वीर शिवाजी महाराज: स्वराज्य के अग्रदूत व जनक, धार्मिक सहिष्णुता एवं विविधता में एकता के सूत्रधार
डॉ प्रमोद कुमार
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छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के महानतम योद्धाओं और नायकों में से एक थे। वे केवल एक पराक्रमी शासक ही नहीं, बल्कि भारतीय स्वराज्य के अग्रदूत, कुशल रणनीतिकार, धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक और विविधता में एकता के आदर्श उदाहरण थे। 17वीं शताब्दी में जब भारत पर मुगलों, आदिलशाहियों और अन्य विदेशी शक्तियों का नियंत्रण था, तब शिवाजी महाराज ने स्वतंत्र हिंदवी स्वराज्य की नींव रखी। उन्होंने अपने शासन में सभी धर्मों को समान स्थान दिया और समाज में समरसता स्थापित करने का प्रयास किया। शिवाजी महाराज का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उनकी नीति, कूटनीति और आदर्शों ने उन्हें एक युग-प्रवर्तक शासक बना दिया। इस लेख में हम शिवाजी महाराज के स्वराज्य निर्माण, उनकी धार्मिक सहिष्णुता और विविधता में एकता स्थापित करने के प्रयासों का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
1. प्रारंभिक जीवन, शिक्षा और संस्कार
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को पुणे के शिवनेरी किले में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले बीजापुर सल्तनत के एक प्रतिष्ठित सेनापति थे और माता जीजाबाई धर्मपरायण तथा नीति-कुशल, एक साहसी और प्रभावशाली महिला थीं। महिला थीं। बचपन से ही शिवाजी को रामायण, महाभारत और अन्य धार्मिक ग्रंथों की शिक्षाएँ मिलीं, जिससे उनके चरित्र में वीरता, न्यायप्रियता और राष्ट्रभक्ति के गुण विकसित हुए। शिवाजी महाराज को माता जीजाबाई और गुरु दादाजी कोंडदेव ने सैन्य और प्रशासनिक शिक्षा प्रदान की। शिवाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें प्रतापगढ़ की लड़ाई, कोल्हापुर की लड़ाई, पावनखिंड की लड़ाई, और सूरत की लूट शामिल हैं। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध और नौसेना रणनीतियों में महारत हासिल की और अपनी सेना में आग्नेयास्त्रों, तोपखाने और घुड़सवार सेना को शामिल किया। शिवाजी महाराज राजनीति, सैन्य रणनीति, कूटनीति और धर्मशास्त्र का गहन अध्ययन किया। युवा अवस्था में ही वे अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के लिए संकल्पबद्ध हो गए।
2. स्वराज्य की स्थापना: स्वतंत्रता का संकल्प
हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा
शिवाजी महाराज ने “हिंदवी स्वराज्य” की संकल्पना प्रस्तुत की, जो एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राज्य था। यह एक ऐसा राज्य था जो विदेशी शासकों के अधीन न होकर भारतीयों द्वारा, भारतीयों के लिए संचालित होता।
मुगलों और आदिलशाही से संघर्ष
शिवाजी महाराज ने 1645 में पहली बार बीजापुर सल्तनत के नियंत्रण वाले तोरणा किले पर विजय प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे अन्य किलों को जीतकर एक मजबूत मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी गुरिल्ला युद्ध नीति (गणिमी कावा), जिससे वे विशाल मुगल सेना को भी मात देने में सक्षम थे।
अफजल खान वध और कोंकण विजय
1659 में बीजापुर के सेनापति अफजल खान को शिवाजी महाराज ने कूटनीति और वीरता से पराजित किया। इसके बाद उन्होंने कोंकण क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की और एक सशक्त मराठा शक्ति के रूप में उभरे।
पुरंदर की संधि और आगरा कांड
1665 में, मुगल सम्राट औरंगजेब के सेनापति जय सिंह के साथ पुरंदर की संधि करनी पड़ी, जिसके कारण शिवाजी को कुछ किले मुगलों को सौंपने पड़े। 1666 में उन्हें आगरा बुलाया गया, जहां औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया। लेकिन अपनी बुद्धिमत्ता से शिवाजी वहां से सुरक्षित भाग निकले और पुनः अपनी सेना संगठित कर स्वराज्य की पुनर्स्थापना की।
छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक
1674 में रायगढ़ किले में भव्य समारोह के साथ शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया और वे “छत्रपति” बने। इस उपाधि ने मराठा साम्राज्य को एक आधिकारिक और शक्तिशाली पहचान दी।
3. धार्मिक सहिष्णुता और प्रशासनिक कुशलता
धर्मनिरपेक्ष शासन व्यवस्था
शिवाजी महाराज ने कभी भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया। उनके प्रशासन में हिंदू और मुस्लिम दोनों को समान अवसर प्राप्त थे। उन्होंने कई मुस्लिम अधिकारियों और सैनिकों को उच्च पदों पर नियुक्त किया, जैसे कि सिद्दी इब्राहिम, दौलत खान, और मदारी मेहतर।
मंदिरों और मस्जिदों की सुरक्षा
शिवाजी महाराज ने धार्मिक स्थलों की रक्षा की। जब उन्होंने काशी, प्रयाग, और पंढरपुर जैसे तीर्थ स्थलों को मुगलों से मुक्त किया, तब वहां के हिंदू मंदिरों की पुनर्स्थापना की। वहीं, उन्होंने मस्जिदों और दरगाहों को भी किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचने दी।
गो-हत्या पर प्रतिबंध
शिवाजी महाराज ने अपने राज्य में गो-हत्या पर प्रतिबंध लगाया, जिससे हिंदू जनता में उनकी लोकप्रियता बढ़ी।
4. विविधता में एकता के प्रतीक
मराठा सेना में विविधता
शिवाजी की सेना में हिंदू-मुस्लिम दोनों सैनिकों को समान रूप से अवसर मिले। उनकी नौसेना का नेतृत्व सिद्दी संबल जैसे मुस्लिम अधिकारियों ने किया।
सभी जातियों को समान अवसर
शिवाजी महाराज ने समाज के सभी वर्गों को अपने शासन में समान अधिकार दिए। उन्होंने शूद्र और अन्य पिछड़ी जातियों को भी प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया।
सामाजिक न्याय और समानता
शिवाजी महाराज ने जाति-पाति के भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया और सभी वर्गों को समान अवसर देने की नीति अपनाई।
5. शिवाजी की विरासत
मराठा साम्राज्य की स्थिरता
शिवाजी महाराज की मृत्यु 1680 में हुई, लेकिन उनके द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य अगले 150 वर्षों तक भारत की प्रमुख शक्ति बना रहा।
स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव
शिवाजी की नीतियाँ और स्वराज्य की अवधारणा 19वीं और 20वीं शताब्दी के स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणास्त्रोत बनीं। बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस और वीर सावरकर जैसे नेता शिवाजी से प्रेरणा लेते रहे।
आधुनिक भारत में प्रासंगिकता
आज भी शिवाजी महाराज की प्रशासनिक कुशलता, सैन्य रणनीति और धर्मनिरपेक्षता भारतीय राजनीति और प्रशासन के लिए एक मार्गदर्शक बनी हुई है।
छत्रपति शिवाजी महाराज न केवल एक वीर योद्धा थे, शिवाजी महाराज की प्रमुख उपलब्धियों में स्वराज्य की स्थापना, मराठा साम्राज्य का विस्तार, नौसेना शक्ति का निर्माण, और प्रशासनिक सुधार शामिल हैं। उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता और विविधता को बढ़ावा दिया और अपने राज्य के अंदर कई समुदायों के बीच सद्भाव को बनाए रखा। बल्कि वे भारतीय स्वराज्य के अग्रदूत और विविधता में एकता के प्रतीक भी थे। उन्होंने जाति, धर्म और भाषा से ऊपर उठकर एक सशक्त राष्ट्र की परिकल्पना की। उनके द्वारा स्थापित स्वराज्य न केवल सैन्य शक्ति का उदाहरण था, बल्कि एक न्यायपूर्ण, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक शासन का प्रतीक भी था। आज के भारत में शिवाजी महाराज के विचारों और नीतियों को अपनाना आवश्यक है ताकि एक सशक्त, एकजुट और सहिष्णु समाज का निर्माण हो सके। उनका जीवन हमें सिखाता है कि स्वराज्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी है।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा