“मिशन शक्ति 5.0: आधुनिक भारत में महिलाओं के अधिकार-केंद्रित विमर्श से कर्तव्य-आधारित सशक्तिकरण तक”
डॉ प्रमोद कुमार

“मिशन शक्ति 5.0: आधुनिक भारत में महिलाओं के अधिकार-केंद्रित विमर्श से कर्तव्य-आधारित सशक्तिकरण तक” उपरोक्त विषय अपने आप में समकालीन भारत की सामाजिक, वैचारिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक यात्रा का दर्पण है। स्वतंत्रता के पश्चात से भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों को लेकर लंबा संघर्ष रहा है और इसे प्राप्ति के लिए बहुत संघर्ष भी किया है। शिक्षा, मताधिकार, संपत्ति, रोजगार, स्वास्थ्य, सुरक्षा, शादी, तलाक और सम्मान जैसे मुद्दों पर जो चेतना विकसित हुई, उसने महिलाओं को कानूनी और संवैधानिक रूप से सशक्त बनाया। किंतु समय के साथ यह भी स्पष्ट हुआ कि केवल अधिकारों की घोषणा और उनके लिए संघर्ष ही पर्याप्त नहीं है। जब अधिकार सामाजिक कर्तव्यों, नैतिक उत्तरदायित्व और संवैधानिक मूल्यों से कट जाते हैं, तब सशक्तिकरण का उद्देश्य विकृत व विफल होने लगता है। मिशन शक्ति 5.0 इसी बिंदु से आगे बढ़ते हुए व ध्यानकेंद्रित करते हुए महिलाओं को केवल अधिकारों की उपभोक्ता नहीं, बल्कि परिवार, समाज एवं राष्ट्र-निर्माण में सहभागी, जागरूक और उत्तरदायी नागरिक के रूप में स्थापित करने का प्रयास है।
आधुनिक भारत का महिला विमर्श लंबे समय तक अधिकार-केंद्रित रहा है। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि सदियों तक महिलाओं को शिक्षा, संपत्ति, निर्णय और सार्वजनिक जीवन से वंचित रखा गया। सामाजिक कुरीतियों, पितृसत्तात्मक मानसिकता और रूढ़ परंपराओं ने महिला अस्तित्व को सीमित कर दिया। ऐसे में अधिकारों की मांग एक ऐतिहासिक आवश्यकता थी। संविधान ने समानता, स्वतंत्रता और गरिमा की गारंटी देकर इस संघर्ष को वैधानिक आधार दिया। परंतु धीरे-धीरे यह देखने को मिला कि अधिकारों की भाषा कई बार सामाजिक संतुलन से कटकर केवल दावों और टकरावों तक सिमट जाती है। अधिकारों को कर्तव्यों से अलग करके देखने की प्रवृत्ति ने समाज में संवाद की जगह संघर्ष और सहयोग की जगह संदेह को जन्म दिया। मिशन शक्ति 5.0 इसी एकांगी दृष्टि को संतुलित करने का प्रयास है।
मिशन शक्ति 5.0 का मूल दर्शन यह मानता है कि अधिकार और कर्तव्य परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। अधिकार व्यक्ति को गरिमा देते हैं, जबकि कर्तव्य समाज व राष्ट्र को दिशा देते हैं। यदि अधिकार बिना कर्तव्य के हों, तो वे अराजकता और आत्मकेंद्रितता को जन्म दे सकते हैं, और यदि कर्तव्य बिना अधिकार के हों, तो वे दमन और अन्याय का रूप ले लेते हैं। मिशन शक्ति 5.0 इसी संतुलन को महिलाओं के सशक्तिकरण की आधारशिला बनाता है। यह मिशन महिलाओं को यह बोध कराता है कि वे केवल संरक्षण या लाभ की आकांक्षी नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की वाहक हैं। इस मिशन का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह सशक्तिकरण को केवल कानूनी या योजनागत दायरे तक सीमित नहीं रखता। अधिकारों के साथ-साथ शिक्षा, कौशल, आर्थिक आत्मनिर्भरता, डिजिटल साक्षरता और मानसिक सशक्तता पर समान बल दिया जाता है। महिला यदि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है, तो अधिकार भी कई बार कागजों तक सीमित रह जाते हैं। इसी तरह यदि वह संवैधानिक मूल्यों, कानून और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक नहीं है, तो अधिकारों का उपयोग भी सही दिशा में नहीं हो पाता। मिशन शक्ति 5.0 महिलाओं को यह समझाने का प्रयास करता है कि सच्चा सशक्तिकरण आत्मविश्वास, आत्मअनुशासन और सामाजिक उत्तरदायित्व से जन्म लेता है।
अधिकार-केंद्रित विमर्श की एक चुनौती यह रही है कि कई बार वह संघर्ष की राजनीति में बदल जाता है। संवाद, सहयोग और सुधार की जगह आरोप-प्रत्यारोप हावी हो जाते हैं। इससे समाज में विभाजन गहराता है और वास्तविक समस्याएँ हाशिए पर चली जाती हैं। मिशन शक्ति 5.0 इस प्रवृत्ति को चुनौती देता है। यह महिलाओं को संघर्षशील ही नहीं, बल्कि समाधान-उन्मुख बनने के लिए प्रेरित करता है। कानून के प्रति विश्वास, संस्थाओं के साथ सहयोग और समाज के विभिन्न वर्गों के साथ संवाद को यह मिशन सशक्तिकरण का आवश्यक अंग मानता है। कर्तव्य-आधारित सशक्तिकरण का अर्थ यह नहीं है कि महिलाओं से अतिरिक्त बोझ उठाने की अपेक्षा की जाए या उनके अधिकारों को सीमित किया जाए। बल्कि इसका आशय यह है कि अधिकारों के साथ सामाजिक जिम्मेदारी का बोध विकसित किया जाए। शिक्षा का अधिकार तभी सार्थक है जब उसका उपयोग विवेक, वैज्ञानिक सोच और मानवीय मूल्यों के विकास के लिए हो। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तभी उपयोगी है जब वह तथ्य, संयम और संवेदनशीलता के साथ प्रयुक्त हो। सुरक्षा का अधिकार तभी प्रभावी है जब नागरिक कानून का सम्मान करें और व्यवस्था के साथ सहयोग करें। मिशन शक्ति 5.0 इन सभी पहलुओं को एक समग्र दृष्टि से जोड़ता है।
आधुनिक भारत में महिला सशक्तिकरण केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित नहीं रह सकता। यह सामाजिक समरसता, राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक मजबूती से जुड़ा हुआ प्रश्न है। जब महिलाएँ अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों को भी समझती हैं, तब वे केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए परिवर्तन का माध्यम बनती हैं। मिशन शक्ति 5.0 महिलाओं को यह बोध कराता है कि उनका सशक्त होना परिवार, समाज और राष्ट्र—तीनों के लिए लाभकारी है। इस मिशन का एक महत्वपूर्ण आयाम डिजिटल और आर्थिक सशक्तिकरण है। डिजिटल युग में सूचना तक पहुँच, तकनीकी दक्षता और ऑनलाइन सुरक्षा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए अनिवार्य हो चुकी है। परंतु इसके साथ डिजिटल नैतिकता, साइबर जिम्मेदारी और सूचनाओं के विवेकपूर्ण उपयोग का कर्तव्य भी जुड़ा है। इसी प्रकार आर्थिक आत्मनिर्भरता महिलाओं को निर्णय की स्वतंत्रता देती है, परंतु इसके साथ ईमानदारी, पारदर्शिता और सामाजिक उत्तरदायित्व भी आवश्यक हैं। मिशन शक्ति 5.0 इन दोनों पहलुओं को संतुलित करता है।
मिशन शक्ति 5.0 यह भी स्पष्ट करता है कि कर्तव्य-बोध दमन नहीं, बल्कि आत्मशक्ति है। जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों को समझता है, तो उसे बाहरी नियंत्रण की आवश्यकता कम पड़ती है। आत्मानुशासन, नैतिक विवेक और सामाजिक संवेदनशीलता से युक्त महिला अपने अधिकारों की रक्षा स्वयं कर सकती है। वह कानून और संस्थाओं पर निर्भर रहने के साथ-साथ अपने आचरण से भी समाज में उदाहरण प्रस्तुत करती है। भारतीय संविधान ने नागरिकों को मौलिक अधिकारों के साथ मौलिक कर्तव्यों की भी संकल्पना दी है। मिशन शक्ति 5.0 इसी संवैधानिक भावना को महिला सशक्तिकरण के केंद्र में रखता है। यह महिलाओं को संविधान की संरक्षित इकाई नहीं, बल्कि उसके मूल्यों की संवाहक मानता है। जब महिलाएँ संवैधानिक मूल्यों—समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय—को अपने जीवन में उतारती हैं, तब सशक्तिकरण केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चरित्र का हिस्सा बन जाता है।
अंततः मिशन शक्ति 5.0 का संदेश स्पष्ट और दूरगामी है। आधुनिक भारत में महिला सशक्तिकरण का भविष्य केवल अधिकारों की सूची बढ़ाने में नहीं, बल्कि अधिकारों और कर्तव्यों के संतुलित समन्वय में निहित है। अधिकार महिलाओं को गरिमा, आत्मविश्वास और अवसर देते हैं, जबकि कर्तव्य उन्हें दिशा, अनुशासन और सामाजिक स्वीकार्यता प्रदान करते हैं। दोनों के बिना सशक्तिकरण अधूरा है। मिशन शक्ति 5.0 इसी अधूरेपन को पूर्णता में बदलने का प्रयास है। यह महिलाओं को न केवल सशक्त बनाता है, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार, संवेदनशील और राष्ट्र-निर्माता नागरिक के रूप में प्रतिष्ठित करता है। एक उत्कृष्ट परिवार और समाज से ही एक अखण्ड और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण होता है। इसी सम्पन्नता और समृद्धता के बीच की कड़ी ही संतुलति महिला जो अपने अधिकारों से वांछित ना हो और कर्तव्यों से विमुख ना हो पाए। यही संतुलन भारत को समतामूलक, सशक्त, अखण्ड, समृद्ध संवेदनशील, अलख व विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा।। जय हिंद जय भारत।।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा



