लेख

समाज और सामाजिकता

धीरज मिश्रा

आज समाज को समझने की जरूरत क्यों आ गई ये समझना होगा क्योंकि हम अपने उद्देश्य और कर्तव्य से भटकते हुए दिखाई पड़ रहे हैं, समाज संस्कृत शब्द ‘सम’ + ‘अज’ से बना है, जिसका अर्थ है – समान उद्देश्य और आचरण से जुड़ा हुआ समूह अर्थात जहाँ लोग साथ मिलकर रहते हैं, नियम बनाते हैं और एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी होते हैं। समाज केवल लोगों का समूह नहीं है, बल्कि विचारों, संस्कारों, आदर्शों और व्यवहारों का संगम है। यह एक ऐसा ढाँचा है जहाँ हर व्यक्ति अपनी भूमिका निभाते हुए एक-दूसरे के साथ जुड़ा रहता है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में समाज का अर्थ है परिवार, संस्कृति, धर्म, परंपरा, सह-अस्तित्व।
आज के दौर में अपराध, भ्रष्टाचार, चमक दमक, तनाव और आत्महत्या जैसी घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं। इसका मुख्य कारण है – लालच, असंयम, शो बिज और असंतुलित जीवनशैली। जो समाज से नैतिकता के पतन का कारण बन रहा है, प्रत्येक व्यक्ति शो बिज का हिस्सा हो जाना चाहता है वो भी शॉर्ट कट के माध्यम से, जहाँ ना स्वास्थ्य की चिन्ता और ना ही मानवीय मूल्यों की, ऐसी स्थिति में स्वस्थ समाज की आवश्यकता पहले से अधिक है क्योंकि जब समाज के लक्ष्य और उद्देश्य एक होंगे तो परस्पर सहयोग की भावना बलवती होगी और हम तेजी से स्वस्थ और सफल होने वाले समूह हो जाएंगे —
* स्वस्थ समाज शांति और सुरक्षा प्रदान करता है।
* यह अगली पीढ़ी को बेहतर संस्कार और वातावरण देता है।
* इसमें समानता, सहयोग और संवेदनशीलता बनी रहती है।
* यह केवल आर्थिक प्रगति ही नहीं, बल्कि मानसिक और सांस्कृतिक विकास भी सुनिश्चित करता है।

भारत में समाज की मूल इकाई “व्यक्ति” नहीं बल्कि “परिवार” है। यहाँ रिश्ते, वंश और परंपरा ही समाज की बुनियाद हैं। धर्म, कर्म, संस्कार और सह-अस्तित्व यहाँ की नींव हैं। भारत का समाज भाषाओं, जातियों, रीति-रिवाजों और परंपराओं में विविध है, परंतु फिर भी सहिष्णुता और स्वीकार्यता के साथ व्यक्ति केवल अपने लिए नहीं जीता, बल्कि परिवार, गाँव और समाज के लिए जिम्मेदार होता है। व्यक्ति का आचरण समाज की प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है इसलिए चरित्र  हमारे समाज की सबसे बड़ी संपत्ति है। जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग की भूमिका है,
विद्यार्थी
* शिक्षा और अनुशासन से भविष्य की नींव मजबूत करना तथा नई सोच और तकनीक से समाज को आगे ले जाना।
व्यापारी
* ईमानदारी से व्यापार करना तथा समाज के लिए रोजगार और संसाधन उपलब्ध कराना।
शिक्षक
* ज्ञान के साथ संस्कार, चरित्र निर्माण, नैतिकता और प्रेरणा का स्रोत बनना।
प्रोफेशनल्स
• भ्रष्टाचार और स्वार्थ से दूर रहते हुए अपने क्षेत्र में ईमानदारी और गुणवत्ता बनाए रखना।
किसान और श्रमिक
* जहाँ अन्नदाता और उत्पादन शक्ति के रूप में समाज की रीढ़ हैं वहीं परिश्रम और आत्मनिर्भरता का उदाहरण भी हैं।
कलाकार और साहित्यकार
* संस्कृति और कला से समाज को दिशा देना और साथ ही संवेदनशीलता और विचारशीलता को जगाना।
वरिष्ठ नागरिक
* अनुभव और परंपराओं का संरक्षण और नई पीढ़ी के मार्गदर्शक बनना।
महिलाएँ
* परिवार और समाज दोनों में संतुलन लाना और अगली पीढ़ी में मूल्य और संस्कार भरना।

समाज हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है यह एक व्यवस्था है जहाँ परिवार, शिक्षा, संस्कृति, धर्म, परंपरा और नियम सब आते हैं और इस व्यवस्था को निभाने के लिए सामाजिकता जो कि एक व्यवहार है आंतरिक गुण है को अपनाना पड़ेगा। समाज हमें ढाँचा देता है और सामाजिकता हमें जोड़ने वाली डोर अतः जब हर व्यक्ति अपने हिस्से का धर्म निभाता है, तभी समाज सामूहिक रूप से स्वस्थ और खुशहाल बनता है।

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