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मातृभाषा: भाषा, संस्कार और पहचान का आधार

डॉ प्रमोद कुमार

मातृभाषा वह भाषा होती है जो किसी व्यक्ति को उसके माता-पिता या परिवार के सदस्यों से सीखने को मिलती है। यह वह भाषा होती है जिसमें व्यक्ति को पहली बार बोलना और समझना सिखाया जाता है। मातृभाषा व्यक्ति की संस्कृति, परंपरा और पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और समाज की आत्मा होती है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसकी मातृभाषा का विशेष स्थान होता है, क्योंकि यह न केवल उसकी पहचान को परिभाषित करती है, बल्कि उसके विचारों, मूल्यों और भावनाओं को भी व्यक्त करने का सबसे प्रभावी साधन होती है। मातृभाषा वह भाषा होती है, जिसे बच्चा जन्म के बाद सबसे पहले सुनता है और अपनी मां से सीखता है। मां अपने बच्चे से जिस भाषा में बात करती है, वही भाषा उसके लिए मातृभाषा बन जाती है। यह भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं होती, बल्कि यह भावनाओं, संवेदनाओं और संस्कारों की वाहक होती है। बच्चे को भाषा और संस्कार देने वाली उसकी प्रथम गुरु मां होती है। इसलिए मातृभाषा का हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है।
मातृभाषा की परिभाषा और महत्व
मातृभाषा वह भाषा होती है जिसे बच्चा सबसे पहले अपने परिवार और विशेष रूप से अपनी मां से सीखता है। मां की भाषा ही बच्चे की मातृभाषा होती है, और यही भाषा बच्चे को अपनी संस्कृति, परंपरा और पहचान के बारे में सिखाती है। बच्चे को भाषा और संस्कार देने वाली प्रथम गुरु मां ही होती है” यह बिल्कुल सही है। मां की भूमिका बच्चे के जीवन में एक गुरु की तरह होती है, और वह बच्चे को जीवन के मूल्यों और संस्कारों की शिक्षा देती है। यह भाषा उसके मानसिक और बौद्धिक विकास की नींव रखती है। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति के जीवन में निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण होती है:
1. संस्कृति और परंपरा का संरक्षण: मातृभाषा व्यक्ति की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। यह व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़ती है और संस्कृति के मूल्यों को सिखाती है।
2. भाषा और साहित्य का विकास: मातृभाषा व्यक्ति को भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह व्यक्ति को अपनी भाषा में सोचने, लिखने और बोलने की क्षमता प्रदान करती है।
3. व्यक्तिगत पहचान और आत्मसम्मान: मातृभाषा व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान और आत्मसम्मान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। यह व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़ती है और आत्मसम्मान को बढ़ावा देती है।
4. शिक्षा और ज्ञान का साधन: मातृभाषा व्यक्ति को शिक्षा और ज्ञान का साधन प्रदान करती है। व्यक्ति को अपनी भाषा में सीखने, समझने और व्यक्त करने की क्षमता प्रदान करती है।
संप्रेषण का प्रथम माध्यम: बच्चा सबसे पहले जिस भाषा में अपनी मां से बात करता है, वही उसकी अभिव्यक्ति की पहली भाषा बन जाती है।
संस्कारों का वाहक: मातृभाषा के माध्यम से ही बच्चा अपने पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों को सीखता है।
मानसिक विकास: शोध बताते हैं कि मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे तेजी से सीखते हैं और उनकी तार्किक क्षमता अधिक विकसित होती है।
संस्कृति और परंपराओं की पहचान: प्रत्येक भाषा एक विशेष संस्कृति को दर्शाती है। मातृभाषा के माध्यम से ही व्यक्ति अपनी संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों से जुड़ा रहता है।
भावनाओं की अभिव्यक्ति: मातृभाषा के माध्यम से व्यक्ति अपनी भावनाओं को सबसे सहज और प्रभावी ढंग से व्यक्त कर सकता है।
मां और मातृभाषा का अटूट संबंध
मां और उसकी बोली का बच्चे के साथ एक विशेष संबंध होता है। बच्चा सबसे पहले अपनी मां की आवाज सुनता है, उसके शब्दों को समझने की कोशिश करता है और धीरे-धीरे उन्हीं शब्दों का प्रयोग करने लगता है। इस प्रक्रिया में मां अपने बच्चे को केवल भाषा ही नहीं सिखाती, बल्कि जीवन के मूलभूत संस्कार भी प्रदान करती है।
1. मां द्वारा भाषा सीखने की प्रक्रिया
जब बच्चा जन्म लेता है, तो वह अपनी मां की आवाज को पहचानने लगता है। वह मां के बोले गए शब्दों, ध्वनियों और लहजे को सुनता है और धीरे-धीरे उन्हें दोहराने की कोशिश करता है।
मां अपने बच्चे से स्नेहपूर्वक संवाद करती है, जिससे बच्चा मातृभाषा को स्वाभाविक रूप से सीखने लगता है। मां के गीत, लोरियां और कहानियां बच्चे के भाषा ज्ञान को समृद्ध करती हैं।
2. मां से प्राप्त संस्कार और भाषा
भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं होती, बल्कि यह संस्कारों का भी माध्यम होती है। मां अपने बच्चे को जो भी सिखाती है, वह उसकी पूरी जीवनशैली को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए:
मां जब बच्चे को “धन्यवाद” या “क्षमा करें” जैसे शब्द सिखाती है, तो वह उसके नैतिक मूल्यों को विकसित करती है। धार्मिक, पारंपरिक और नैतिक शिक्षाएं भी मां अपनी भाषा के माध्यम से ही देती है। मां के द्वारा सुनाई गई कहानियां बच्चे के चरित्र निर्माण में सहायक होती हैं।
मातृभाषा और शिक्षा
मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक शोध बताते हैं कि बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होने से उसका संज्ञानात्मक विकास अधिक प्रभावी होता है। जब बच्चा अपनी मातृभाषा में पढ़ता और सीखता है, तो वह अधिक आत्मविश्वास महसूस करता है और ज्ञान को आसानी से ग्रहण कर पाता है।
1. मातृभाषा में शिक्षा के लाभ
बच्चे की सीखने की क्षमता बढ़ती है।
तार्किक और रचनात्मक सोच विकसित होती है।
पढ़ाई के प्रति रुचि और आत्मविश्वास बढ़ता है।
भाषागत कौशल विकसित होते हैं, जिससे आगे चलकर अन्य भाषाएं सीखने में आसानी होती है।
2. मातृभाषा बनाम विदेशी भाषा में शिक्षा
आजकल कई माता-पिता अपने बच्चों को विदेशी भाषाओं में शिक्षा दिलाने की होड़ में लगे हुए हैं। हालांकि, यह जरूरी नहीं कि विदेशी भाषा में शिक्षा हमेशा फायदेमंद हो। जब कोई बच्चा अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करता है, तो वह विषयों को बेहतर समझता है और रचनात्मक रूप से सोच पाता है। इसके विपरीत, यदि बच्चा केवल विदेशी भाषा में पढ़ता है, तो वह भाषा को समझने में अधिक समय लगाता है और इससे उसकी तार्किक क्षमता कमजोर हो सकती है।
मातृभाषा और वैश्वीकरण
आज के वैश्वीकृत युग में कई भाषाएं विलुप्त हो रही हैं क्योंकि लोग विदेशी भाषाओं को अधिक महत्व देने लगे हैं। अंग्रेजी, फ्रेंच, और स्पेनिश जैसी भाषाओं के बढ़ते प्रभाव के कारण कई स्थानीय भाषाएं खतरे में हैं। हालांकि, मातृभाषा को संरक्षित रखना आवश्यक है क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मातृभाषा संरक्षण के उपाय
घर में बच्चों से मातृभाषा में बातचीत करना।
मातृभाषा में किताबें, कहानियां और कविताएं पढ़ना।
स्कूलों में मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देना।
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मातृभाषा में सामग्री साझा करना।
मातृभाषा दिवस और वर्तमान समय में महत्व
यूनेस्को ने 21 फरवरी को ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ घोषित किया है। इसका उद्देश्य विभिन्न भाषाओं के महत्व को उजागर करना और भाषाई विविधता को संरक्षित करना है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोग अपनी मातृभाषा को महत्व दें और इसके संरक्षण के लिए प्रयास करें। वर्तमान समय में, मातृभाषा का महत्व के कारण हैं:
1. सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: मातृभाषा व्यक्ति की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। यह व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़ती है और सांस्कृतिक मूल्यों को सिखाती है।
2. भाषाई विविधता का सम्मान: मातृभाषा व्यक्ति की भाषाई विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। यह व्यक्ति को अपनी भाषा में सोचने, लिखने और बोलने की क्षमता प्रदान करती है।
3. व्यक्तिगत पहचान और आत्मसम्मान का निर्माण: मातृभाषा व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान और आत्मसम्मान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। यह व्यक्ति को अपनी जड़ों से जोड़ती है और आत्मसम्मान को बढ़ावा देती है।

मां और मातृभाषा का संबंध अटूट होता है क्योंकि मां ही वह पहली शिक्षक होती है, जो अपने बच्चे को भाषा और संस्कार सिखाती है। इसलिए, मातृभाषा को सहेजना और इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाना हम सभी की जिम्मेदारी है। मातृभाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं होती, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपराओं और पहचान का प्रतीक होती है। मां की भूमिका बच्चे के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है, और वह बच्चे को भाषा, संस्कार और मूल्यों की शिक्षा देती है। मां की भाषा और संस्कृति बच्चे के व्यक्तित्व और पहचान को आकार देती है, और यही कारण है कि मातृभाषा को बच्चे की पहली और सबसे महत्वपूर्ण भाषा माना जाता है। अगर हम अपनी मातृभाषा को महत्व नहीं देंगे, तो हमारी संस्कृति और परंपराएं भी धीरे-धीरे लुप्त हो जाएंगी। इसलिए, मातृभाषा को बढ़ावा देना और इसे संरक्षित रखना न केवल एक सामाजिक दायित्व है, बल्कि यह हमारी पहचान और आत्मसम्मान से भी जुड़ा हुआ विषय है।


डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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