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जाति मुक्त और दहेज रहित समाज के बिना ख्याली पुलाव व कपोल कल्पना है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान

डॉ प्रमोद कुमार

भारत में स्त्रियों की स्थिति प्राचीन काल से लेकर आज तक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों के आधार पर निरंतर परिवर्तनशील रही है। आधुनिक समय में जब शिक्षा, समानता और सशक्तिकरण की बात होती है, तब सरकार द्वारा संचालित ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (BBBP) अभियान एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में सामने आता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं को जन्म से लेकर शिक्षा और सशक्तिकरण तक सुरक्षा प्रदान करना है।
हालांकि, इस अभियान की सफलता जातिवादी सोच और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों से गहराई से जुड़ी हुई है। जाति मुक्त और दहेज रहित समाज के बिना ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान की सफलता कपोल कल्पना है। जातिवाद और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयाँ महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण में बड़ी बाधाएँ हैं। जातिवादी समाज में महिलाओं को अक्सर उनकी जाति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। एक जाति मुक्त और दहेज रहित समाज के अभाव में इस अभियान के वास्तविक उद्देश्यों की प्राप्ति मुश्किल हो जाती है। इस लेख में हम इस अभियान का विश्लेषण करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि सामाजिक ढांचे में बिना मूलभूत बदलाव किए यह केवल एक ख्याली पुलाव व कपोल कल्पना बनकर क्यों रह सकता है।
1. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान: एक अवलोकन
भारत सरकार ने 22 जनवरी 2015 को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना शुरू की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य देश में घटते लिंगानुपात को सुधारना और लड़कियों को समान अवसर प्रदान करना था। इस योजना के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं—
लिंगानुपात में सुधार: कन्या भ्रूण हत्या रोककर जन्म के समय लिंगानुपात को संतुलित करना।
शिक्षा को बढ़ावा देना: लड़कियों को स्कूल भेजने और उच्च शिक्षा तक पहुंच बनाने को सुनिश्चित करना।
सशक्तिकरण: महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा करना।
इस योजना के अंतर्गत कई जागरूकता कार्यक्रम, वित्तीय सहायता योजनाएँ और स्कूल-स्तरीय अभियानों को लागू किया गया। लेकिन यह योजना केवल जागरूकता तक सीमित रह गई है क्योंकि इसका प्रभाव जमीनी स्तर पर उतना कारगर नहीं हो सका है।
2. जातिवाद और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ: एक अंतर्विरोध
2.1 भारत में जाति प्रथा का प्रभाव; भारत में जातिवाद न केवल सामाजिक बल्कि आर्थिक और शैक्षिक अवसरों को भी नियंत्रित करता है। जाति व्यवस्था महिलाओं की स्थिति को विशेष रूप से प्रभावित करती है, क्योंकि यह विवाह, शिक्षा और कार्यक्षेत्र में उनके लिए सीमाएँ निर्धारित करती है।
शिक्षा पर प्रभाव: निम्न जातियों की लड़कियों को उच्च शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है। सरकारी नीतियाँ होने के बावजूद, सामाजिक पूर्वाग्रह लड़कियों को स्कूल छोड़ने पर मजबूर कर देते हैं। बालिका शिक्षा को जातिगत सोच के कारण गैर-जरूरी माना जाता हैI
विवाह और सामाजिक दबाव: जातिगत विवाह प्रणाली लड़कियों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाती है। अंतरजातीय विवाह को सामाजिक बहिष्कार और हिंसा के कारण असंभव बना दिया जाता है। लड़कियों को अक्सर कम उम्र में विवाह करने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि वे परिवार की “इज्जत” पर असर न डालें।
2.2 जातिवाद और BBBP की सीमाएँ
जातिवादी मानसिकता के कारण बेटियों की शिक्षा और सशक्तिकरण बाधित होता है। यदि कोई लड़की उच्च शिक्षा प्राप्त कर भी लेती है, तो भी जातिगत भेदभाव के कारण उसे समान अवसर नहीं मिलते। जाति मुक्त समाज के बिना BBBP अभियान केवल एक आदर्शवादी कल्पना बनकर रह जाता है।
3. दहेज प्रथा: बेटियों की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा
3.1 दहेज का सामाजिक प्रभाव
दहेज प्रथा भारत में एक गहरी सामाजिक बुराई है, जो बेटियों को बोझ बनाने का मुख्य कारण है। समाज में एक धारणा बनी हुई है कि बेटियों की शादी एक आर्थिक बोझ है, क्योंकि उनके विवाह में बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है।
लड़की को शिक्षा न देने का कारण: माता-पिता सोचते हैं कि यदि बेटी को पढ़ाया भी जाए, तो विवाह में दहेज देना ही पड़ेगा।बेटियों की शिक्षा और करियर को प्राथमिकता देने के बजाय, विवाह को ही उनकी “गंतव्य” मान लिया जाता है।
कन्या भ्रूण हत्या: कई परिवार कन्या भ्रूण हत्या को बेहतर विकल्प मानते हैं ताकि उन्हें दहेज की समस्या से जूझना न पड़े। यह BBBP अभियान के मूल उद्देश्य के विरुद्ध जाता है।
वैवाहिक शोषण और हिंसा: दहेज के कारण कई विवाहित महिलाओं को घरेलू हिंसा और शोषण सहना पड़ता है। कई महिलाएँ दहेज हत्या की शिकार हो जाती हैं।
3.2 दहेज प्रथा और BBBP की सीमाएँ
जब तक दहेज प्रथा समाज में बनी रहेगी, BBBP अभियान का प्रभाव सीमित रहेगा। लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण तब तक अधूरी रहेगी, जब तक विवाह को एक आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता रहेगा।
4. जाति मुक्त और दहेज रहित समाज: BBBP की सफलता की अनिवार्य शर्त
4.1 सामाजिक सुधार आवश्यक
BBBP अभियान को सफल बनाने के लिए केवल सरकारी योजनाएँ पर्याप्त नहीं हैं। समाज में गहरे बैठे जातिवादी और पितृसत्तात्मक विचारों को बदलना होगा। इसके लिए—
शिक्षा प्रणाली में सुधार: स्कूलों और कॉलेजों में लड़कियों की शिक्षा को अनिवार्य और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पाठ्यक्रम में जातिवाद और दहेज विरोधी शिक्षा को शामिल करना चाहिए।
अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देना: समाज में समरसता लाने के लिए जाति मुक्त विवाहों को प्रोत्साहित किया जाए। अंतरजातीय विवाह करने वालों को सरकारी सहायता दी जाए।
दहेज विरोधी कानूनों को कड़ाई से लागू करना: दहेज लेने और देने वालों पर कठोर दंड का प्रावधान हो। दहेज प्रथा को सामाजिक अपराध घोषित किया जाए और इसके विरुद्ध व्यापक जनजागरण अभियान चलाए जाएँ।
4.2 महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता

लड़कियों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाना: उन्हें नौकरी और व्यवसाय में आगे बढ़ाने के लिए योजनाएँ बनाई जाएँ। स्वयं सहायता समूहों और महिला उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाए।
समाज में जागरूकता फैलाना: पंचायत स्तर पर महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए।
लड़कियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए।

जाति मुक्त और दहेज रहित समाज के बिना ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान एक अधूरा प्रयास ही रहेगा। दहेज प्रथा भी महिलाओं के प्रति हिंसा और शोषण का एक प्रमुख कारण है। दहेज के कारण कई महिलाओं को घरेलू हिंसा, शारीरिक और मानसिक शोषण सहना पड़ता है।
इन सामाजिक बुराइयों के बिना ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए, हमें जातिवाद और दहेज प्रथा के खिलाफ सामाजिक आंदोलन चलाने होंगे। हमें महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करनी होगी। जब तक सामाजिक मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक इस योजना का वास्तविक लाभ बेटियों तक नहीं पहुँच पाएगा। समाज में समावेशी सोच, आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की स्थापना किए बिना BBBP अभियान का सपना मात्र एक ख्याली पुलाव ही रहेगा। अतः आवश्यक है कि सरकार, समाज और परिवार मिलकर इस दिशा में ठोस प्रयास करें, ताकि बेटियाँ वास्तव में सुरक्षित, शिक्षित और सशक्त बन सकें।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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