
संसद के शीतकालीन चुनाव सुधार परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष के अनेक सांसदों ने अपने विचार व्यक्त किए। हकीकत यह है कि यह परिचर्चा चुनाव सुधार पर किसी महत्वपूर्ण सकारात्मक मंथन पर कम, विशेष गहन पुनरीक्षण की उपादेयता एवं तार्किकता तथा चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर विपक्ष के सवालों पर अधिक केन्द्रित थी। हम सभी ने देखा है कि संसद में सभी विपक्षी नेताओं ने बारह राज्यों में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण या एस आई आर को वोट चोरी का कुत्सित कदम बताने और चुनाव आयोग पर भाजपा के साथ मिलकर वोट चोरी कराने जैसे घृणित आरोप खुलकर लगाए गए। विपक्षी नेताओं के एस आई आर के प्रति इस रवैये पर तरस और आक्रोश इसलिए आता है क्योंकि वह अपनी हरकतों से देश के उच्चतम न्यायालय की भी अवमानना कर रहे हैं जिसने इस मुद्दे पर दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए अनेक बार कहा कि मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण चुनाव आयोग का संवैधानिक अधिकार है और चुनाव आयोग द्वारा एस आई आर कराना पूर्णतः संवैधानिक है। बिहार चुनाव के समय ही उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग की एस आई आर प्रकिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। संसद में अनेक विपक्षी नेताओं के साथ साथ लोक सभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने भी अपने विचार रखे। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश के सभी संवैधानिक संस्थानों पर कब्जा कर लिया है। चुनाव आयोग भी भाजपा के इशारे पर कार्य कर रहा है और वोट चोरी में भाजपा की मदद कर रहा है। उन्होंने चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए और यह आरोप लगाया कि भाजपा ने कानून बनाकर जानबूझकर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के पैनल से उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को बाहर कर दिया। राहुल गांधी ने यह भी सवाल उठाए कि चुनाव आयोग ने यह नया नियम किस मंशा से बनाया कि वह पोलिंग बूथ के सीसीटीवी फुटेज 45 दिन तक ही संरक्षित रखेगा और मतगणना के 45 दिन के बाद किसी पक्ष की मांग पर भी सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा वोट चोरी के प्रमाण सामने नहीं आने देने के लिए किया जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने चुनाव आयुक्त को किसी भी जवाबदेही से बचाने के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करने वाले कानून को पारित किया।
भारत सरकार के गृह मंत्री अमित शाह जी ने लोकसभा में परिचर्चा के दूसरे दिन नेता विपक्ष सहित सभी विपक्षी नेताओं के द्वारा उठाए गए सवालों का विस्तार से जवाब अपने सम्बोधन में दिया। सदन में अमित शाह जी के सम्बोधन के समय नेता विपक्ष राहुल गांधी भी उपस्थित थे। राहुल गांधी ने जब बीच में कई बार टोका टांकी करते हुए अपने सवालों का पहले जवाब देने की बात कही तो माननीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने सख्त लहजे में कहा कि वह अपने भाषण का क्रम स्वतः निर्धारित करेंगे और राहुल गांधी की तरफ इशारा करके कहा कि सदन आपकी मुन्सिफी से नहीं चलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी नेता सब्र रखें और सुनें। मैं उनके सवालों का ही जवाब देने के लिए खड़ा हुआ हूँ और सदन चाहे देर रात तक चलाना पड़े, मैं तब तक नहीं बैठूंगा जब तक विपक्ष को अपने सभी सवालों का जवाब नहीं मिल जाता। सच कहा जाए तो माननीय गृह मंत्री ने अपने संबोधन में नेता विपक्ष सहित विपक्ष के द्वारा उठाए सभी सवालों का सिलसिलेवार ढंग से तर्कसंगत जवाब दिया और विपक्षी नेताओं को बगल झांकने के लिए मजबूर कर दिया। हद तो तब हो गई जब माननीय गृह मंत्री जी ने घुसपैठियों की बात प्रारम्भ की और इस विषय में सरकार की नीति सदन के सामने पेश की तो कांग्रेस सहित विपक्ष ने वाक आउट कर दिया। निर्लज्जता की हद है कि सदन के बाहर नेता विपक्ष राहुल गांधी ने पत्रकारों से कहा कि मेरे किसी सवाल का जवाब नहीं मिला और अमित शाह डर के मारे कांप रहे जब वह सदन में बोल रहे थे।
अमित शाह जी ने संवैधानिक संस्थानों पर संघ के कब्जे के आरोप पर जवाब देते हुए कहा कि क्या संघ कोई प्रतिबंधित संगठन है या कोई ऐसा कानून है कि संघ की विचारधारा से जुड़ा व्यक्ति किसी संस्थान का प्रमुख नहीं बन सकता। अमित शाह जी ने यह भी कहा कि विपक्षी नेता यह भूल जाते हैं कि देश का प्रधानमंत्री,गृह मंत्री और अनेकों मंत्री संघ की विचारधारा से जुड़े हुए हैं और हमें जनता ने चुना है। हम आपकी कृपा से सत्ता में नहीं हैं वरन जनता के विश्वास ने हमें यह मौका दिया है। अमित शाह जी ने कहा कि यह स्वाभाविक है कि जो राजनीतिक दल सत्ता में होता है उसकी विचारधारा से जुड़े लोग ही विभिन्न संस्थानों में
पदासीन होते हैं। मेरा भी इस आरोप पर यह कहना है कि इससे बचकाना एवं भ्रामक आरोप नहीं हो सकता कि विश्वविद्यालयों के कुलपति से लेकर विभिन्न संवैधानिक संस्थानों के प्रमुख के पद पर संघ की विचारधारा से जुड़े लोग इन संस्थानों की गरिमा गिरा रहे हैं और देश को तबाही की ओर ले जा रहे हैं। यह विपक्षी नेता भूल जाते हैं कि संघ की विचारधारा से जुड़े लोगों के लिए राष्ट्र प्रथम ही पहला मंत्र है और देश के विरूद्ध वे सोच भी नहीं सकते। हास्यास्पद तो यह है कि यह आरोप वह कांग्रेस पार्टी लगा रही है जिसके सत्ता के लम्बे समय में अनेक वामपंथी विचारों से पोषित और जुड़े लोग विभिन्न संस्थानों के प्रमुख और कुलपति के पदों पर बैठाए जाते रहे जिनकी देश के प्रति निष्ठा ही हमेशा संदेहास्पद रही है और चीन से उनका भावनात्मक लगाव किसी भी देशवासी से छिपा नहीं है। संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन इन वामपंथियों के हमेशा निशाने पर रहे हैं। आज कांग्रेस जिस तरह वामपंथी विचारों में यकीन रखने वालों के नियंत्रण में है, इससे उसकी परेशानी समझी जा सकती है। नेता विपक्ष राहुल गांधी को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि जब कांग्रेस लम्बे समय तक सत्ता में रही तो उसने संघ से जुड़े कितने लोगों को किसी महत्वपूर्ण पद पर सेवा का मौका दिया। ऐसे में वह यह उम्मीद कैसे करते हैं कि संघ से जुड़े लोग सत्ता में रहते अपने धुर विरोधियों एवं उन्हें अछूत समझने वाले लोगों को संवैधानिक पदों पर मौका देंगे। जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।
माननीय गृह मंत्री अमित शाह जी ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रकिया पर नेता विपक्ष राहुल गांधी द्वारा उठाए सवाल का जवाब देते हुए कहा कि यह पूर्णतया गलतबयानी एवं दुष्प्रचार की पराकाष्ठा है। हकीकत यह है कि देश में संविधान लागू होने के बाद से 73 वर्षों तक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कोई कानून ही नहीं था और ना ही कभी संसद में इस विषय पर कोई कानून बनाने की पहल हुई। इतने लम्बे समय तक देश में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एकमात्र प्रधानमंत्री की संस्तुति पर महामहिम राष्ट्रपति द्वारा शासनादेश निर्गत करके की जाती रही। चुनाव आयोग एक सदस्यीय होगा या बहु सदस्यीय, यह महत्वपूर्ण निर्णय भी प्रधानमंत्री अपनी कैबिनेट की मीटिंग में ही ले लेते थे। विपक्ष की तो कोई भूमिका ही नहीं थी, तब भी हमने कभी प्रकिया के पक्षपातपूर्ण होने के आरोप नहीं लगाए। आज संसद से पारित कानून में तीन सदस्यों में नेता विपक्ष भी शामिल है जबकि अन्य दो सदस्य माननीय प्रधानमन्त्री और उनके द्वारा नामित मंत्री होते हैं। विपक्ष का आरोप है कि सत्तापक्ष के बहुमत के कारण नेता विपक्ष का होना महत्वहीन हो जाता है। ऐसे में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बने कानून में सरकार ने अपने हितों को पोषित करने वाले चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की व्यवस्था की है। ऐसे चुनाव आयुक्तों से निष्पक्षता से काम करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? अमित शाह जी ने जवाब देते हुए कहा कि हमने तो फिर भी विपक्ष को एक तिहाई प्रतिनिधित्व दिया है और तब भी हम पर गलत नीयत का आरोप लगाया जाता है। अमित शाह जी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि यह निष्पक्षता और पारदर्शिता का सवाल वह लोग उठा रहे हैं जिनने अपने समय में विपक्ष को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रकिया में कभी कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया। वर्तमान कानून जो संसद से पारित है, उसमें नेता विपक्ष महत्वपूर्ण सदस्य हैं और उनको आपत्ति नोट लिखने का भी अधिकार है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रकिया से बाहर किए जाने पर उठाए गए सवाल का जवाब देते हुए अमित शाह जी ने बताया कि यह भी एक दुष्प्रचार है क्योंकि मुख्य न्यायाधीश को बाहर करने का सवाल ही कहां उठता है जब पहले ऐसा कोई कानून ही नहीं था। एक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के विरोध में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए संसद को कानून बनाने का निर्देश दिया था और कानून बनने तक एक अस्थायी व्यवस्था के तहत उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था जिसमें प्रधानमंत्री एवं नेता विपक्ष भी सदस्य थे। कानून बन जाने पर वह अस्थायी व्यवस्था स्वतः समाप्त हो गई। मेरा मानना है कि बेहतर होता कि सरकार कानून बनाने के समय प्रधानमंत्री एवं नेता विपक्ष के साथ तीसरे सदस्य के रूप में किसी विधि विशेषज्ञ या समाज सेवी को शामिल कर सकती थी। इससे शायद विपक्ष की शंका का कुछ निवारण हो पाता। वैसे शंका का इलाज कठिन ही है क्योंकि इनकी भी नियुक्ति अन्ततः सरकार ही करती।यह मेरा भी मानना है कि जरूरी नहीं कि हर प्रशासनिक प्रकिया में न्यायालय का भी दखल हो और बिना न्यायाधीश को शामिल किए कोई प्रकिया पारदर्शी एवं निष्पक्ष नहीं हो सकती।
माननीय गृह मंत्री ने 45 दिनों में सीसीटीवी फुटेज नष्ट कर देने और चुनाव आयोग द्वारा 45 दिनों के बाद फुटेज देने से मना करने के आरोप पर जवाब देते हुए कहा कि चुनाव परिणाम से सम्बन्धित किसी याचिका की समय सीमा 45 दिन पहले से ही जन प्रतिनिधित्व कानून में तय कर दी गई थी। तब सीसीटीवी की तकनीक आई ही नहीं थी। जब सीसीटीवी की तकनीक आई तो उसके फुटेज रखने की अनिवार्यता को भी उसी से सम्बद्ध कर कानून बनाया गया। सोचने की बात है कि जब 45 दिन के बाद चुनाव परिणाम से सम्बन्धित कोई याचिका दाखिल ही नहीं हो सकती तो उस समय सीमा के बाद फुटेज संरक्षित रखने का क्या औचित्य है। जिन चुनाव क्षेत्रों में याचिका दाखिल होती है, वहां के सीसीटीवी फुटेज न्यायालय के निर्देश पर चुनाव आयोग अन्तिम फैसला आने तक संरक्षित रखता है। इसमें आखिर आपत्तिजनक क्या है। चुनाव आयोग अकारण बिना किसी प्रयोजन के अनंत काल तक लोगों की शंकाओं के निवारण के लिए फुटेज संरक्षित रखने के लिये बाध्य नहीं है।
चुनाव आयुक्तों को कानूनी संरक्षण दिए जाने के सवाल पर अमित शाह जी ने कहा कि देश में संविधान लागू होने के समय से ही महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को संरक्षा एवं सुरक्षा प्राप्त रही है जिससे वे बिना किसी भय एवं दबाव के अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन कर सकें। विपक्ष द्वारा इसे सत्तापक्ष के हितों के साथ जोड़ना हास्यास्पद है।
नेता विपक्ष द्वारा चुनाव आयोग के मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को सत्तापक्ष के लिए वोट चोरी करार देने पर माननीय गृह मंत्री ने कहा कि मतदाता सूची का शुद्धिकरण चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है और इसके लिए चुनाव आयोग को एस आई आर कराने का संवैधानिक अधिकार है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि यह चुनाव आयोग का अधिकार है कि वह सुनिश्चित करे कि मतदाता सूची में पात्र भारतीय नागरिकों के ही नाम हों और सभी पात्र नागरिक मतदाता सूची में शामिल हों। अमित शाह जी ने कहा कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर वोट चोरी का आरोप लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मैं सदन के माध्यम से लोगों को बताना चाहूंगा कि वोट चोरी कितने तरीके से की जाती है। अमित शाह जी ने पहला उदाहरण नेहरू जी के सरदार पटेल की तुलना में नगण्य वोट पाकर भी प्रधानमंत्री पद पर कब्जा करने का दिया। दूसरा उदाहरण न्यायालय द्वारा श्रीमती इन्दिरा गांधी के चुनाव में धाँधली के आधार पर चुनाव निरस्त करने का दिया और जोर देकर कहा कि सत्ता में बने रहने के लिए श्रीमती गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर लोगों के नागरिक अधिकारों को कुचल दिया गया और विपक्ष के हजारों नेताओं को जेल में डाल दिया गया। तीसरा उदाहरण अभी जल्दी ही श्रीमती सोनिया गांधी को न्यायालय द्वारा भेजे गए नोटिस का था जिसमें यह पूछा गया है कि उनका नाम 1980 की मतदाता सूची में कैसे आया जबकि उनको भारत की नागरिकता 1983 में मिली। अमित शाह जी ने कहा कि जिन लोगों का पिछला रिकार्ड ऐसा रहा है वो किस नैतिक बल के आधार पर संवैधानिक संस्थानों और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हैं। नेता विपक्ष ने कुछ दिनों पहले ही एक परमाणु बम विस्फोट की बात कही थी परन्तु वो एक भी तथ्य साक्ष्य के साथ प्रस्तुत नहीं कर सके। इस पर नेता विपक्ष ने अमित शाह जी को अपनी प्रस्तुति पर खुली बहस की चुनौती तक दे डाली। यह सत्य है कि मतदाता सूची में अनेकों कमियां हैं। मृत लोगों के नाम, स्थानान्तरित लोगों के नाम, डूप्लीकेट नाम आदि मतदाता सूची में बने रहना चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली में कमी एवं लापरवाही का ही नतीजा है। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि इतने बड़े देश में मतदाता सूची के नियमित शुद्धिकरण के लिए चुनाव आयोग के पास पर्याप्त कर्मचारियों का संख्या बल भी नहीं है और उसे अपने अधिकांश कामों के लिए राज्य सरकारों पर निर्भर रहना पड़ता है। हमारे देश में जनता भी इतनी जागरूक एवं तत्पर नहीं है कि वह परिवार में किसी की मौत या स्थानान्तरित होने पर चुनाव आयोग को सूचित करे और निर्धारित प्रकिया का अनुपालन कर कार्यवाही सुनिश्चित करे। ऐसे में मतदाता सूची का तब तक शुद्धिकरण नहीं हो पाता जब तक इसके लिए विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान न चलाया जाए। पहले भी समय समय पर ऐसे अभियान चलाए गए हैं। पिछला विशेष गहन पुनरीक्षण 2002-03 में किया गया था। अब भी चुनाव आयोग विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत मतदाता सूची के शुद्धिकरण का ही काम कर रहा है जिसका सभी दलों एवं मतदाताओं को स्वागत करते हुए पूर्ण सहयोग करना चाहिए। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के सभी विपक्षी राजनैतिक दल इस विशेष गहन पुनरीक्षण या एस आई आर को वोट चोरी जैसे घृणित आरोप से जोड़ रहे हैं और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। कोई इसे मुसलमानों एवं दलितों के वोट काटने का षड़यंत्र बता रहा है तो कोई इसके समय पर सवाल उठा रहा है। यह कितना सतही एवं हास्यास्पद तर्क है कि चुनाव आयोग शादी के मौसम में एस आई आर इसलिए करा रहा है कि लोग फार्म न भर सकें और उनके नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकें। अखिलेश यादव एवं ममता बनर्जी का यह भी कहना है कि एस आई आर के बहाने सरकार छिपे तरीके से एन आर सी करा रही है। पहली बात यह है कि एन आर सी कराने का अधिकार भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पास है। चुनाव आयोग इसके लिए सक्षम नहीं है। चुनाव आयोग तो इतना ही कर रहा है कि केवल वैध मतदाताओं का नाम ही मतदाता सूची में रहे।
संसद में माननीय गृह मंत्री ने जैसे ही घुसपैठियों पर अपनी सरकार की नीति बताते हुए कहा कि उनकी सरकार घुसपैठियों की पहचान, मतदाता सूची से नाम हटाने और उन्हें वापस भेजने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश में प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री देश की जनता चुनेगी। घुसपैठियों को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता। विपक्षी दल एस आई आर का विरोध करके इन घुसपैठियों के साथ हमदर्दी दिखा रहे हैं और उनका बचाव करने में लगे हैं। इतना सुनते ही कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों ने संसद का बहिष्कार कर दिया और बाहर चले गए। हम सभी जानते हैं कि मतदाता सूची की विसंगतियों को अपनी अनेक प्रस्तुतीकरण के द्वारा नेता विपक्ष ने ही उजागर किया और बिना किसी संकोच और प्रमाण के चुनाव आयोग पर भाजपा के साथ मिलकर वोट चोरी का घृणित आरोप भी लगा दिया और आज भी वही कर रहे हैं। जब चुनाव आयोग ने एस आई आर देश भर में कराने का निर्णय लिया तो यह विपक्षी दल मनगढ़ंत आरोप लगाकर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर ही सवाल खड़े करने लगे। बिहार में एस आई आर के द्वारा लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए गए और राहुल गांधी तथा तेजस्वी ने एस आई आर को मुदा बनाकर वोट अधिकार यात्रा के द्वारा जनता को गुमराह करने की भी कोशिश की गई परन्तु रिकार्ड मतदान और चुनाव नतीजों ने विपक्ष को आईना दिखाने का काम किया। अमित शाह जी ने भी जोर देकर कहा कि जब जब विपक्ष ने सरकार की नीतियों का बिना किसी आधार के विरोध किया तो उन्हें जनता ने सही जवाब दिया। धारा 370 की समाप्ति, तीन तलाक रोक के लिए कानून, जी एस टी का लागू होना, नोटबंदी कुछ उदाहरण हैं जब जनता विपक्ष के विरोध के बाद भी सरकार के साथ खड़ी दिखी और विपक्ष को पराजित किया। माननीय गृह मंत्री ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि आप घुसपैठ के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियान और एस आई आर का इसी तरह विरोध करते रहे तो देश का आम मतदाता पुनः आपको सबक सिखाने में संकोच नहीं करेगा। अभी कल ही कांग्रेस ने जिस तरह वोट चोरी के मुद्दे पर प्रदर्शन किया और रैली में प्रधानमंत्री को अपशब्द और उनकी मौत की कामना की गई, उससे लगता है कि कांग्रेस ठोकर खाकर भी न समझने पर आमादा है।यद्यपि इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने कांग्रेस के इस वोट चोरी के खिलाफ प्रदर्शन एवं रैली से अपने को दूर रखा। यह बहुत चिन्ताजनक एवं निन्दनीय है कि कांग्रेस की इस रैली में मुख्य चुनाव आयुक्त सहित तीनों चुनाव आयुक्तों का नाम लेकर लोगों को उनका नाम याद रखने की बात नेता विपक्ष राहुल गांधी एवं उनकी बहन प्रियंका गांधी ने कही। देश के इतिहास में यह पहला उदाहरण होगा कि नेता विपक्ष के द्वारा और उनके नेतृत्व में संवैधानिक संस्थानों में कार्यरत लोगों को नाम लेकर किसी रैली में धमकी दी गई हो। मेरा मानना है कि यदि विपक्ष के नेताओं द्वारा इस तरह देश के संवैधानिक संस्थानों के प्रति दुष्प्रचार किया जाता है और उनके लिए धमकी भरे लहजे में अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाता है तो उन्हें भी कानून के दायरे में लाने के लिए कोई व्यवस्था की जानी चाहिए। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या विपक्ष का आलोचना एवं सवाल खड़े करने का अधिकार विपक्षी नेताओं को यह अधिकार नहीं देता कि वह सरकार के विरोध के नाम पर देश में खुले तौर पर अराजकता फैलाने का प्रयास करें और लोकतंत्र को ही अपमानित करते हुए राजनैतिक मर्यादा की सभी सीमाएं पार कर जाएं।



