताक्षर के साथ आरोपों की लिखित शिकायत करें जिससे जांच करके समुचित जवाब दिया जा सके। मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी कहा कि ऐसा न करने पर एक हफ्ते के बाद उन आरोपों को निरस्त समझा जाएगा। राहुल गांधी ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया और कहा कि उनके वचन ही उनके हस्ताक्षर हैं। चुनाव आयोग का दायित्व है कि वह जांच करके आरोपों का जवाब दे। यह साफ है कि राहुल गांधी को अपने आरोपों पर स्वतः भरोसा नहीं है और इसीलिए वह लिखित शिकायत देने से बच रहे हैं। राहुल गांधी की नीयत पर इसलिए भी संदेह होता है कि एक तरफ वे मतदाता सूची में गड़बड़ी पर चुनाव आयोग को घेरने और उस पर वोट चोरी में संलिप्त होने का आरोप लगाते हैं और दूसरी तरफ बिहार में मतदाता सूची के शुद्धिकरण के लिए चलाए गए विशेष गहन पुनरीक्षण का विरोध करने के लिए पद यात्रा भी निकालते हैं। इससे तो यही समझ में आता है कि उनका ऐजेंडा मतदाता सूची में गड़बड़ी दूर कर स्वच्छ मतदाता सूची के द्वारा मतदान कराने जाने के बजाय झूठा दुष्प्रचार कर मोदी सरकार एवं चुनाव आयोग के प्रति लोगों में अविश्वास फैलाने और अराजकता को बढ़ावा देना है।
कल की भी पी पी टी में उन्होंने जो आरोप लगाए, उन्हें चुनाव आयोग ने तुरन्त खारिज कर दिया और बेबुनियाद बताया। इसमें एक आरोप कर्नाटक की एक विधान सभा सीट पर आनलाइन किसी अन्य पक्ष द्वारा 6018 वोटों को काटने के लिए चुनाव आयोग को आवेदन करना था। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर यह भी आरोप लगाया गया कि उसने जांच एजेंसी को जांच के लिए मांगे गए दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए। चुनाव आयोग ने बताया कि ऐसा प्रयास हुआ था और इसकी शिकायत उसने ही दर्ज कराई थी। यही नहीं सीबीआई को जांच के लिए सभी मांगे गए दस्तावेज 2023में ही सौंप दिए गए थे। इन आवेदनों में तफ़तीश के बाद मात्र 24 आवेदन ही वैध पाए गए जिनके नाम मतदाता सूची से हटाए गए। चुनाव आयोग ने स्पष्ट बताया कि बिना कानूनी प्रकिया पूरी किए किसी भी मतदाता का नाम आनलाइन नहीं हटाया जा सकता है। कल ही राहुल गांधी ने महाराष्ट्र की एक विधान सभा सीट पर मतदाता सूची में अवैध रूप से नाम बढ़ाने का भी आरोप चुनाव आयोग पर लगाया जिसे भी चुनाव आयोग ने निराधार बताकर खारिज कर दिया।राहुल गांधी ने यह भी कहा कि अभी हाइड्रोजन बम आना बाकी है।
सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि राहुल गांधी ऐसा क्यों कर रहे हैं। क्या उनकी यह गैर जिम्मेदार गतिविधियां और चुनाव आयोग को चोरी में संलिप्त बताना और रोज अपशब्द कहना उनके नेता प्रतिपक्ष की गरिमा के अनुरूप है। इतिहास गवाह है कि 75 वर्षों में कभी भी चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को इस तरह बदनाम करने और मुख्य चुनाव आयुक्त को गाली एवं धमकी देने का कोई उदाहरण नहीं मिलता।पहले यह समझा जाता था कि राहुल गांधी ऐसा नासमझी या मोदी विरोध में सीमा के अतिक्रमण करने के कारण कर जाते हैं। कभी कभी यह शंका अवश्य होती थी कि वो ऐसा किसी साजिश या विदेशी ऐजेंडे के तहत तो नहीं कर रहे हैं परंतु अब उनके द्वारा किए जा रहे गैर जिम्मेदार एवं सरकार तथा संवैधानिक संस्थानों को बदनाम करने के लिए चलाई जाने वाली मुहिम से यह शक यकीन में बदल जाता है कि राहुल गांधी ऐसा सोरोस जैसे मोदी एवं देश विरोधी लॉबी के इशारे पर कर रहे हैं। शायद उनके विदेश में बैठे आकाओं ने उन्हें यह समझाया है कि वो मोदी को तभी अपदस्थ कर सकते हैं जब वो देश में सरकार एवं संवैधानिक संस्थानों के प्रति अविश्वास का वातावरण बनाकर देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न करने में सफल हों। देश में लोकतंत्र की समाप्ति एवं संविधान पर संकट जैसे दुष्प्रचार तो लम्बे समय से राहुल गांधी की मुहिम का आधार रहे हैं जिसका नुकसान भी भाजपा को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा। राहुल गांधी एक लम्बे समय से यह आरोप भी लगाते रहे हैं कि भाजपा ने संवैधानिक संस्थानों में आर एस एस के लोगों को बिठाकर उन पर कब्जा कर लिया है। अब वे खुलकर चुनाव आयोग पर भाजपा से मिलीभगत और वोट चोरी में मदद कर भाजपा की सरकार बनवाने का आरोप लगा रहे हैं। कल देश के युवाओं और जेन जी का संविधान, लोकतंत्र और वोट चोरी रोकने के लिए आह्वान इसी टूलकिट का एक भाग है। ऐसा करके राहुल गांधी देश में अराजकता एवं अविश्वास का माहौल उत्पन्न करने का प्रयास तो कर ही रहे हैं, वो देश के युवाओं को भी गुमराह करने का निन्दनीय कृत्य कर रहे हैं। राहुल गांधी नेता विपक्ष के संवैधानिक पद की गरिमा भी गिराने में कोई कसर नहीं रख रहे जिस पद पर की शोभा कांग्रेस के राज्य में भारत रत्न श्री अटल बिहारी बाजपेई जी, लाल कृष्ण आडवाणी जी ने बढ़ाई हो। देश के लोग और युवा यह अच्छी तरह समझते हैं कि राहुल गांधी के नेतृत्व में पूरा विपक्ष ऐसा मात्र किसी भी तरह सत्ता पर काबिज होने के लिए कर रहा है। इनका न तो देश के युवाओं से कोई लगाव है और न ही देश के संविधान और लोकतंत्र की गरिमा बचाने के लिए वे ऐसा कर रहे है। यह तो सत्य है कि भारत जैसे बड़े एवं परिपक्व लोकतांत्रिक देश में राहुल गांधी की मुहिम चलने वाली नहीं है, फिर भी उनके इरादे और नीयत देश के लिए खतरनाक हैं और इन पर अंकुश लगाना जरुरी है। मेरे विचार से उच्चतम न्यायालय को इसका स्वतः संज्ञान लेकर देश में फैलायी जा रही भ्रम एवं अराजकता की स्थिति से देश को बचाने के लिए आगे आना चाहिए और सम्बन्धित लोगों को देशहित में निर्देशित करने का काम करना चाहिए।

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