उत्तर प्रदेश

समृद्ध लोक संगीत

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारत की लोककला और लोक संगीत बहुत समृद्ध है। इसमें विविधता है। भाषा शैली वादन नृत्य के रूप अलग है, लेकिन भाव भूमि में समानता है। इसमें भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की झलक है। विविधता में एकता है। ऐसी लोक कलाओं और लोक संगीत को संरक्षण और संवर्धन देने के प्रयास भी चल रहे है। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रत्येक जनपद को अपने महोत्सव आयोजित करने के निर्देश दिए थे। इसके अंतर्गत स्थानीय लोक संगीत को भी महत्व दिया जाता है। अनेक संस्थाएं भी इस दिशा में प्रयास कर रही है। प्रसिद्ध लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी सोन चिरैया संस्था के माध्यम से यह कार्य कर रही है। इस संस्था के द्वारा लोक निर्मला सम्मान दिया जाता है। इस बार यह सम्मान उत्तराखंड की लोक गायिका पद्मश्री बसन्ती बिष्ट
को दिया गया। भारत में गुरु शिष्य परम्परा की सुदीर्घ और विलक्षण विरासत रही है। इसका क्षेत्र अध्यात्म तक सीमित नहीं था। बल्कि संगीत को भी साधना के रूप में मान्यता मिली। यह परम्परा आज भी चल रही है। लखनऊ का भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय संगीत शिक्षा प्रदान करने के साथ विरासत को भी सहेजे हुए है। वैसे भी लखनऊ कथक घराना विश्व प्रसिद्ध है। भातखंडे संगीत संस्थान सम विश्वविद्यालय को योगी आदित्यनाथ सरकार ने भातखंडे राज्य संस्कृति विश्वविद्यालय की मान्यता प्रदान की थी। इससे यहां संस्कृत,संस्कृति के साथ लोक कलाओं,लोक नृत्य पर शोध और पाठ्यक्रम संचालित होना सम्भव हुआ।
पूर्ण विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद इसका कार्यक्षेत्र संपूर्ण उत्तर प्रदेश हो गया है। अभी तक भारतेंदु नाट्य अकादमी ड्रामा में डिप्लोमा प्रमाणपत्र देती थी। अब अकादमी की संस्कृति विश्वविद्यालय से संबद्धता होने पर ड्रामा में डिग्री भी मिलने लगी है। योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखण्ड की वरिष्ठ लोकगायिका पद्मश्री बसन्ती बिष्ट एवं दल को अपने आवास पर आमंत्रित कर सम्मानित किया। इस अवसर पर बसंती विष्ट ने मुख्यमंत्री को पारंपरिक जागर की पंक्तियां भी गाकर सुनाई। इस अवसर पर पद्मश्री मालिनी अवस्थी भी उपस्थित रही। इसके पहले मलिन अवस्थी ने राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को अपनी पुस्तक भेंट की। पद्मश्री मालिनी अवस्थी की माता की स्मृति में लोकनिर्मला सम्मान प्रदान करती है।बसंती विष्ट उत्तराखंड की पहली ऐसी महिला है जिन्होंने मंच पर जागर गायन किया है। उनके पहले सिर्फ पुरुष की मंच पर जागर गायन किया करते थे। जागर गायन के माध्यम से देवी देवताओं स्मरण वंदन और आह्वान किया जाता है। इस प्रकार के गायन पर पुरुषों का एकाधिकार था। बसंती विष्ट ने इस एकाधिकार को समाप्त किया। नई अलख जगाई। उनकी प्रेरणा से अन्य महिलाएं भी इसका गायन करती है। बसंती विष्ट को आठ वर्ष पहले पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। चालीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने गायन के क्षेत्र में कदम रखने का निर्णय लिया। संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उनकोऑल इंडिया रेडियो स्टेशन नजीबाबाद में बी ग्रेड कलाकार के रूप में सूचीबद्ध किया गया। सराहनीय योगदान को देखते हुए उन्हें ए ग्रेड लोक गायिका श्रेणी से सम्मानित किया गया। जागर नाम से स्पष्ट है कि इसको रतजगा के रूप में गाया जाता है। बसंती बिष्ट ने इसको नए सिरे से लोकप्रिय बनाया। गढ़वाली गायन शैली में वह इसका गायन करती हैं। उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें एक लाख रू का निर्मला सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर उन्होंने जागर गीत प्रस्तुत किए। भगवान भोलेनाथ के जागर के साथ उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसमें दो सखियां शिव जी का आह्वान करती हैं। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की स्तुति वाला जागर सुनाया। गांव किसान से संबंधित जागर भी स्थानीय संस्कृति के चित्र प्रस्तुत करने वाले थे। बसंती विष्ट ने बीज बोते समय कृषक समाज द्वारा गाया जाने वाला हरेला गीत ‘सुफल हवे जाय भूमिया देवो’ और कुमाऊं का छपेली लोकगीत ‘मेरी हरु हरुली’ की भी प्रस्तुति दी।

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