क्यों पानी को लेकर आमने-सामने आते हैं कर्नाटक और तमिलनाडु, क्या है इसकी वजह
तमिलनाडु और कर्नाटक में कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर विवाद दशकों से जारी है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक को जून से मई के बीच तमिलनाडु के लिए 177 टीएमसी पानी छोड़ने का आदेश दिया था। हाल में तमिलनाडु ने कर्नाटक द्वारा निश्चित पानी न दिए जाने का आरोप लगाया है।
तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद के चलते मंगलवार को बंगलूरू में बंद रहा। इसके चलते देश की आईटी राजधानी बंगलुरू की रफ्तार थम गई। सड़कों पर लोग नदारद रहे। दोनों राज्यों के बीच यह जंग कई दशक पुरानी है। मामला निचली अदालतों से लेकर देश की उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा लेकिन विवाद खत्म नहीं हो सका। 2018 में कोर्ट ने कर्नाटक को प्रति दिन 5,000 क्यूसेक की दर से तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने का आदेश दिया था। इसी आदेश को लेकर अब कर्नाटक में विरोध हो रहा है। कावेरी जल विवाद क्या है? इसकी शुरुआत कब हुई? उसके बाद से मामला कैसे चला? हालिया दिनों में किस बात को लेकर लड़ाई है? विरोध करने वालों का क्या कहना है? आइये जानते हैं...
Cauvery dispute
पहले जानते हैं कावेरी नदी के बारे में...
विवाद को समझने से पहले कावेरी नदी के विस्तार को समझना अहम है। दरअसल, कावेरी एक अंतरराज्जीय बेसिन है जिसका उद्गम कर्नाटक है और यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले तमिलनाडु और पुडुचेरी से होकर गुजरता है। कावेरी बेसिन का कुल जलसंभरण (वाटरशेड) 81,155 वर्ग किलोमीटर है जिनमें से कर्नाटक में नदी का जल संभरण क्षेत्र सबसे ज्यादा लगभग 34,273 वर्ग किलोमीटर है। इसके बाद केरल में कुल जल संभरण क्षेत्र 2,866 वर्ग किलोमीटर है और तमिलनाडु और पांडिचेरी में शेष 44,016 वर्ग किलोमीटर जल संभरण क्षेत्र है।
इसके बाद कावेरी नदी की सहायक नदियों की भूमिका भी अहम होती है। कर्नाटक में हरंगी और हेमावती बांध हरंगी और हेमावती नदियों पर बने हैं। हरंगी और हेमावती कावेरी की ही सहायक नदियां हैं। राज्य में मुख्य कावेरी नदी में इन दो बांधों के निम्न धारा में कृष्णा राजा सागर बांध बनाया गया है। कर्नाटक के कबिनी जलाशय का निर्माण कावेरी नदी की एक सहायक नदी कबिनी नदी पर किया गया है जो कृष्णा सागर जलाशय में जुड़ती है।
अब जब कावेरी तमिलनाडु की ओर आती है तो यहां नदी की मुख्यधारा में मेटुर बांध बनाया गया है। कावेरी के साथ कबिनी और मेटूर बांध के संगम के बीच केन्द्रीय जल आयोग ने मुख्य कावेरी नदी पर दो जीएंडडी स्थलों यानी कोलेगल और बिलीगुंडलू की स्थापना की है। बिलीगुंडुलू जीएंडडी स्थल मेटूर बांध के तहत लगभग 60 किलोमीटर है जहां कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ सीमा बनाती है।
अब जानते हैं कि विवाद क्या है?
तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद लंबे समय से जारी है। साल 1892 और 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों के तहत दोनों राज्यों में कावेरी नदी के पानी के बंटवारे पर सहमति बनी थी। पानी के बंटवारे पर असहमति को दूर करने के लिए साल 1990 में भारत सरकार ने दो जून 1990 को कावेरी जल विवाद अधिकरण (सीडब्लूडीटी) की स्थापना की।
सीडब्लूडीटी ने कर्नाटक को राज्य में अपने जलाशय से पानी छोड़ने का निर्देश देते हुए 25 जून 1991 को एक अंतरिम आदेश पारित किया था। उस आदेश में कहा गया था कि एक जल वर्ष में (एक जून से 31 मई) मासिक रूप से या साप्ताहिक आकलन के रूप में तमिलनाडु के मेटूर जलाशय को 205 मिलियन क्यूबिक फीट (टलएमसी) पानी सुनिश्चित हो सके।
जल शक्ति मंत्रालय के जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के मुताबिक, किसी विशेष महीने के संदर्भ में चार बराबर किस्तों में चार सप्ताहों में पानी छोड़ा जाना होता है। यदि किसी सप्ताह में पानी की अपेक्षित मात्रा को जारी करना संभव नहीं हो तो उस कमी को पूरा करने के लिए बाद के सप्ताह में छोड़ा जाएगा। वहीं विनियमित तरीके से तमिलनाडु द्वारा पांडिचेरी के काराइकेल क्षत्र के लिए छह टीएमसी जल दिया जाएगा।
सीडब्लूडीटी बनने के बाद भी तमिलनाडु और कर्नाटक में कई मुद्दों को लेकर विवाद जारी रहा और अंततः मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक को जून से मई के बीच तमिलनाडु के लिए 177 टीएमसी पानी छोड़ने का आदेश दिया था। कोर्ट ने अंतिम अदालती आदेशों के ढांचे के भीतर राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करने के लिए कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) और कावेरी जल नियामक समिति (सीडब्ल्यूआरसी) के गठन का भी आदेश दिया था।