‘बंटेंगे तो कटेंगे’ ने रोकी साइकिल की रफ्तार
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में शानदार कामयाबी ने जिन उम्मीदों का पहाड़ सपा के लिए खड़ा किया था, उसे उपचुनाव के नतीजों ने एक झटके में बिखेर सा दिया। ऐसे में दो साल बाद होने वाली 2027 की चुनावी जंग सपा के लिए अब बड़ी चुनौती बन सकती है। सत्तारुढ़ भाजपा की आक्रामक मुहिम के आगे सपा का न ‘पीडीए’ का दांव चला और न ही 90 बनाम 10 का नारा। भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे के असर को रोकने के लिए सपा ने कई नारे उछाले, लेकिन यह कवायद ‘साइकिल’ की रफ्तार नहीं बढ़ा सकी। सपा ने किसी तरह करहल व सीसामऊ जैसे अपने गढ़ वाली सीटों को बरकरार रख कर कुछ प्रतिष्ठा जरूर बचाई, लेकिन बाकी सीटों पर उसे भाजपा के हाथों करारी शिकस्त खानी पड़ी। अखिलेश ने अपने पूरे प्रचार अभियान के केंद्र बिंदु में पीडीए को रखा। पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए के हिसाब से प्रत्याशी उतारे। तीन पिछड़े, चार मुस्लिम व दो मुस्लिम प्रत्याशी दिए लेकिन उसके एक मुस्लिम व एक ओबीसी (यादव) प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज की। फूलपुर में सपा का मुस्लिम प्रत्याशी आने से भाजपा को फायदा
सबसे बड़ा झटका कुंदरकी में
सपा को सबसे बड़ा झटका कुंदरकी सीट पर लगा है। इस मुस्लिम बाहुल्य सीट पर सपा को करारी शिकस्त देकर भाजपा ने सपाइयों को झटका दिया तो राजनीतिक विश्लेषकों को भी चौंका दिया। सपा ने मुस्लिम बाहुल्य सीट मुरादाबाद लोकभा सीट पर जब हिंदू प्रत्याशी रुचि वीरा को जिताकर दिखाया। तो इसे सपा के पीडीए की जीत बताया गया। कुंदरकी सीट पर भी सपा को बढ़त हासिल हुई थी लेकिन उपचुनाव में भाजपा ने यहां तगड़ी जीत दर्ज कर नतीजों में उलटफेर कर दिया।