उत्तर प्रदेश

संत परम्परा की रामलीला में मर्यादा का महत्व

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

अयोध्या। राज्य सूचना आयुक्त डॉ दिलीप अग्निहोत्री ने कहा कि भव्य श्री राम मंदिर बनने के बाद नई अयोध्या परिलक्षित हो रही है। इस आध्यात्मिक उत्साह का सर्वत्र अनुभव किया जा सकता है। इस परिवेश में अयोध्या के संतों की प्रेरणा से होने वाली श्री रामलीला के माध्यम से सनातन चेतना का जागरण हो रहा है। राज्य सूचना आयुक्त को सरयू गेस्ट हाउस में संत पंकज कृष्ण शास्त्री ने आशीर्वचन दिया। यहां डॉ दिलीप अग्निहोत्री ने कहा कि मानवीय क्षमता की सीमा होती है। वह अपने ही अगले पल की गारंटी नहीं ले सकता। इसके विपरीत नारायण की कोई सीमा नहीं होती। वह जब मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं, तब भी आदि से अंत तक कुछ भी उनसे छिपा नहीं रहता। वह अनजान बनकर अवतार का निर्वाह करते हैं। भविष्य की घटनाओं को देखते हैं, लेकिन प्रकट नहीं होते देते। इसी की उनकी लीला कहा जाता है। रामलीला इसी भाव की रोचक प्रस्तुति होती है। समय बदला, तकनीक बदली ,लेकिन सदियों से रामलीला की यात्रा जारी है। राम चरित मानस रामायण एक अद्भुत ग्रंथ है। इसे लोग कथा,गीत,प्रवचन, कहानी तथा अन्य किसी न किसी रूप में प्रदर्शित कर आनन्दित होते हैं।
रामलीला लोक नाटक का एक रूप है। यह गोस्वामी तुलसीदास की कृति रामचरितमानस पर आधारित है। रामलीला का मंचन तुलसीदास के शिष्यों ने सबसे पहले किया था। विदेशी आक्रांताओं के दौर में भी रामलीला राजाराम चंद्र की जय के उद्घोष के साथ ही पूर्ण होती थी। यह भारत की सांस्कृतिक स्वतंत्रता का प्रमाण था।

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