
अभी शीघ्र ही जीएसटी काउंसिल ने माननीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हुई बैठक में देश में लागू जीएसटी की वर्तमान दरों में व्यापक फेरबदल करते हुए आम लोगों को महत्वपूर्ण राहत प्रदान की। जीएसटी दरों में व्यापक कटौती कर आम लोगों को राहत देने का संकेत माननीय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए गए अपने संबोधन में पहले ही दे दिया था जिसे जीएसटी काउंसिल ने 3 सितम्बर की अपनी बैठक में मूर्त रूप देने का काम किया। जीएसटी की दरों में व्यापक कटौती देश में नवरात्रि के पहले दिन 22 सितम्बर से लागू भी हो गई हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 21 सितम्बर को अपने राष्ट्रीय संबोधन में देश के लोगों से आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए स्वदेशी सामान के उपयोग का आह्वान सभी से किया। इसके साथ ही प्रधानमन्त्री ने जीएसटी दरों में व्यापक कटौती के लिए देशवासियों को बधाई दी और इसे बचत उत्सव के रूप में मनाने की अपील की। देश में जीएसटी दरों में व्यापक कटौती से आम लोगों और व्यापारियों तक में एक नया उत्साह हर जगह दिखाई पड़़ रहा है। इस सकारात्मक और उत्साह के माहौल में भी देश के विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा अपनी परंपरा और आदत के अनुरूप तरह तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं और दुष्प्रचार किया जा रहा है। विपक्षी नेताओं का यह रवैया कोई नया नहीं है और अतीत के अनुभवों से यह आसानी से समझा जा सकता है कि इन नेताओं के पास मोदी और भाजपा विरोध के अलावा कोई दूसरा ऐजेंडा नहीं है। इन विपक्षी दल के नेताओं ने मोदी सरकार की हर नीति और योजना का हमेशा दुष्प्रचार की सीमा तक विरोध किया है चाहे वह देश की एकता और अखण्डता को मजबूत करने वाला धारा 370 की समाप्ति का विषय हो या राष्ट्र की पहचान और अधिसंख्य जनता की भावनाओं से जुड़ा श्री राम जन्मभूमि मन्दिर का विषय हो। नोटबंदी, तीन तलाक की समाप्ति और जीएसटी भी ऐसे ही विषय रहे हैं जिनके विरुद्ध विपक्ष ने दुष्प्रचार और देश की जनता को गुमराह करने की सभी सीमाएं पार कर दीं। जीएसटी को तो वर्तमान नेता विपक्ष राहुल गांधी शुरू से ही गब्बर सिंह टैक्स कहते रहे हैं और जीएसटी को विपक्षी नेताओं ने जन विरोधी, व्यापार एवं कारोबार विरोधी, विकास विरोधी और न जाने क्या क्या कहा गया। आज भी विपक्ष अपने उसी रवैये पर कायम है और जनहित में किए गए इस महत्वपूर्ण दूसरी पीढ़ी के कर सुधार का भी स्वागत नहीं कर पा रहा है।
जीएसटी को मोदी सरकार ने देश में संविधान संशोधन करके 1जुलाई 2017 से लागू किया गया। जीएसटी लागू करने का प्रमुख उद्देश्य देश में वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले अनेक केन्द्रीय एवं राज्य करों को समाप्त कर उनके स्थान पर एक कर लागू करना था जिसकी दरें पूरे देश के लिए एक समान हों। ज्ञातव्य है कि जीएसटी के लागू होने के पहले देश में विभिन्न राज्यों में वस्तुओं की बिक्री पर लगने वाले वैट या अन्य अप्रत्यक्ष करों की दरें भिन्न भिन्न थीं। जीएसटी के पहले देश में उपभोक्ताओं पर अप्रत्यक्ष करों का भार बहुत अधिक था और लोगों को अनेक स्तरों पर कर लगने के कारण करों पर भी कर का भुगतान करना पड़ता था। इसे अर्थशास्त्र में कास्टकेडिंग इफेक्ट कहा जाता है जो देश में ऊंची कीमतों और मंहगाई का एक महत्वपूर्ण कारण था। एक देश, एक कर की धारणा को साकार करते हुए जीएसटी ने इस समस्या को पूर्णतः समाप्त कर आम लोगों को राहत प्रदान की। पूरी तरह से डिजिटल प्रणाली पर आधारित होने के कारण जीएसटी लागू होने से देश में कर चोरी रोकने और कर आधार को व्यापक बनाने के लिए अधिक से अधिक व्यापारियों का पंजीकरण कराने में महत्वपूर्ण सफलता मिली। इससे सरकार की राजस्व प्राप्तियों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई। जीएसटी लागू होने के वर्ष 2017-18 में देश में जीएसटी का संग्रहण 7.19 लाख करोड़ रुपये था जो 2024-25 में बढ़कर 22.08 करोड़ रुपये से अधिक हो गया। जीएसटी संग्रह में हुई यह तीन गुना से अधिक की वृद्धि सरकार की सफलता और दूरदृष्टि की परिचायक है जो विपक्ष के लाख नकारात्मक रूख एवं दुष्प्रचार के बाद भी दृढ़ संकल्पशक्ति के साथ आगे बढ़ती रही। यह सरकार और स्वर्गीय अरुण जेटली जी, तत्कालीन वित्त मंत्री भारत सरकार, की ही दूरदृष्टि थी कि उन्होंने काफी सतर्कता बरतते हुए यह प्रयास किया कि जीएसटी लागू होने से सरकार की राजस्व प्राप्तियों पर कोई बड़ा प्रतिकूल प्रभाव न पड़े और राज्य सरकारों सहित देश को वित्तीय मुसीबत का सामना न करना पड़े। राज्य सरकारें जीएसटी लागू होने के विषय में इसी कारण भयभीत थीं और इसका विरोध करती थीं क्योंकि उन्हें डर था कि इस नई व्यवस्था से उनकी राजस्व प्राप्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सरकार ने सभी राज्यों को यह आश्वासन दिया कि यदि उनकी राजस्व प्राप्तियों में जीएसटी लागू होने से कमी आती है तो अगले पांच वर्षों तक केन्द्र सरकार उसकी क्षतिपूर्ति करेगी। इन्हीं परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार ने जीएसटी काउंसिल के सहयोग से सर्वसहमति बनाकर देश में जीएसटी की चार दरें लागू की। यह दरें 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत थीं। इन जीएसटी दरों का विपक्ष ने पुरजोर विरोध लगातार किया जबकि उनकी राज्य सरकारों के वित्त मंत्री भी जीएसटी काउंसिल के सदस्य के तौर पर इन जीएसटी दरों के अन्तिम निर्णय में शामिल थे। यह सत्य है कि जीएसटी की लागू की गई दरों में अनेक मध्यम वर्ग के दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर कर की दर 18 प्रतिशत थी। इसी प्रकार उच्च मध्यम आय वर्ग के द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली अनेक वस्तुओं जैसे सभी प्रकार की कारें एवं मोटर साइकिल, टेलीविजन, एयरकंडिशनर, रेफ्रिजरेटर और वाशिंग मशीन जिन्हें कंज्यूमर ड्यूरेबल कहा जाता है, उन पर जीएसटी दर 28 प्रतिशत थी। स्वाभाविक है कि जनता को जीएसटी लागू होने के बाद कर भार में अपेक्षा के अनुरूप राहत न मिल सकी जिसे विपक्ष ने एक बड़ा मुदा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विपक्ष यह समझने को तैयार ही नहीं था कि जीएसटी की वर्तमान दरें और व्यवस्था एहतियात बरतते हुए लागू की गई हैं और भविष्य में राजस्व की प्रवृत्ति और स्थिरता देखकर इसमें और सुधार किए जाएंगे।
जीएसटी संग्रह में हो रही निरन्तर वृद्धि और अर्थव्यवस्था के मजबूत संकेतांकों को देखते हुए भारत सरकार ने जीएसटी दरों में व्यापक फेरबदल करते हुए आम लोगों को राहत देने का बहु प्रतीक्षित फैसला लिया। जीएसटी काउंसिल ने 3 सितम्बर की बैठक में जीएसटी की वर्तमान व्यवस्था में महत्वपूर्ण फेरबदल किए गए। जीएसटी काउंसिल ने 12 और 28 प्रतिशत की दरों को समाप्त करने की घोषणा की। इस तरह मुख्य प्रभावी दरें 05 और 18 प्रतिशत रह गई।सरकार ने न केवल 12 प्रतिशत के दायरे में आने वाली सभी वस्तुओं को 05 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में डाल दिया वरन समाज के मध्य आय वर्ग के द्वारा उपयोग की जाने वाली अनेक वस्तुओं जैसे टूथपेस्ट, हेयर आयल, साबुन,शैम्पू, मक्खन, घी, नमकीन, पास्ता, बिस्कुट आदि पर जीएसटी की दर 18प्रतिशत से घटाकर 05 प्रतिशत कर दी। सर्जिकल उपकरणों, अधिकांश दवाइयों, डायग्नोस्टिक संसाधनों और जिम, योगा,सैलून जैसी सेवाओं पर भी जीएसटी दर 18 प्रतिशत से घटाकर 05 प्रतिशत कर दी। देश के किसानों के हित में खाद एवं कृषि उपकरणों पर भी जीएसटी की दरें 12-18 प्रतिशत से कम करके 05 प्रतिशत कर दी गई हैं। 33 जीवन रक्षक एवं कैंसररोधी दवाइयों के साथ साथ स्वास्थ्य एवं जीवन बीमा को भी जीएसटी से छूट प्रदान करने का निर्णय लिया गया। अब 18 प्रतिशत के कर दायरे में टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, एयरकंडिशनर जैसे कंज्यूमर ड्यूरेबल के साथ साथ छोटी कारें, 350 सीसी से कम की बाइक, सभी प्रकार की बैटरी और सीमेन्ट जैसी वस्तुओं को डाला गया है जिन पर पहले जीएसटी की दर 28 प्रतिशत थी। जीएसटी काउंसिल ने एक और 40 प्रतिशत कर की दर की भी घोषणा की जिसमें सभी अति विलासिता की वस्तुओं जैसे मंहगी कारें और बाइक, एअरक्राफ्ट, पिस्टल और रिवाल्वर के साथ साथ सिन या मादक वस्तुओं को रखा गया है। इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि जीएसटी में की गई यह व्यापक कटौती जनता की अपेक्षाओं से भी अधिक है और इससे समाज के सभी लोगों को राहत मिलेगी। इससे लोगों के मासिक खर्च में जो कमी आएगी, उस बचत से अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त मांग का सृजन होगा। इससे देश के व्यापार एवं उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर बढ़ने के साथ साथ अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी। वर्तमान में टैरिफ की अनिश्चितताओं एवं दबाव के चलते देश के उद्योग जगत पर आई चुनौतियों का भी सामना करने में जीएसटी दरों में यह सुधार सहायक सिद्ध होंगे। प्रधानमन्त्री ने इसी कारण इन जीएसटी सुधारों को दूसरी पीढ़ी के सुधार की संज्ञा दी जिनसे अर्थव्यवस्था एक नए रूप में आगे बढ़ने में सफल होगी।
विपक्ष ने पहले यह आरोप लगाया कि जीएसटी में यह सुधार अमेरिका द्वारा लगाये गए भारी टैरिफ पर से जनता का दिमाग हटाने और सवालों का जवाब देने से बचने के लिए लाए गए हैं। यह देश की जनता भी देख रही है कि मोदी सरकार अमेरिकी टैरिफ के दबाव का कितनी दृढ़ता के साथ देने के लिए संकल्पबद्ध है और देश के किसानों एवं हितों के साथ किसी भी प्रकार का समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हुए आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ने के कदम उठाना या सभी सम्भावित विकल्पों की तरफ बढ़ना समय की मांग है।इसमें विपक्ष को आखिर क्या आपत्ति है, यह समझना कठिन है। चूंकि विपक्षी नेताओं को जीएसटी में इन व्यापक सुधारों और आम जनता को प्रदत राहत की आलोचना करने का कोई कारण नहीं समझ में आ रहा है तो वह यह सवाल खड़ा करने में लगे हैं कि सरकार ने पहले यह राहत देने के लिए कदम क्यों नहीं उठाए? विपक्षी नेताओं का आरोप है कि एक लम्बे समय तक सरकार विपक्ष की मांग को नजरंदाज कर जनता की जेब पर डाका डालती रही और अब राहत देकर मरहम लगाने का काम कर रही है। ऐसा करके सरकार आठ वर्षों से जीएसटी के द्वारा की गई लूट की जवाबदेही से बच नहीं सकती। कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राज्य सभा में नेता विपक्ष एक ट्वीट करते हुए लिखा कि मोदी सरकार सौ चूहे खाकर हज को चली है। मोदी सरकार ने जीएसटी लगाकर पिछले वर्षों में 55 लाख करोड़ रुपये की लूट जनता से की है और इसका जवाब तो उसे देना ही पड़ेगा। यही सुर कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ साथ दूसरे विपक्षी दल के नेताओं के भी हैं। मेरा मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे जी के साथ साथ विपक्षी नेताओं के सवाल बेहद कमजोर एवं अपरिपक्व हैं।
जहाँ तक विपक्ष का यह सवाल है कि जीएसटी में यह सुधार पहले क्यों नहीं किए गए जबकि विपक्ष इसकी लगातार मांग कर रहा था। पहली बात यह है कि यह सवाल कांग्रेस के नेताओं द्वारा उठाए जा रहे हैं जो 2004 से 2014 तक निरन्तर सत्ता में रहे और वह भी डा मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री के नेतृत्व में जो जीएसटी की अर्थव्यवस्था हेतु उपादेयता से भलीभांति परिचित थे। इसके बावजूद वो जीएसटी देश में लागू करने के लिए सभी राज्यों में सहमति तक नहीं बना सके जबकि यह विचार 2002 से ही परिचर्चा में था। भारत रत्न श्री अटल बिहारी बाजपेई जी के कार्यकाल में ही इस पर विचार के लिए समिति भी गठित की गई थी। 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी जी ने प्रधानमन्त्री बनने के साथ ही इसे गंभीरता से लिया और तत्कालीन वित्त मंत्री स्वर्गीय अरूण जेटली जी की समझ एवं अथक प्रयासों के फलस्वरूप देश में जीएसटी को मात्र तीन वर्षों में ही 1जुलाई 2017 से लागू कर दिया गया। जैसा मेंने प्रारम्भ में कहा कि उस समय सरकार का प्रमुख लक्ष्य इस बहु प्रतीक्षित अप्रत्यक्ष कर सुधार पर सभी को विश्वास में लेते हुए इसे लागू करना था। इसके लिए केन्द्र सरकार ने राज्यों की क्षतिपूर्ति की शर्त को भी स्वीकार किया। यह बिल्कुल उसी तरह था जैसे किसी खिलाड़ी के लिए बड़ी प्रतियोगिता में क्वालिफाई करना न कि तत्काल मेडल जीतने का दावा करना। सरकार को सभी पहलुओं एवं भविष्य की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना था। सरकार चाहते हुए भी उस समय दरों को बहुत कम नहीं रख सकती थी जब तक दो तीन वर्षों तक राजस्व पर जीएसटी के पड़ने वाले प्रभाव को देख न लिया जाए और जीएसटी के द्वारा कर संग्रह लक्ष्य के अनुरूप न हो जाए और स्थिरता न प्राप्त कर ले। सरकार का प्रारम्भिक लक्ष्य जीएसटी के द्वारा 12लाख करोड़ रुपये वार्षिक संग्रह का था जो प्रारम्भिक दो वित्तीय वर्षों में लक्ष्य से कम ही रहा। 2019-20 में पहली बार लक्ष्य के अनुरूप 12.22 लाख करोड़ रुपये कर संग्रह जीएसटी से हुआ। सरकार कुछ और राहत के विषय में विचार करती, उसके पहले ही देश करोना संकट की चपेट में आ गया और सरकार की प्राथमिकताएं ही बदल गई। सरकार को पूरा ध्यान देश के लोगों के जीवन और आजीविका बचाने में उस समय था। हम सब जानते हैं कि करोना संकट दो तीन वर्षों तक रहा और इसने देश की अर्थव्यवस्था और प्रगति पर भीषण नकारात्मक असर डाला जिससे देश की अर्थव्यवस्था को उबारने और पुनः पटरी पर लाने में सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ी। 2022-23 वित्तीय वर्ष से जीएसटी कर संग्रह में उल्लेखनीय वृद्धि होने की शुरुआत हुई। जीएसटी कर संग्रह 2022-23 में 18.07लाख करोड़ रुपये, 2023-24 में 20.18 लाख करोड़ रुपये और 2024-25 में रिकॉर्ड स्तर पर 22.08 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। जीएसटी कर संग्रह पिछले आठ वर्षों में तीन गुने से भी अधिक हो जाना किसी सरकारी लूट का परिणाम नहीं था जैसा दुष्प्रचार खड़गे जी सहित कांग्रेस एवं विपक्ष के अन्य नेताओं द्वारा किया जा रहा है। जीएसटी के संग्रह में यह महत्वपूर्ण वृद्धि अर्थव्यवस्था के आकार के लगभग दुगने होने, अधिक से अधिक फर्मों एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा पंजीयन कराने से कर जवाबदेही बढ़ने और जीएसटी के पूर्णतः डिजिटल होने के कारण कर चोरी पर काफी सीमा तक अंकुश लगने का नतीजा है। इस सकारात्मक दिशा ने सरकार को जीएसटी दरों में कमी लाने तथा इसे अधिक सरल बनाने के लिए अधिकतम दो प्रभावी दरें लागू करने के लिए प्रेरित किया। वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन जी ने जैसा कि एक साक्षात्कार में बताया कि डेढ़ से दो वर्षों की मशक्कत और तैयारी के बाद इन जीएसटी सुधारों पर आखिरी फैसला हो सका। उन्होंने उम्मीद जताई कि आम लोगों एवं व्यावसायिक जगत को लाभ होने के साथ साथ अर्थव्यवस्था में लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त मांग के सृजित होने से देश की जीडीपी पर भी सकारात्मक असर होगा।
विपक्षी नेताओं के द्वारा पिछले आठ वर्षों में जीएसटी द्वारा सरकार पर जो लूट या डकैती का आरोप लगाया जा रहा है वह नितान्त सतही, अज्ञानता का सूचक और सरकार के विरुद्ध निहित राजनीति से प्रेरित दुष्प्रचार की पराकाष्ठा है। सरकार ने 2017 में जो जीएसटी दरें लागू की थीं वह जीएसटी काउंसिल के सभी सदस्यों का सर्वसहमति से लिया गया निर्णय था न कि सरकार या सत्तापक्ष के द्वारा कोई जबरदस्ती थोपा गया निर्णय। दूसरी बात यह है कि उस समय लागू की गई दरें आज की तुलना में ऊंची होने के बाद भी 2017 के पहले की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले कर भार की तुलना में अधिकाश वस्तुओं पर 8 से 10 प्रतिशत तक कम थीं। 2017 के पहले उपभोक्ताओं पर केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और चुंगी, वैट सहित राज्यों के कर मिलाकर वस्तुओं की खरीद पर कर का भार 26 से 28 प्रतिशत तक था। इनमें से अधिकांश वस्तुएं आम जनता के दैनिक उपयोग की वस्तुएं जैसे टूथपेस्ट, हेयर आयल, साबुन, वाशिंग पाउडर, प्रसाधन सामग्री, रेजर ब्लेड और बच्चों के हेल्थ पेय शामिल थे। इसी तरह कटलरी, सूटकेस, ब्रीफकेस, वाटर हीटर, पेंट वार्निश, घड़ी सेनेटरी वेयर के सामान वाशबेसन, सिंक, वाशिंग मशीन, वैक्यूम क्लीनर जैसे मिडिल क्लास के लिए कंज्यूमर ड्यूरेबल आइटमों पर भी 2014 के पहले कर भार 28 प्रतिशत तक था। जीएसटी लागू होने पर उपर वर्णित सभी वस्तुओं पर 18 प्रतिशत की कर दर लगाई गई। मिक्सर एवं ग्राइंडर जैसे अनेक इलैक्ट्रिक उत्पादों पर भी जीएसटी की दर 18 प्रतिशत रखी गई जिन पर पहले 28 प्रतिशत कर लगता था। इसी तरह बहुत ऐसी वस्तुएं जिन पर 2014 के पहले 15 से 20 प्रतिशत तक कर था, उनको 12 प्रतिशत के जीएसटी दायरे में लाकर कुछ राहत प्रदान की गई।इनमें सिलाई मशीन, ऐक्सरे फिल्म, मैडिकल जांच उपकरण, पास्ता, नूडल्ज़, नमकीन जैसे उत्पाद शामिल थे। आटोमोबाइल क्षेत्र के लिए जीएसटी दर 28 प्रतिशत अवश्य थी परन्तु 2017 से पहले भी इन पर केन्द्रीय उत्पाद शुल्क एवं वैट मिलाकर लगभग 40 प्रतिशत कर लगता था।
कुल मिलाकर यह कहना गलत होगा कि जीएसटी लागू करके उस समय सरकार ने कोई राहत नहीं दी। सुधार के पहले के जीएसटी के आठ वर्षों को सरकार का लूटकाल बताना सत्यता से मुंह छिपाना और झूठा दुष्प्रचार ही कहा जा सकता है। इन विपक्षी नेताओं को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जीएसटी द्वारा सरकार के राजस्व में सतत वृद्धि ने करोना काल में सरकार को काफी वित्तीय मजबूती प्रदान की। देश में मंहगाई दर के पिछले दशक में काफी हद तक नियंत्रण में रहने में भी जीएसटी एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। विपक्ष को भी ऐसे विशेष समय में नकारात्मक राजनीति का परित्याग कर देश के साथ खुशी और उत्साह के माहौल में भागीदार बनना चाहिए। कुछ विपक्षी नेता इसे बिहार चुनाव से भी जोड़कर देखते हैं। यह नेता भूल जाते हैं कि जीएसटी सम्पूर्ण देश का विषय है न कि किसी राज्य के लोगों का। वैसे भी मोदी जी किसी देशहित के निर्णय के समय चुनाव एवं वोट की राजनीति नहीं करते हैं। कुछ कांग्रेस के नेता यह कहते भी नहीं थक रहे हैं कि सरकार को अन्ततः राहुल गांधी के सुझाव पर अमल करना ही पड़ा जैसा कई अन्य मौकों पर पहले भी हुआ है। मेरा मानना है कि यदि कोई लोकतांत्रिक सरकार विपक्ष के नेता के प्रति इतना गंभीर है तो यह हर्ष की बात है। हमें यह मानना चाहिए कि कोई भी जिम्मेदार सरकार यह प्रयास जरूर करती है कि वह अपनी और देश की परिस्थिति देखते हुए समय आने पर जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए समुचित निर्णय ले और ऐसा ही जीएसटी में सुधार लाकर मोदी सरकार ने किया है।